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Punjab Congress Crisis: हरीश रावत के लिए गले की फांस बन गया है पंजाब कांग्रेस की समस्या?
अजय झा| कहते हैं हर समस्या का कोई ना कोई समाधान होता है. 15 जुलाई को तो ऐसा लगने लगा था कि पंजाब कांग्रेस (Punjab Congress) की समस्या का समाधान निकल आया है. पार्टी के पंजाब प्रभारी हरीश रावत (Harish Rawat) ने घोषणा कर दी कि विद्रोही नेता नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) पंजाब प्रदेश कांग्रेस कमिटी के नए अध्यक्ष होंगे. हालांकि अब ऐसा लग रहा है जैसे ये मामला सुलझने की बजाय और उलझ गया है. रावत ने सिद्धू के बारे में घोषणा क्या की कि चंडीगढ़ में राजनीतिक गतिविधियां तेज हो गईं. मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह (CM Amarinder Singh) ने मोहाली के निकट सिसवान के अपने फार्महाउस पर अपने समर्थक विधायकों की एक बैठक बुलाई और कांग्रेस आलाकमान को सन्देश भिजवा दिया कि अमरिंदर सिंह को यह समाधान पसंद नहीं है. रावत ने पलती लगायी और कहा कि मीडिया ने उनके वक्तव्य का गलत मतलब निकाला, और अभी कोई आखिरी फैसला नहीं लिया गया है. बाद में रावत की पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) से उनके निवास 10 जनपथ पर मुलाकात हुई जिसके बाद रावत ने कहा कि उनकी पार्टी अध्यक्ष से मीटिंग में पंजाब के बारे में कोई चर्चा नहीं हुई और मीटिंग उत्तराखंड के बारे में थी.
रावत को कहीं ना कहीं लगता है कि अपनी भोली सूरत दिखा कर वह जो भी कहेंगे लोग मान जायेगे. मंगलवार को राहुल गांधी और प्रियंका गांधी की मुलाकात चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर से हुई जिसमे रावत भी शामिल थे. बैठक के बाद उन्होंने कहा कि राहुल गांधी के घर पर पंजाब के बारे में चर्चा नहीं हुई. बड़ी अजीब स्थिति है. पंजाब कांग्रेस में महासंग्राम मचा हुआ है जो आंख बंद कर के भी दिखता है. रावत पंजाब में प्रभारी हैं यह भी सभी को पता है. कांग्रेस में फैसला पार्टी आलाकमान, यानि गांधी परिवार के तीन सदस्य लेते हैं जिसके बारे में कोई दो राय नहीं हो सकती. तीन दिन में दो अलग-अलग बैठक होती है जिसमे रावत शामिल होते हैं, पर रावत कहते हैं कि उन बैठकों में पंजाब के बारे में चर्चा नहीं हुई!
पंजाब में दोनों गुट अपनी-अपनी बात मनवाने के लिए अड़े हैं
इतना स्पष्ट हो गया है कि पंजाब की समस्या काफी पेचीदा है. पर यह कोई भारत और चीन के बीच का सीमा विवाद तो है नहीं जिसका समाधान सात दशकों से नहीं निकला है. समस्या सिर्फ इतनी है कि अमरिंदर सिंह अपनी जिद पर अड़े हैं कि सिद्धू को प्रदेश अध्यक्ष या उपमुख्यमंत्री दोनों में से कोई पद नहीं दिया जाए, वर्ना… दूसरी तरफ सिद्धू हैं की उन्हें इन दोनों पदों के सिवा कोई तीसरा पद मंजूर नहीं है. दोनों संकेतों के द्वारा पार्टी को ब्लैकमेल करने की कोशिश कर रहे रहे हैं कि फैसला अगर उनके पक्ष ने नहीं लिया गया तो पार्टी का विभाजन हो सकता है. जहां आम आदमी पार्टी सिद्धू के स्वागत के लिए तैयार बैठी है, वहीं अमरिंदर सिंह के कुछ समर्थकों ने धमकी तक दे दी थी कि अगर उनके नेता की बात नहीं मानी गयी तो वह अपनी अलग पार्टी बनाने से परहेज नहीं करेंगे. यानि अगर कांग्रेस के सामने आग है तो पीछे खाई है. पार्टी जाये ही तो जाये किधर. और इस स्थिति के लिए कोई और नहीं बल्कि गांधी परिवार ही जिम्मेदार है.
हरीश रावत का काम केवल डाकिये का है?
रावत भले ही पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव हों और पंजाब के प्रभारी, पर उनका काम निर्णय लेना नहीं बल्कि एक डाकिये का है जिसका काम सिर्फ चिट्ठी यानि सन्देश पहुचाने का है. दो वर्ष से ज्यादा गुजर चुका है जब सिद्धू ने पंजाब के मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था. इस्तीफा उन्होंने मुख्यमंत्री को ना दे कर तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को भेजा था. दो वर्षों से गांधी परिवार को पता था कि पंजाब में समस्या है पर उसका समाधान ढूंढने की जगह उसे कालीन के नीच दबा दिया गया. और जब चुनाव सिर पर आ गया है और पानी सिर से ऊपर निकलने लगा है तो गांधी परिवार लचर और बेसहाय दिखने लगी है.
कांग्रेस में निर्णय लेने की क्षमता खत्म हो गई है?
कांग्रेस पार्टी में एक बड़ी समस्या है कि पार्टी में निर्णय लेने की क्षमता का आभाव है. गांधी परिवार के सिवा कोई और कुछ भी निर्णय नहीं ले सकता. और यह परिवार है जो या तो निर्णय लेना नहीं चाहता या फिर उसमें निर्णय लेने की क्षमता की कमी है. पिछले लगभग दो सालों से पार्टी किसी नियमित अध्यक्ष को चुनने में असफल रही है. राहुल गांधी का अध्यक्ष पद से इस्तीफा अगस्त 2019 में स्वीकार कर लिया गया था और तब से ही सोनिया गांधी अंतरिम अध्यक्ष पद पर विराजमान हैं. सोनिया गांधी की तबियत ठीक नहीं रहती और अब तो यह किसी इतिहासकार को ही पता होगा कि आखिरी बार वह जनता के सामने कब आईं थी. पिछले कई वर्षों में सोनिया गांधी ने सिर्फ एक ही फैसला लिया कि उनकी जगह हर फैसला राहुल गांधी ही लेंगे. और राहुल गांधी फैसला लेने के लिए जाने नहीं जाते हैं. अगर कोई फैसला लेते हैं तो वह पार्टी के लिए ज्यादा नुकसानदायक साबित होता है, जैसे की बिहार चुनाव में आरजेडी की पुछल्ली पार्टी बनना या फिर पश्चिम बंगाल चुनाव में मृत्यु सैय्या पर लेटी वाममोर्चे का जूनियर पार्टनर बनना. पार्टी में कोई अन्य फैसला ले नहीं सकता और गांधी परिवार फैसला लेना नहीं चाहता. क्योंकि सख्त निर्णय लेने के लिए दृढ़ इच्छा शक्ति की जरूरत होती है, जो अब गांधी परिवार का पास है नहीं.
पंजाब कांग्रेस क्राइसिस के लिए रावत को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता
संक्षेप में, हरीश रावत चाहे भले ही पंजाब के प्रभारी हों, लेकिन अगर पंजाब कांग्रेस की समस्या जो अब विकराल रूप धारण करती जा रही है उसके लिए रावत को दोष नहीं दिया जा सकता है. उन्हें तो सफ़ेद झूठ बोलने के लिए विवश कर दिया जाता है कि ना तो राहुल गांधी ने ना ही सोनिया गांधी ने पंजाब के बारे में कोई चर्चा की. कल शाम जो वह सिद्धू को प्रदेश अध्यक्ष बनाने कि बात कह कर पलट गए, वह भी शायद उनसे जान बूझ कर कराया गया. यह भी संभव है कि पहले रावत द्वारा सिद्धू में बारे में ऐलान करवा के पार्टी यह देखना चाहती थी कि अमरिंदर सिंह और उनके समर्थकों का उसपर क्या रिएक्शन होता है. रिएक्शन मिल गया और बेचारे रावत को पलटी लगानी पड़ी ताकि गांधी परिवार पर कोई आंच ना आये.