- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- नाटो के अगले विस्तार...
सम्पादकीय
नाटो के अगले विस्तार का इस्तेमाल पुतिन घरेलू समर्थन जुटाने और सत्ता पर अपनी पकड़ मजबूत बनाने में करेंगे
Gulabi Jagat
18 May 2022 7:47 AM GMT
x
के वी रमेश |
शीत युद्ध के करीब चार दशकों बाद तक नाटो और वारसा पैक्ट, जो परमाणु हथियारों (Nuclear Weapons) और पारंपरिक सेनाओं के साथ एक-दूसरे का सामना करते रहे, यूरोप में रणनीतिक संतुलन और एक अस्थायी शांति बनाए रखने में कामयाब रहे. वैचारिक प्रभुत्व के लिए इन दोनों ने ही दुनिया के बाकी हिस्सों में छद्म युद्ध लड़े, लेकिन शक्ति संतुलन के कारण यूरोप तुलनात्मक तौर पर शांत था. लेकिन हथियारों की होड़ और सोवियत संघ (Soviet Union) द्वारा अपने आसपास के छोटे देशों को मदद देने से मॉस्को के संसाधन कम पड़ने लगे.1979 में अफगानिस्तान में सोवियत संघ के दुस्साहस, जिसकी उसे भारी कीमत चुकानी पड़ी, के कारण महंगाई बेकाबू हो गई और यह विशाल राष्ट्र, जो यूरोप से एशिया तक फैला हुआ था, कमजोर होने लगा.
ऐसे में सोवियत संघ का विघटन होना ही था, जो कि 1991 में हो ही गया. और उसके अगले ही वर्ष इसके घटक 'गणराज्यों' का विद्रोह हुआ. सोवियत संघ खत्म हो चुका था. लेकिन शीत युद्ध की समाप्ति और सोवियत संघ के पतन से तार्किक रूप से दो संभावनाएं सामने आनी चाहिए थीं- पहली, नाटो का विघटन और यह एक नए रूप में उदय हो जो टूटे-फूटे रूस की सुरक्षा चिंताओं को ध्यान में रखे और दूसरी, यूरोप के सभी देशों को शामिल करते हुए रूस को भी अपने में मिला ले. लेकिन ऐसा नहीं हुआ.
दुनिया के 11 फीसदी भूभाग पर नियंत्रण
रूस के संदेह और बदले की भावना के डर ने इन संभावनाओं को खारिज कर दिया. बाल्टिक, काला सागर और मध्य एशियाई गणराज्यों के बाहर निकलने के बाद भी रूस दुनिया का सबसे बड़ा देश था. दुनिया के 11 फीसदी भूभाग और अपार प्राकृतिक संसाधनों के साथ, यह आशंका थी कि अपने विघटन के बाद यह फिर से मजबूत होकर उभरेगा और बिल्कुल वही हुआ. पुतिन के शासन में रूस आर्थिक और सैन्य रूप से मजबूत हुआ. दूसरी ओर, छोटे लेकिन अमीर यूरोपीय देश नाटो की छत्रछाया में जाने के लिए हाथ-पांव मारने लगे.
कई यूरोपीय और यहां तक कि अमेरिकी राजनीतिक नेताओं, राजनयिकों और सुरक्षा विशेषज्ञों, जिनमें हेनरी किसिंजर भी शामिल थे और रूस के पूर्व राजदूत विलियम बर्न्स और जैक मैटलॉक ने नाटो के विस्तार के खिलाफ चेतावनी दी थी कि इससे रूस की चिंताएं और बढ़ सकती हैं. साथ ही उन्होंने उन देशों को सुरक्षा सहायता की गारंटी देने का सुझाव दिया, जो रूस से खतरा महसूस करते थे और यहां तक कि मॉस्को को भी अपनी व्यवस्था में शामिल करने की बात कही, जिससे इन देशों के डर को दूर किया जा सके. लेकिन दुनिया के बहरे कानों ने इन आवाज को अनसुना कर दिया.
अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन और उनके सलाहकारों ने रूस के विघटन को शीत युद्ध में अपनी विजय मानी और वे लगातार नाटो के विस्तार की योजनाओं पर लगे रहे. यह सैन्य संगठन लगातार पूर्व की ओर से बढ़ता रहा और अपनी स्थापना के बाद से उसने आर्कटिक से लेकर ब्लैक सी तक आठ बार अपना विस्तार किया. स्वीडन और फिनलैंड के शामिल होने के साथ नौवें विस्तार का मतलब यह होगा कि पश्चिमी देश और रूस एक-दूसरे के आमने-सामने होंगे, इसे काव्यात्मक रूप से मिखाइल गोर्बाचेव द्वारा 'मिसाइलों के महल' के रूप में वर्णित किया जा सकता है. यह वही है जो रूस, किसी के भी नेतृत्व में चाहे वह व्लादिमीर पुतिन हों या कोई और, नहीं चाहता था, और न ही चाहेगा.
2008 में जॉर्जिया पर आक्रमण किया
2004 में बाल्टिक और कोकेशियान गणराज्य के नाटो में शामिल होने से पुतिन को यकीन हो गया होगा कि नाटो की पारंपरिक और परमाणु ताकतों की अग्रिम पंक्तियां रूस की सीमाओं के करीब पहुंच रही हैं और उन्हें जवाबी कार्रवाई करनी चाहिए. 2008 में जॉर्जिया पर आक्रमण करके उसने पश्चिम की शक्ति का परीक्षण किया. इस पर नाटो ने शोर जरूर मचाया लेकिन कोई कड़ी प्रतिक्रिया नहीं दी. इसके बाद 2014 में उसने क्राइमिया पर कब्जा किया. 2015 में पुतिन ने यूक्रेन के दो डॉन बेसिन प्रांतों दोनेत्सक और लुहांस्क में विद्रोह को उकसाया.
यूरोपीय संघ ने दो प्रांतों को स्वायत्तता की अनुमति देने वाले मिन्स्क समझौते की व्यवस्था की, जो कभी लागू नहीं हुआ. इससे उत्साहित होकर, पुतिन ने अगला कदम उठाया और इसने दोनों प्रांतों को स्वतंत्र मान्यता दे दी और यूक्रेन पर आक्रमण कर दिया. सरल शब्दों में कहें तो, नाटो के विस्तार से यूरोप में युद्ध तो नहीं रुका है. इसके उलट, यह संघर्ष को और बढ़ा सकता है. इस बात में कोई संदेह नहीं है कि रूस को अपने सैनिक और सैन्य साजो-सामान के नुकसान से कोई चोट नहीं पहुंची है. पुतिन के लिए यह युद्ध प्रतिष्ठा का विषय नहीं रह गया है. रूस की संभावित हार या उसकी फजीहत से उनकी सत्ता जा सकती है या फिर उन्हें अपने जीवन की कीमत चुकानी पड़ सकती है.
फिनलैंड और स्वीडन को नाटो में शामिल करने से उनकी असुरक्षा की भावना और बढ़ जाएगी, वह क्रोधित हो जाएंगे और जिससे वह ज्यादा आक्रामक हो सकते हैं. पहले से ही अटकलें चल रही हैं कि उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं है और वह पैरानोइया से पीड़ित हैं, इस तानाशाह की सेहत में गिरावट आई है. लेकिन हो सकता है कि पुतिन चाहते हों कि नाटो का विस्तार हो, जिससे वह दुनिया को यह दिखा सकें कि पश्चिमी देश उनके खिलाफ साजिश कर रहे हैं, यह ठीक उसी तरह का दांव पेंच होगा जैसा पाकिस्तान में इमरान खान ने किया.
यूक्रेन युद्ध के खिलाफ नहीं हैं अधिकतर रूसी
पश्चिमी खुफिया एजेंसियों का अनुमान है कि अधिकतर रूसी इस बात को लेकर आश्वस्त हैं कि यूक्रेन के खिलाफ युद्ध का कारण उचित है. रूस में सैन्य-नौकरशाही तंत्र पर पुतिन की पकड़ पूरी हो चुकी है और पश्चिमी देशों का यह आकलन कि रूस में तख्तापलट हो सकता है पूरी तरह से महज एक कामना साबित हो सकती है. पूरे पश्चिम को रूस का दुश्मन बताकर, पुतिन अभी भी रूस को अपने पीछे चला सकते हैं. उन्हें बहुत फायदा हुआ है. भारी मात्रा में प्राकृतिक संसाधनों पर उन्होंने कब्जा जमा लिया है. रुबल में सुधार आया है, यहां तक कि यह डॉलर के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन कर रहा है.
तेल प्रतिबंधों पर यूरोपियन यूनियन में फूट पड़ गई है, कम से कम चार देशों ने इसकी घोषणा कर दी है. करीब 10 कंपनियां ऐसी हैं जो रूसी सामानों के लिए रूबल में भुगतान करने को तैयार हैं. इस युद्ध का लंबा खिंचना, पुतिन के लिए अच्छा ही होगा और पूरी दुनिया के लिए खराब. यूक्रेन के सैन्य खुफिया प्रमुख ने चेतावनी दी है कि युद्ध कम से कम साल के अंत तक लंबा खिंच सकता है. इसका मतलब है कि आने वाले दिनों में महंगाई और बढ़ेगी, जो दुनिया भर में अर्थव्यवस्थाओं के पतन का कारण बनेगी.
चीन और भारत जैसी विकासशील अर्थव्यवस्थाओं को छोड़ दें तो अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोप पहले से ही महंगाई से पीड़ित हैं. खाद्य कीमतें आसमान छू रही हैं और भारी गर्मी के साथ-साथ रूस और बेलारूस से आने वाले उर्वरक उत्पादों की कीमतों में बढ़ोतरी से अगले कृषि मौसम में उत्पादन में भारी कमी आ सकती है और जिसकी वजह से दुनिया भर में संकट बढ़ सकता है.
पश्चिमी देशों पर विभिन्न देशों का दबाव
कोई अस्थायी रास्ता निकालने के लिए, ताकि युद्ध को रोका जा सके, पश्चिमी देशों पर बड़ी संख्या में विभिन्न देशों का दबाव होगा, जिनमें औद्योगिक देश, मध्यम-आय वाले देश और गरीब राष्ट्र शामिल होंगे. पुतिन पहले ही दुनिया के बाकी हिस्सों को कम कीमतों पर प्राथमिक वस्तुओं की पेशकश कर चुके हैं और यह एक ऐसा प्रस्ताव है, जिसे आप मना नहीं कर सकते. पश्चिमी देश ऐसा ऑफर पेश नहीं कर सकते. इन सबके बीच कोई भी नाटो में शामिल होने के लिए यूक्रेन की चाहत पर बात नहीं कर रहा है.
जेलेंस्की, नाटो में शामिल होने को लेकर अपनी स्थिति बदलते रहते हैं, कभी शामिल होने के लिए वह अपने दृढ़ संकल्प की घोषणा करते हैं और कभी-कभी तटस्थ रहने की पेशकश करते हैं. अभी सभी कार्ड पुतिन के पास हैं. पश्चिम को तुरुप का पत्ता फेंकना होगा. तब तक खेल जारी रहेगा.
Gulabi Jagat
Next Story