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- पंजाब नहीं बनेगा...
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By: divyahimachal
खालिस्तान समर्थक अमृतपाल सिंह अब जेल में है। यही उसकी नियति थी। गिरफ्तारी से पहले 35 लगातार दिनों तक वह पंजाब के बाहर हरियाणा, उत्तराखंड, उप्र और दिल्ली के गुरुद्वारों में छिपता रहा, लेकिन उसका नेटवर्क, संगठन छिन्न-भिन्न हो रहा था। सभी खास साथी जेल के भीतर पहुंच चुके थे। अमृतपाल समेत अधिकतर साथियों को ‘रासुका’ में कैद किया गया है। ‘देशद्रोह’ और ‘शांति भंग करने’ आदि के कानून भी लगाए गए हैं। कमोबेश एक साल तक तो उनकी जमानत की सुनवाई तक नहीं होगी। इन कथित देशद्रोहियों की अंतिम परिणति क्या होगी, अभी से अनुमान मुश्किल है, लेकिन वे अपने जीवन के ‘नरक’ में पहुंच चुके हैं, यह तय है। अमृतपाल की धरपकड़ मोगा जिले के रोडे गांव के गुरुद्वारे के बाहर हुई। यह खालिस्तान आंदोलन के स्वयंभू रहे जरनैल सिंह भिंडरावाले का पुश्तैनी गांव है। यहीं अमृतपाल ने खुद को ‘वारिस पंजाब दे’ संगठन का प्रमुख घोषित कराया था और एक बड़े जन-समूह को संबोधित भी किया था। गिरफ्तारी से पहले भी अमृतपाल ने गुरुद्वारे में संगत को संबोधित किया था, लेकिन उसने खुद को ‘योद्धा’ के तौर पर पेश किया था। बहरहाल भिंडरावाले की ‘छाया’ होने की उसकी अरदास जरूर पूरी हुई, लेकिन गिरफ्तारी के दौरान उसके समर्थन में न तो एक आवाज गूंजी और न ही कोई समर्थक मौजूद रहा। अमृतपाल पूरी तरह अकेला था। उसने जो हथियारबंद जत्थे तैयार किए थे, पाकिस्तान से जो फंडिंग और हथियार हासिल किए थे और खालिस्तान के नाम पर जिस जन-समूह को जोडऩे की साजिशें रच रहा था, वे सभी गायब रहे। अमृतपाल खाली हाथ था। पंजाब बिल्कुल शांत रहा। किसी भी कोने से आंदोलन या विरोध का एक भी स्वर नहीं उभरा। पत्नी को लंदन जाने से रोक दिया गया।
अब वह अमृतपाल के मां-बाप के साथ हैं। एजेंसियां इतनी जल्दी मुक्त नहीं करेंगी। बेहतर है कि खालिस्तान समर्थकों और खाडक़ुओं को असम की डिब्रूगढ़ जेल में कैद किया गया है, क्योंकि खालिस्तानी साजिशों के कुछ इनपुट खुफिया एजेंसियों को मिल रहे हैं। वे पंजाब को बिल्कुल शांत, स्थिर, खुशहाल देखने की पक्षधर हैं। अब आईबी, रॉ आदि खुफिया एजेंसियों की टीमें डिब्रूगढ़ जेल में ही अमृतपाल से पूछताछ करेंगी और उसके नापाक गठजोड़ और मंसूबों के खुलासे जानने की कोशिश करेंगी। दरअसल अमृतपाल दुबई में ट्रक ड्राइवर था। उसने ‘वारिस पंजाब दे’ के जरिए खालिस्तान का आंदोलन दोबारा उभारने का मुगालता पाल लिया था, लेकिन आज उसे एहसास हो गया होगा कि पंजाब हिंदुस्तान का अभिन्न हिस्सा है। सिख भारत के लिए मरने-मारने को तैयार हैं। इस देश में उसके रोजी-रोटी और बेटी के संबंध हैं, लिहाजा खालिस्तान की कोई गुंजाइश नहीं है। सिखों का ऐसा भद्दा और धोखेबाज का इतिहास नहीं रहा है। सिखों के प्रथम गुरु नानकदेव जी हमारे भक्तिकालीन संत शिरोमणि, कवि, विचारक कबीरदास के समकालीन थे। आज अमृतपाल के भीतर ही मोहभंग की स्थितियां पैदा हो रही होंगी कि आखिर उसने यह खंडित, अलगाववादी रास्ता क्यों चुना? अमृतपाल विदेशी चंदे और कट्टरपंथी सोच के नौजवानों के जरिए आनंदपुर खालसा फोर्स बनाने लगा था। भिंडरावाला दमदमी टकसाल का प्रमुख था, लिहाजा पंजाब के एक वर्ग में लोकप्रिय भी था, पर अमृतपाल की स्थिति और स्वीकार्यता ऐसी नहीं थी, लिहाजा बड़ी खामोशी के साथ उसे जेल तक भेजा जा सका है।
Rani Sahu
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