सम्पादकीय

पुतिन का अमेरिकी दादागिरी को जवाब

Subhi
26 Feb 2022 3:35 AM GMT
पुतिन का अमेरिकी दादागिरी को जवाब
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हर तरफ तबाही का मंजर है। रूसी मिसाइलों और बम धमाकों से यूक्रेन दहल रहा है। यूक्रेन अपनी क्षमता के अनुसार रूसी हमलों का जवाब भी दे रहा है। यूक्रेन के लोग शहरों से पलायन कर रहे हैं, हजारों लोग दिनभर बंकरों में शरण लिए हुए हैं।

आदित्य नारायण चोपड़ा: हर तरफ तबाही का मंजर है। रूसी मिसाइलों और बम धमाकों से यूक्रेन दहल रहा है। यूक्रेन अपनी क्षमता के अनुसार रूसी हमलों का जवाब भी दे रहा है। यूक्रेन के लोग शहरों से पलायन कर रहे हैं, हजारों लोग दिनभर बंकरों में शरण लिए हुए हैं। दस लाख लोग शरणार्थी बन चुके हैं। रूस ने यूक्रेन की राजधानी कीव की ओर अन्य शहरों की घेराबंदी कर दी है। महीनों तक रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन ने दुनिया के ​लिए सस्पेंस बनाए रखा। सब अनुमान लगाते रहे कि पुतिन का अगला कदम क्या होगा? यह सवाल भी सबके सामने रहा कि क्या शीत युद्ध के बाद यूरोप में जो सुरक्षा व्यवस्था बनी थी, क्या पुतिन उसे नष्ट करने की योजना बना रहे हैं या नहीं?पुतिन के लिए किसी फिल्म की तरह सस्पेंस बनाए रखना सबसे पसंदीदा हथियार है। अब सब कुछ साफ हो चुका है कि पुतिन ने बि​ल्ली की तरह चूहों के साथ खेल खेला। रूस की सत्ता की दीवारों के पीछे क्या चल रहा था, इसका अनुमान विश्व की खुफिया एजैंसियों को भी नहीं लगा। पुतिन के दिमाग की थाह लेना अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन और अन्य के वश की बात नहीं।सोवियत संघ के विघटन के बाद वैश्विक सुरक्षा के नाम पर अमेरिका ने जमकर दादागिरी की। दूसरे विश्व युद्ध के बाद दुनिया दो प्रभाव क्षेत्रों पर अमेरिका और सोवियत संघ का ​नियंत्रण था। परन्तु सोवियत संघ और समाजवादी देशों के विध्वंस के बाद सम्पूर्ण विश्व पर अमेरिका का प्रभुत्व हो गया है। इसी काल में अमेरिका ने रूस के साथ जो व्यवहार किया और उसे अलग-थलग करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। अमेरिका शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में उभरा लेकिन अमेरिकी राष्ट्र की नींव वहां के मूल निवासियों की लाशों पर खड़ी है। समाजवादी देशों के अंत के बाद सम्पूर्ण विश्व पूंजीवादी की लपेट में आ गया और इस पूंजीवादी समाज का नेतृत्व अमेरिका के हाथ में आ गया। यह स्थिति यूं ही निर्मित नहीं हुई। कम्युनिस्ट देशों और कम्युनिस्ट विचारधारा को कमजोर करने का योजनाबद्ध षड्यंत्र वर्षों से चल रहा था। संपादकीय :कच्चे तेल के भावों में उफानगहलोत की सौगातेंतीसरे विश्व युद्ध की आहटपुतिन की चाल से भूचालचरणबद्ध बदलते चुनावी मुद्देजुगलबंदी प्रोग्राम से रिश्तों में मजबूतीइसी षड्यंत्र के तहत अकेले इंडोनेशिया में दस लाख कम्युनिस्टों की हत्या की गई। लै​टिन अमेरिका में चिली के लोकतांत्रिक तरीके से निर्वा​चित राष्ट्रपति डा. अलेन्दे की हत्या कर दी गई। सोवियत संघ के खंड-खंड होने की पीड़ा पुतिन के भाषणों से झलकती रही है। नाटो का ​विस्तार पूरब तक हुआ और पुतिन की कड़वाहट बढ़ती गई। आज पुतिन पूरी शक्ति के साथ एक मिशन पर लगे हैं जिनका मिशन है-यूक्रेन को किसी भी तरह रूस के साथ मिलाना है। लम्बे समय से पश्चिमी देश रूस की प्रगति को रोकने के लिए आर्थिक प्रतिबंधों का सहारा लेता रहा है। रूस हमेशा इन प्रतिबंधों को अवैध मानता रहा है। मैं व्यक्तिगत तौर पर यूक्रेन पर रूस के हमलों को उचित नहीं ठहरा रहा। कौन गलत है कौन सही, इस बहस से अलग हटकर देखें तो पुतिन का एक्शन अमेरिका की दादागिरी का मुंहतोड़ जवाब है। पुतिन ने अमेरिका को यह​ दिखा दिया है कि किसी के क्षेत्र में शांति की स्थापना ​किसी एक पक्ष की मनमानी से नहीं हो सकती। वैश्विक शांति के लिए सामूहिक प्रयासों की जरूरत होती है, ऐसा नहीं हो सकता कि अमेरिका और उसके मित्र देश किसी भी जगह हस्तक्षेप करते रहें और अपनी दादागिरी चलाएं।अमेरिका की विश्व शांति में क्या भूमिका है, उससे पूरी दुनिया ​परिचित है। अमेरिका ने इराक, लीबिया और अफगानिस्तान में जो विध्वंस का खेल खेला वह किसी से छिपा हुआ नहीं है। वह ईरान को भी ललकारता रहता है। यूक्रेन मामले में अब अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने पीठ दिखा दी है। उन्होंने यूक्रेन में अपनी सेना भेजने से साफ इंकार कर दिया है। नाटो देश भी अपनी सेना भेजने से परहेज कर रहे हैं। केवल हथियार और युद्ध सामग्री की मदद कर रहे हैं। अमेरिका और नाटो देश केवल प्रतिबंधों का ऐलान कर रहे हैं। लेकिन पुतिन और रूस के नागरिक इन प्रतिबंधों से डरने वाले नहीं हैं। यह साफ है कि इन आर्थिक प्रतिबंधों के दुष्परिणाम अमेरिका और नाटो देशों को भी भुगतने पड़ेंगे। जिस अमेरिका और नाटो देशों के बल पर यूक्रेन के राष्ट्रपति कूद रहे थे, उन्हीं ने उन्हें अकेला छोड़ दिया। अगर यूक्रेन को अकेला छोड़ना ही था तो फिर इतना बवाल क्यों मचाया। क्यों उसने यूक्रेन को उक्साया। रूस इस समय शक्तिशाली साबित हुआ है और ऐसा लगता है कि अमेरिका से विश्व शक्ति होने का ताज छिन रहा है। पुतिन के दो लक्ष्य हैं, पहला तो यूक्रेन में सत्ता परिवर्तन यानी रूस समर्थक सरकार और दूसरा यूक्रेन की सेना की ताकत कमजोर करना।भारत इस मसले पर कूटनीति से समाधान निकालने के पक्ष में है। यूक्रेन के प्रधानमंत्री ने नरेन्द्र मोदी से हस्तक्षेप की गुहार भी लगाई है। नरेन्द्र मोदी ने पुतिन से बातचीत भी की है और शांति की अपील भी की है। भारत की भूमिका पर सबकी नजरें हैं। देखना होगा कि युद्ध की तार्किक परिणति क्या होती है।


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