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क्या रूस के संसदीय चुनाव में इस बार राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन को करारा झटका लगेगा?
रूस में संसदीय चुनाव के लिए मतदान 17 से 19 सितंबर तक चलेगा। उन्हीं तीन दिन में रूस के 39 क्षेत्रीय ड्यूमा और नौ क्षेत्रीय गवर्नरों का निर्वाचन भी होगा। फिलहाल पुतिन की पार्टी के पास ड्यूमा की 450 में 335 सीटें हैं। इतनी सीटें वह तभी हासिल कर पाएगी, जब उसे 45 फीसदी वोट मिलें। elections russia vladimir putins
क्या रूस के संसदीय चुनाव में इस बार राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन को करारा झटका लगेगा? चुनाव पूर्व जनमत सर्वेक्षणों से ऐसे ही संकेत मिल रहे हैँ। ऐसा हुआ तो उससे पुतिन की अंतरराष्ट्रीय छवि के लिए भी बड़ा नुकसान होगा। रूस में राष्ट्रपति चुनाव सीधे जनता के वोट से होता है। इसलिए संसदीय चुनाव से पुतिन की कुर्सी पर तुरंत कोई फर्क नहीं पड़ेगा। लेकिन अगर नतीजे सर्वे के मुताबिक ही आए, तो उनके लिए शासन करना या यूं कहें मनमाने ढंग से शासन करना कठिन हो जाएगा। सर्वेक्षणों के मुताबिक उनकी यूनाइटेड रशिया पार्टी को सिर्फ 27 फीसदी वोट मिलने की संभावना है। ऐसा हुआ तो ड्यूमा (रूसी संसद) में पार्टी को निर्णायक बहुमत नहीं मिलेगा। इसका अर्थ होगा कि पुतिन जब चाहें, अपने माफिक संविधान संशोधन नहीं कर पाएंगे। रूस में संसदीय चुनाव के लिए मतदान 17 से 19 सितंबर तक चलेगा। उन्हीं तीन दिन में रूस के 39 क्षेत्रीय ड्यूमा और नौ क्षेत्रीय गवर्नरों का निर्वाचन भी होगा।
रूस के नेशनल ड्यूमा में 450 सदस्य हैँ। फिलहाल पुतिन की पार्टी के पास इन 450 में 335 सीटें हैं। इतनी सीटें यूनाइटेड रशिया पार्टी तभी हासिल कर पाएगी, जब उसे 45 फीसदी वोट मिलें। रूस में मतदान आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली से होता है। फिलहाल ऐसा लगता है कि रूस के लोग अब पुतिन के लंबे शासन से आखिरकार का आजीज आ रहे हैँ। यूनाइटेड रशिया पार्टी इस समय जितनी अलोकप्रिय है, उतनी वह पिछले कभी नहीं हुई थी। इसकी वजह आर्थिक संकट, महंगाई, पिछले वायदे पूरे ना होना, और कोविड-19 महामारी को संभाल पाने में सरकार की नाकामी है। भ्रष्टाचार भी एक बड़ा मुद्दा है। तो ये संभावना इस बार गंभीर हो गई है कि मतदाता यूनाइटेड रशिया पार्टी को सबक सिखाने के लिए स्मार्ट वोटिंग स्ट्रेटेजी अपनाएं। ये रणनीति यह है कि मतदाता यूनाइटेड रशिया पार्टी के अलावा किसी दूसरी पार्टी के उम्मीदवार को वोट डालें। ताजा सर्वे के मुताबिक 55 प्रतिशत मतदाताओं ने इसी रणनीति के जरिए विपक्षी उम्मीदवारों को वोट देने की इच्छा जताई है। संभावना यह जताई गई है कि इस रणनीति का सबसे ज्यादा लाभ देश के सबसे ज्यादा संगठित दल- कम्युनिस्ट पार्टी को मिल सकता है। ऐसा ही 2019 में मास्को के स्थानीय ड्यूमा के चुनाव में हुआ था। ऐसा होने के दूरगामी नतीजे होंगे।
क्रेडिट बाय नया इंडिया
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