- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- पुतिन की भारत यात्रा
आदित्य नारायण चोपड़ा: भारत-रूस संबंध काफी उतार-चढ़ाव वाले रहे हैं। इसके बावजूद हर परिस्थिति में, हर संकट की घड़ी में रूस हमारा विश्वसनीय दोस्त साबित हुआ। शांतिकाल हो या युद्धकाल रूस हमारे साथ खड़ा रहा। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत-सोवियत संघ के संबंध काफी गहरे हुए। यह समय ऐसा था जब पूरी दुनिया दो खेमों में बंटी हुई थी। एक खेमा सोवियत संघ की तरफ था तो दूसरा खेमा अमेरिका की ओर। पंडित जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में भारत गुटनिरपेक्ष नीति का पालन कर रहा था। सोवियत संघ के खंडित होने के बाद दुनिया का परिदृश्य भी काफी बदला। भारत और रूस शुरू से ही बहुपक्षीय विश्व व्यवस्था के समर्थक रहे हैं। दोनों देशों को यह बात अच्छे से मालूम है कि दो ध्रुवों में बंटे संसार में विदेश नीति से जुड़े उसके विकल्पों के सामने कई तरह की रुकावटें आ रही हैं। दोनों ही देश अपनी-अपनी नीतियों के निर्माण में अपना आजाद विकल्प बनाए रखने के पक्षधर हैं। भारत को जब भी बुनियादी ढांचों की जरूरत पड़ी तो सोवियत संघ ने हमारी मदद की। जब हमें एलायड स्टील की जरूरत थी तो सोवियत संघ ने भारत में बड़े स्टील कारखाने स्थापित करने में मदद की। आज भारत की औद्योगिक प्रगति की नींव सोवियत संघ ने ही रखी थी। 9 अगस्त, 1971 को भारत और तत्कालीन सोवियत संघ ने चिरजीवी दोस्ती के दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किए थे। दोनों देशों के संंबंधों की ताकत इतनी थी कि इससे तत्कालीन विश्व के समीकरणों में आमूल परिवर्तन कर दिए थे। इतना ही नहीं, इसमें न केवल दक्षिण एशिया बल्कि अमेरिका और यूरोपीय देशों की विदेश नीति को प्रभावित किया था। 1971 में भारत की स्थितियां बिल्कुल भी अनुकूल नहीं थीं। एक तरफ तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बंगलादेश) में पाकिस्तानी सेना के अत्याचारों से त्रस्त जनता भारत में शरण लेने के लिए घुसी थी, वहीं पाकिस्तान, अमेरिका और चीन का गठबंधन मजबूत होता जा रहा था। ऐसे में तीन देशों से घिरे भारत की सुरक्षा को बड़ा खतरा पैदा हो गया था। अमेरिका और चीन दोनों ही प्रतिबंधों के बावजूद पाकिस्तान हथियार देकर सैन्य मदद कर रहे थे। तब सोवियत-भारत मैत्री और सहयोग संधि दोनों देशों के संबंधों में एक मील का पत्थर साबित हुई। इस संधि के बाद सोवियत संघ ने ऐलान किया था कि भारत के ऊपर हमला उसके ऊपर हमला माना जाएगा। यही कारण था कि 1971 के युद्ध के दौरान अमेरिकी नौसैनिक बेड़े को भारत के ऊपर हमला करने की हिम्मत नहीं हुई थी। रूस ने अमेरिकी युद्ध पोत का मुकाबला करने के लिए अपना युद्धपोत भेज दिया था।जब हमारे बिजली घर बंद होने लगे थे तो कहीं से भी कोई मदद नहीं मिल रही थी तब रूस ने हमारी मदद की। भारत के नागरिक राकेश शर्मा को अंतरिक्ष की सैर कराई। रूस ने भारत के परमाणु और अंतरिक्ष कार्यक्रम में हर सम्भव मदद की। सोिवयत संघ के विघटन के बाद भारत-रूस संबंध शांत हो गए। हम अमेरिका के नजदीक होते गए। कहीं न कहीं ऐसा महसूस हो रहा था कि हम अपने विश्वसनीय मित्र से दूर होते जा रहे हैं। संपादकीय :राष्ट्रीय विकल्प की राजनीतिनए वेरिएंट से बचना है तो चलो ''पुराने मंत्र'' परभारत का परागलोकलेखा समिति की शताब्दीदिल्ली सरकार का सस्ता पेट्रोलबूस्टर डोज की जरूरत?वैसे पिछले दो दशकों में विश्व में नए समीकरण बने हैंऔर नए ध्रुवीकरण हुए हैं। संबंधों में ठहराव के बावजूद दोनों देशों के रिश्तों में सक्रिय तौर पर कोई टकराव नहीं है। हालांकि आगे इन संबंधों पर बाहरी कारकों के प्रभावों को नजरंदाज करना या कम करके आंकना सम्भव ही नहीं है। एक ओर दुनिया कोविड-19 महामारी के प्रभावों से जूझ रही है तो दूसरी तरफ अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था एक नया आकार ले रही है। दुनिया के राष्ट्रों की राज्यसत्ता एक एतिहासिक पड़ाव पर खड़ी है, ऐसे में उनके लिए अनिश्चितता का माहौल गहरा गया है। अब कोई देश प्रतिस्पर्धा करके चुनौतियों का मुकाबला नहीं कर सकता। वर्तमान चुनौतियों से मिलकर लड़ा जा सकता है। भारत और रूस संबंधों में संतुलन बनाने का समय आ गया है। रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमिर पुतिन आज भारत आ रहे हैं। पुतिन और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भारत-रूस शिखर सम्मेलन में शामिल होंगे। दोनों नेता शिखर सम्मेलन से इतर व्यक्तिगत भेंट भी करेंगे और दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों की समीक्षा करने और साझेदारी मजबूत करने के तरीकों पर चर्चा करेंगे। इस दौरान दस समझौतों पर हस्ताक्षर भी होंगे। इनमें से कुछ अर्द्ध गोपनीय भी होंगे। भारत के सामने अफगानिस्तान और चीनी अतिक्रमण का मामला भी है। तमाम अमेरिकी आपत्तियों को दरकिनार करते हुए रूस ने हमें एस-400 सुरक्षा कवच की आपूर्ति की है। रूस हमारा परखा हुआ बेहतरीन दोस्त है और भारत को अपने हितों को देखते हुए रूस से संबंधों को पहले से कहीं अधिक गहरा बनाना होगा।