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- उत्तराखंड में फिर...
उत्तराखंड में पुष्कर सिंह धामी के विधायक दल का नेता चुने जाने के साथ ही पिछले 11 दिनों से चला आ रहा सस्पेंस समाप्त हो गया। यह साफ हो गया कि बीजेपी ने चारों राज्यों में सिटिंग चीफ मिनिस्टर्स को जारी रखने का फैसला किया है। इसी के तहत गोवा में प्रमोद सावंत का नाम फाइनल हुआ। मणिपुर में एन वीरेन सिंह पहले ही मुख्यमंत्री पद की शपथ ले चुके हैं और यूपी में योगी आदित्यनाथ के नाम पर कभी कोई संदेह रहा ही नहीं। संदेह सबसे ज्यादा धामी को ही लेकर था। वजह यही थी कि उनके नेतृत्व में पार्टी ने भले बहुमत हासिल कर लिया हो, वह खुद चुनाव हार गए थे।
ऐसा ही एक मामला 2017 में हिमाचल प्रदेश में आया था, जहां बीजेपी को जिताकर भी पार्टी के सीएम कैंडिडेट प्रेम सिंह धूमल खुद अपनी सीट नहीं बचा पाए। तब जयराम ठाकुर को मुख्यमंत्री का पद मिला था। मगर अभी हालात अलग हैं। उत्तराखंड में धामी छह महीने के अंतराल में तीसरे मुख्यमंत्री थे। पार्टी के इन प्रयोगों ने यह संकेत दिया था कि बीजेपी नेतृत्व राज्य में राजनीतिक स्थिरता बनाए रखने के सवाल को खास अहमियत नहीं दे रहा। इन प्रयोगों ने पार्टी में पूर्व मुख्यमंत्रियों की संख्या बढ़ाकर आंतरिक गुटबाजी की समस्या को भी और बढ़ा दिया था।
ऐसे में मुख्यमंत्री के रूप में पुष्कर सिंह धामी के नाम पर सहमति देकर आलाकमान ने जहां पार्टी की आंतरिक गुटबाजी खत्म करने की इच्छा दिखाई है, वहीं 2024 के लोकसभा चुनावों के मद्देनजर राजनीतिक स्थिरता बनाए रखने का भी संकेत दिया है।
यह संकेत चारों राज्यों के लिए है। मगर धामी के पक्ष में लिए गए फैसले का एक निहितार्थ यूपी के संदर्भ में खास तौर पर रेखांकित किया जा रहा है। वहां योगी सरकार के पिछले कार्यकाल में उपमुख्यमंत्री रहे केशव प्रसाद मौर्य चुनाव हार गए हैं। उन्हें राज्य में ओबीसी का प्रमुख चेहरा बताया जाता रहा है। ऐसे में यह बताने की कोशिश शुरू हो गई है कि धामी को दोबारा मुख्यमंत्री बनाने का मतलब है, मौर्य को भी उपमुख्यमंत्री बनाया जाएगा। मगर दोनों बिल्कुल अलग मामले हैं।
चारों राज्यों में मुख्यमंत्री पद पर बदलाव न करने के फैसले का यह मतलब नहीं निकाला जा सकता कि मुख्यमंत्री की टीम में भी कोई बदलाव नहीं किया जाएगा। बेशक यह संभावना बनी हुई है कि योगी मंत्रिमंडल में केशव प्रसाद मौर्य को उपमुख्यमंत्री पद दोबारा मिल जाए, लेकिन अगर ऐसा हुआ भी तो वह एक अलग फैसला होगा, जिसके पीछे बिल्कुल अलग तरह के कारक काम कर रहे होंगे। बहरहाल, नई पारी में इन मुख्यमंत्रियों के सामने चुनौतियां भी नई होंगी। उम्मीद की जाए कि वे इन चुनौतियों से पिछली पारी के मुकाबले बेहतर ढंग से निपटते हुए आम वोटरों के फैसले को सार्थक साबित करेंगे।