सम्पादकीय

पंजाब के नये कप्तान चरणजीत चन्नी : ये कांग्रेस आलाकमान का नहीं राज्य के गुटों का मास्टर स्ट्रोक था

Rani Sahu
20 Sep 2021 7:06 AM GMT
पंजाब के नये कप्तान चरणजीत चन्नी : ये कांग्रेस आलाकमान का नहीं राज्य के गुटों का मास्टर स्ट्रोक था
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चरणजीत सिंह चन्नी (Charanjit Singh Channi) पंजाब के नए मुख्यमंत्री हैं. उनके दलित होने की दुहाई पूरी कांग्रेस (Congress) दे रही है

कार्तिकेय शर्मा चरणजीत सिंह चन्नी (Charanjit Singh Channi) पंजाब के नए मुख्यमंत्री हैं. उनके दलित होने की दुहाई पूरी कांग्रेस (Congress) दे रही है. चन्नी को बनाये जाने को 'मास्टर स्ट्रोक' कहा जा रहा है. दलील दी जा रही है कि पंजाब (Punjab) को आखिरकार एक दलित सिख मुख्यमंत्री मिला है. जो लोग कल तक प्रताप सिंह बाजवा, सुखजिंदर रंधावा, सुनील जाखड़ और बिट्टू का नाम लेते नहीं थक रहे थे वो अब इसको दलित राजनीति के चश्मे से देख रहे हैं. ये बिल्कुल वैसे है कि लोग कहने लगे कि पाटीदार समाज के सबसे बड़े नेता भूपेंद्र पटेल हैं और गुजरात में रूपाणी को हटाना मास्टरस्ट्रोक था. लेकिन उनके राज्य में घटना क्रम चलचित्र नहीं बना जो पंजाब में बन गया. यानि फ्री फॉर ऑल. इसमें तीन पहलू महत्वपूर्ण हैं. देश में ट्राइबल ईसाई, दलित ईसाई, दलित सिख और पसमांदा मुसलमान की राजनीति कभी कारगर नहीं रही है. राहुल गांधी ने 2012 के उत्तर प्रदेश के विधानसभा में मुसलमान के पसमांदा समाज की राजनीति की थी और उसका नतीजा सबके सामने है.

चन्नी को दलित सिख की तरह लोगों के सामने पेश किया जा रहा है. अगर वो पंजाब में सबसे बड़े दलित चेहरे थे तो उनका नाम सबसे पहले प्रस्तावित क्यों नहीं किया गया? क्या अमरिंदर सिंह दलित विरोधी चेहरा थे और दलित उनसे पंजाब में नाराज़ थे? क्या कांग्रेस ने अमरिंदर सिंह को नयी दलित राजनीति के लिए हटाया है? अगर ऐसा है तो कांग्रेस का संगठन चन्नी को क्यों नहीं दिया गया जो आज सिद्धू के हाथ में है?
सिद्धू ने किसी दूसरे जट सिख को आगे नहीं आने दिया
कांग्रेस की वरिष्ठ नेता अम्बिका सोनी ने खुल कर कहा कि पंजाब के मुख्यमंत्री का पद उनको ऑफर हुआ था और उन्होंने मना कर दिया. उनके बयान के अनुसार सिख ही मुख्यमंत्री होना चाहिए था. तब भी दलित सिख की कोई बात सामने नहीं आयी थी. पर आश्चर्य की बात दूसरी है. कांग्रेस आलाकमान एक हिन्दू पंजाबी खत्री को मुख्यमंत्री बना देने का मन बना चुकी थी. मतलब की अम्बिका दिल्ली से एक स्टॉप गैप अरेंजमेंट की तरह होतीं. अम्बिका सोनी की तारीफ़ करनी चाहिए कि उन्होंने पद को ठुकरा दिया.
उसके बाद सुखजिंदर रंधावा का नाम सामने आया और बताया गया कि जट सिख ही मुख्यमंत्री बनेगा. लेकिन फिर मामला फंसा और सूत्रों के मुताबिक सिद्धू नाराज हो गए. सिद्धू के खेमे ने जट सिख को मुख्यमंत्री बनाने के प्रस्ताव को खारिज कर दिया. फिर एक ऐसा नाम निकला जिस पर सबकी सहमति थी. यानि चन्नी जी की. इससे चन्नी जी का स्टेटस कम नहीं होता है. वो पंजाब विधानसभा में नेता विपक्ष रह चुके हैं और अमरिंदर सिंह के मामले पर काफी प्रखर थे. लेकिन उनका नाम सबसे पहले प्रस्तावित नहीं किया गया. यानि सिद्धू ने किसी दूसरे जट सिख को आगे आने नहीं दिया.
आखिरकार सिद्धू की संगठन में जम कर चली
पहली चीज़ ये की चन्नी पहली पसंद नहीं थे. बल्कि बड़े जट सिख नाम खारिज हो जाने की बाद चुने गए. यानि जब सुनील जाखड़ जैसे नाम लिस्ट में कट गए तो इनका नाम प्रपोज़ किया गया. दूसरी चीज़ ये कि नाम कांग्रेस आलाकमान के विचार विमर्श से नहीं बल्कि राज्य के गुटों ने अपने हिसाब से तय किया. तीसरी ये कि आखिरकार सिद्धू की संगठन में जम कर चली. यानि वो रंधावा के नाम को वीटो कर पाए और सन्देश कांग्रेस के संगठन को साफ़ चला गया कि जो भी अभी मुख्यमंत्री है उसको बनाने में सिद्धू का बड़ा हाथ है. मैं फिर कहूंगा कि एक बार फिर इस मामले में कहीं ये नहीं साबित हुआ कि ये कांग्रेस आलाकमान का मास्टर स्ट्रोक था बल्कि ये चीज़ उभर के आयी कि कांग्रेस नेतृत्व का होम वर्क पूरा नहीं था.
चन्नी के भविष्य पर अभी कई सवाल हैं
कांग्रेस के तथाकाहित मास्टर स्ट्रोक को पंजाब में कांग्रेस के मालवा के प्रदर्शन के सन्दर्भ में देखा जायेगा. मालवा दलित बाहुल्य इलाक़ा है. लेकिन सिखों का नेतृत्व पंजाब में जट सिखों के हाथ में रहा है और उनके पास नहीं जो दलित समुदाय से सिख बने थे. इसको जट सिख कितना पसंद करेंगे ये देखना बाकी है. इसको गुरुद्वारा प्रबंधन कमिटी कैसे देखेगी ये तस्वीर अभी साफ़ नहीं है. कैप्टन अमरिंदर सिंह क्या क्या करेंगे, ये भी तय नहीं है. कांग्रेस की दलित सिख राजनीति पंजाब में क्या रंग दिखायेगी इसके लिए थोड़ा इंतज़ार करना पडेगा?
लेकिन सवाल ये है कि चन्नी अब मुख्यमंत्री बनने के बाद सिद्धू की कितनी सुनेंगे क्योंकि जो पत्ता कांग्रेस बेच रही है उसमें चन्नी कभी भी सिद्धू के कैंप से उड़ कर अलग बैठ सकते हैं और अगर सफलता मिली तो उन्हें हटाना मुश्किल होगा? और हटा दिया तो कांग्रेस दलित हित के पक्ष में क्या कहेगी?


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