सम्पादकीय

पंजाब, पाकिस्तान और 'लोटातंत्र', तीनों में नाता क्या है और भारत के लिए खतरा क्या है?

Rani Sahu
21 March 2022 9:47 AM GMT
पंजाब, पाकिस्तान और लोटातंत्र, तीनों में नाता क्या है और भारत के लिए खतरा क्या है?
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पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान (Imran Khan) का तकिया कलाम है

बिपुल पांडे

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान (Imran Khan) का तकिया कलाम है, 'आपने घबराना नहीं है.' लेकिन अब वो खुद संकट में घिरे हैं तो उनसे ये कहने वाला कोई नहीं है कि 'आपने घबराना नहीं है'. पिछले कुछ दिनों में पाकिस्तान के लोकतंत्र (DEMOCRACY IN PAKISATAN) पर 'लोटातंत्र' ऐसा हावी हुआ कि इमरान खान सरकार का जाना तय हो चुका है. उन्हें ज्यादा से ज्यादा इस शुक्रवार तक ही गद्दी नसीब हो सकती है. इसके बाद फजलुर रहमान, आसिफ अली जरदारी और शेहबाज शरीफ की तिकड़ी कैसे तालमेल बिठाएगी और कैसे सरकार बनाएगी, इसे लेकर कुछ कहा नहीं जा सकता. चिंता की बात ये है कि इमरान की सरकार को पाकिस्तान की जनता नहीं, वहां की सेना विदा कर रही है. पाकिस्तान की सेना और खुफिया एजेंसी आईएसआई ने हाल फिलहाल के दिनों में अपना प्लान खालिस्तान तेजी से एक्टिवेट किया है. इस बीच पंजाब में आम आदमी पार्टी (AAP) की नई सरकार बनी है और कुख्यात आतंकवादी संगठन सिख फॉर जस्टिस (SFJ) पंजाब की भगवंत मान सरकार पर हमलावर हुई है. इन सारे घटनाक्रमों को एक-दूसरे से जोड़ना और समझना अत्यंत आवश्यक है.

क्या इमरान खान को शुक्रवार तक की मोहलत मिली है?
पाकिस्तान की जनता और मीडिया के बीच इस समय लोटे की जबर्दस्त चर्चा है. जनता लोटा लेकर सड़कों पर प्रदर्शन कर रही है और मीडिया अपने लोकतंत्र को 'लोटातंत्र' बनते देखकर कोस रही है. दरअसल 'बेपेंदी का लोटा' एक मुहावरा है, जिसका मतलब है- अगर लोटे की पेंदी ना हो तो वो इधर से उधर लुढ़कता रहता है. इमरान खान की पार्टी पीटीआई के दो दर्जन एमएनए (मेंबर ऑफ नेशनल एसेंबली) ऐसे लुढ़के कि इमरान की सरकार ही लुढ़कने जा रही है. इमरान के एमएनए उनको गद्दी से हटाने में जुटी तिकड़ी से जा मिले हैं और नियाजी के लिए नो ट्रस्ट मोशन मोशन से पार पाना अब असंभव लगने लगा है. पेच इतना ही नहीं है, इमरान सरकार के लिए अब गिरे कि तब गिरे जैसी स्थिति है. वजह ये है कि नेशनल एसेंबली के स्पीकर ने 25 मार्च को नो ट्रस्ट मोशन पर चर्चा के लिए सत्र बुलाया है, लेकिन पाकिस्तान के संविधान के हिसाब से जितने दिन के अंदर सत्र बुलाना चाहिए, ये उससे तीन दिन ज्यादा है. इसके खिलाफ फजलुर, जरदारी और शेहबाज ने हल्ला बोल रखा है. सोमवार सुबह से ही इस्लामाबाद में हंगामा शुरू हो गया. विपक्षी तिकड़ी अड़ी हुई है. नोटिस देने के बाद 21 मार्च से पहले-पहले सत्र बुलाया जाना चाहिए. और अगर सोमवार तक सत्र नहीं बुलाया गया तो विपक्ष OIC का सम्मेलन भी नहीं होने देगा. यानी इस्लामाबाद के रेड जोन में एक तरह से अराजक स्थिति है, जो कभी भी विस्फोट कर सकती है
इमरान खान को जाना क्यों पड़ रहा है?
इमरान खान पाकिस्तान के 22वें प्रधानमंत्री हैं. साल 2018 की गर्मियों में इमरान खान ने चुनाव जीतकर टॉप पोस्ट हासिल किया था. उनकी पार्टी पीटीआई को 176 वोट मिले थे, जबकि रनर अप रहे शेहबाज शरीफ की पार्टी पीएमएल-एन को 96 वोट मिले थे. यानी इमरान खान पूर्ण बहुमत से सत्ता में आए थे. बावजूद इसके इमरान खान से पहले के चार पाकिस्तानी प्रधानमंत्री, शाहिद अब्बासी, नवाज शरीफ, परवेज अशरफ या यूसुफ रजा गिलानी इनसे ज्यादा मेजॉरिटी से सरकार में आए थे. हकीकत ये है कि पाकिस्तान में इमरान खान के गद्दी पर बैठते ही उनकी कुर्सी को हिलाने की कोशिश शुरू हो गई थी. विपक्ष ने रनर अप रहे शेहबाज शरीफ को पब्लिक अकाउंट्स कमेटी (पीएसी) का चेयरमैन नॉमिनेट कर दिया. एक ऐसा विभाग जो सरकार के अकाउंट पर नजर रखती है और जो सरकार की धांधली उजागर कर सकती थी. इमरान को डर था कि विपक्ष ने उन्हें घोटालों में फंसाने का जाल बुना है, लिहाजा इमरान खान ने शेहबाज शरीफ को काम नहीं करने दिया. वो पीएसी के गठन को टरकाते रहे और यहां तक कि 2019 में शेहबाज को चेयरमैन पोस्ट से इस्तीफा दे देना पड़ा. इस दौरान वो पीएसी की एक भी मीटिंग नहीं ले पाए थे.
'आपने घबराना नहीं है' जैसा तकिया कलाम किसे हजम हो सकता है?
2011 में लाहौर जलसा में इमरान खान और उनकी पीटीआई ने भ्रष्टाचार के खिलाफ प्रचंड मुहिम चलाई थी और तब की सरकार की जड़ें उखाड़ दी. लेकिन इमरान खान 2017 से ऐसी लड़ाई लड़ रहे हैं, जो वो जीत नहीं सकते. अब तक वो उम्मीदों का कबूतर उड़ाकर उसपर तैर रहे हैं. उन्होंने पाकिस्तान को कर्ज मुक्त, भ्रष्टाचार मुक्त और महंगाई मुक्त मुल्क का सपना दिखाया. इस सपने को धरातल पर ना तो वो उतार सकते थे, ना उतार पाए. लेकिन जब देश की जनता पाई-पाई की मोहताज हो तब भी इमरान खान कहते रहे 'आपने घबराना नहीं है', जब कोरोना काल में बिना इलाज के लोग मरने लगे तब भी कहते रहे-'आपने घबराना नहीं है'. जनता को भला ये कैसे हजम हो. ये बात अलग है कि पाकिस्तान के लिए यह सिर्फ बहस का मुद्दा है. पाकिस्तान में लोकतंत्र और 'लोटातंत्र' पर बहस करना एक छलावा है. क्योंकि यहां पर सेना ही सरकार है. जब सेना को कुछ अलग करना होता है तो जनप्रतिनिधि लोटों को मोहरा बनाया जाता है.
बाजवा एंड कंपनी क्या चाहती है?
अब सवाल उठता है कि पाकिस्तानी सेना के जनरल कमर जावेद बाजवा और उनकी कंपनी क्या चाहती है? जब पाकिस्तान के हालात सेना ने ही खराब कर रखे हैं तो इमरान खान को हटाने से पाकिस्तान को क्या फायदा होगा? दरअसल ये ही वो सवाल हैं, जो भारत के लिए चिंताजनक हो सकते हैं. इमरान की विदाई की दो वजहें हो सकती हैं. पहली वजह ये कि अमेरिका से फंडिंग बंद होने और कोरोना काल के बाद पाकिस्तान में चारों तरफ हाहाकार है. जनता लाचार है, जिसका ठीकरा सरकार के सिर पर फोड़ने की तैयारी है. दूसरी वजह- कश्मीर में नाकाम हो रही पाकिस्तान की सेना भारत के खिलाफ कोई बड़ी साजिश रच रही है, जिसके लिए उसे अपने देश में एक अस्थिर सरकार चाहिए. (जो होता भी दिख रहा है.)
क्या पाकिस्तान की सेना प्लान खालिस्तान एक्टिवेट करने की साजिश रच रही है?
दरअसल जम्मू-कश्मीर को लेकर पाकिस्तान की सेना इतनी लाचार कभी नहीं रही है. सेना और पुलिस बल ने घाटी में आतंकवाद पर जीरो टॉलरेंस की नीति अपना रखी है. लोकसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने बताया है कि- साल 2020 में जम्मू कश्मीर में आतंकवादी गतिविधियों में 62 सुरक्षाकर्मी शहीद हो गए, जबकि 106 जवान घायल हुए हैं. जबकि 2021 में 42 सुरक्षाकर्मियों ने शहादत दी और 117 घायल हो गए. इन दो वर्षों में पाकिस्तान की ओर से घुसपैठ की 176 कोशिशें हुईं, जिनमें 31 आतंकियों ने देश के जवानों ने मार गिराया. जबकि जम्मू कश्मीर सीआरपीएफ के मुताबिक एक साल में 175 आतंकी मारे गए और इससे ज्यादा गिरफ्तार हुए. यानी घाटी में आतंकियों की एक नहीं चल पा रही. सवाल उठ रहे हैं कि क्या इससे पाकिस्तान की सेना और आईएसआई बौखलाई हुई है? और उसने प्लान खालिस्तान एक्टिवेट किया है?
पंजाब में मजबूत AAP कहीं कमजोरी ना बन जाए
पंजाब एक सीमांत राज्य है जहां पर पाकिस्तान लगातार खालिस्तानी आतंकवादियों को उकसाता रहा है. वहां पर देश की एक नई पार्टी का विस्तार हुआ है. अरविंद केजरीवाल की पार्टी AAP दिल्ली से निकलकर पंजाब पहुंची है. जाहिर है, ये लोकतंत्र के लिए कुछ गलत नहीं है और पंजाब के लिए खुशी की बात है. ये महज इत्तेफाक नहीं है कि आईएसआई की सिख फॉर जस्टिस पर छत्रछाया है और सिख फॉर जस्टिस पंजाब के मामलों में बढ़ चढ़कर बोलने लगी है. AAP के संयोजक अरविंद केजरीवाल के पैर छूने पर पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान को सिख फॉर जस्टिस के मुखिया गुरपतवंत सिंह पन्नू ने खुली धमकी दी है और पूरे पंजाब को केजरीवाल के पैरों में रख देने का अपराधी कहा है. इतना ही नहीं, पन्नू ने इसका बदला लेने वाले को एक लाख डॉलर इनाम देने का ऐलान किया है. एक आतंकवादी की इस धमकी को गंभीरता से नहीं लिया जा सकता. ये पंजाब के लिए गंभीर खतरा हो सकता है. इसलिए भारत सरकार को सिर्फ इमरान खान की विदाई नहीं देखनी चाहिए बल्कि आगे के लिए और भी तैयार, सजग और सतर्क रहना होगा. पाकिस्तान का लोटातंत्र एक गंभीर खतरे का संकेत दे रहा है, जिसका असर सीमांत राज्यों में दिख सकता है.
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