- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- Punjab Assembly...
x
कहते हैं कि पृथ्वी गोल है, जहां से चले वहीं वापस पहुंच जाएंगे
अजय झा कहते हैं कि पृथ्वी गोल है, जहां से चले वहीं वापस पहुंच जाएंगे. लगता है कि पंजाब में आम आदमी पार्टी (AAP) की भी परिक्रमा पूरी हो गयी है, पार्टी जहां से चली थी वहीं वापस पहुंचते दिख रही है. हम बात कर रहे हैं पंजाब विधानसभा चुनाव (Punjab Assembly Elections) में आप के मुख्यमंत्री पद के दावेदार की. पिछले वर्ष सितम्बर में आप प्रमुख अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) ने घोषणा की थी कि उनकी पार्टी किसी सिख नेता को ही मुख्यमंत्री पद के दावेदार के रूप में पेश करेगी. लगभग चार महीनों के बाद केजरीवाल ने पिछले बुधवार को घोषणा की कि पार्टी अगले हफ्ते इसकी घोषणा करेगी.
केजरीवाल का राजनीति करने का कुछ अलग ही स्टाइल है. 2012 में जब अन्ना हजारे के आन्दोलन से पनप कर केजरीवाल के नेतृत्व में कुछ लोगों ने एक नए दल के गठन की घोषणा की थी, तो जनता पर इसका फैसला छोड़ दिया गया था कि उस दल का नाम क्या हो. जनता को आम आदमी पार्टी नाम पसंद आया और आम आदमी पार्टी ने दिल्ली की राजनीति में लगातार दो बार विजय का एक ऐसा इतिहास रच दिया जिसकी पुनरावृत्ति भविष्य में शायद ही हो. दिल्ली से बाहर आप के लिए पंजाब ही अब तक सबसे उपजाऊ जमीन साबित हुई है, हालांकि पार्टी ने कई अन्य राज्यों में भी कोशिश की जिसमें अब तक सफलता नहीं मिली है.
भगवंत मान आप और केजरीवाल की मजबूरी ज्यादा हैं और पसंद कम
केजरीवाल बुधवार को पंजाब के दौरे पर थे, जहां उन्होंने आप के जनसंपर्क कार्यक्रम की शुरुआत की. चुनाव आयोग ने करोना के कारण फ़िलहाल रैली करने पर रोक लगा दी है, चुनाव प्रचार के लिए डिजिटल माध्यम और घर-घर जा कर मतदाताओं से संपर्क करने का ही रास्ता खोल रखा है. केजरीवाल ने मोहाली जिले के खरार चुनाव क्षेत्र से जनसंपर्क अभियान की शुरुआत की. जब पत्रकारों ने उनसे पूछा कि आप के चुनाव जीतने की स्थिति में मुख्यमंत्री कौन होगा तो उन्होंने इसका फैसला जनता पर छोड़ दिया. आप फ़िलहाल जनता की राय जानने में लगी है. एक मोबाइल नंबर है जिसपर लोग फ़ोन करके, या SMS और WhatsApp के जरिए सन्देश भेज कर अपनी राय 17 जनवरी तक दे सकते हैं. फिर पूरे लोकतान्त्रिक तरीके से उन मतों की गणना होगी और जिस नेता को जनता ने सबसे अधिक वोट दिया हो उसे आप विधिवत पंजाब चुनाव में मुख्यमंत्री पद के दावेदार के रूप में मतदाताओं के सामने पेश करेगी.
सवाल उठाया जा रहा है कि क्या आप अभी तक हरेक महत्वपूर्ण फैसले भी इसी जनतांत्रिक तरीके से लेती रही है, और स्पष्ट जबाव है, नहीं. पंजाब में इसका फैसला जनता पर छोड़ना यही दर्षाता है कि केजरीवाल के सामने कुछ दुविधा थी. माना जा रहा है कि जनता का फैसला भगवंत मान के हक़ में होगा जिनके नाम पर चर्चा पिछले पांच वर्षों से चल रही है. सवाल यह भी है कि अगर मान के नाम पर ही मुहर लगनी थी तो आप ने इतना समय क्यों जाया कर दिया. लगता है कि भगवंत मान आप और केजरीवाल की मजबूरी ज्यादा हैं और पसंद कम. शायद पार्टी पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू की प्रतीक्षा कर रही थी. कांग्रेस में जिस तरह से उठापटक चल रही थी, ऐसा लगने लगा था कि सिद्धू कांग्रेस पार्टी से अलग हो जाएंगे और आप पलके बिछाए सिद्धू के इंतजार में बैठी थी. पर जब ऐसा हुआ नहीं तो फिर मान के ताजपोशी की तैयारी शुरू हो गयी.
बिना चेहरे के चुनाव लड़ कर खामियाजा भुगत चुकी हा आप
यह पहला अवसर नहीं है जबकि आप सिद्धू का इन्तजार कर रही थी. 2017 के विधानसभा चुनाव के पहले भी सिद्धू की आप से बातचीत चल रही थी, पर सिद्धू जो बीजेपी छोड़ चुके थे, ने कांग्रेस पार्टी में शामिल होने का फैसला किया, हालांकि उस समय भी आप उन्हें मुख्यमंत्री पद के दावेदार के रूप में पेश करना चाहती थी. मान 2014 के लोकसभा में चुने जा चुके थे और 2016 में उन्हें आप ने पंजाब प्रदेश का अध्यक्ष नियुक्त किया था. मान की मंशा थी कि पार्टी उन्हें मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनाए, जो सिद्धू के चक्कर में नहीं हुआ, आप ने पंजाब चुनाव जनता को यह बिना बताये लड़ा कि जीत की स्थिति में उनका मुख्यमंत्री कौन होगा और पार्टी को इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ा.
मुख्यमंत्री पद के दावेदार के साथ चुनाव लड़ने का फायदा या नुकसान क्या होता है 2017 में पंजाब में इसका उदाहरण दिखा. कांग्रेस पार्टी गांधी परिवार के नाम पर चुनाव लड़ना चाहती थी. पर जब चुनाव पूर्व के सर्वेक्षणों में आप को आगे बढ़ते दिखाया गया तो कांग्रेस पार्टी ने कैप्टन अमरिंदर सिंह को मुख्यमंत्री पद के दावेदार के रूप में पेश किया, जिससे हवा रातोंरात बदल गई. पंजाब की जनता को आप पसंद थी पर उन्हें यह नही पता था कि मुख्यमंत्री कौन होगा? केजरीवाल के नाम था पर सभी जानते थे कि जीत की स्थति में वह दिल्ली के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे कर पंजाब नहीं आएंगे. कांग्रेस पार्टी की भारी जीत हुई और आप मात्र 20 सीटों पर ही सिमट गयी, सांत्वना यही था कि आप पंजाब विधानसभा में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी.
भगवंत मान के नाम पर पंजाब में चुनाव लड़ेगी आप?
पर केजरीवाल के नेतृत्व में आप एक बार फिर से वही गलती नहीं दोहराना चाहती. सिद्धू की चाह में चार महीनों का समय भी जाया हो गया, पर अब उम्मीद की जा रही है कि मान ही सही, आप उनके नाम पर ही जनता के बीच जायेगी. मान के नाम पर संकोच का एक बड़ा कारण रहा है उनकी शराब पीने की लत. पंजाब में शराब पीना आम बात है, राज्य पटियाला पेग के लिए भी मशहूर है. पर मान दिन में भी शराब के नशे में धुत हो कर पार्टी के कार्यक्रमों में या जनता के बीच जाते थे, जिस कारण पार्टी ने 2017 में उनके नाम पर जुआ नहीं खेला. मान अब कहते हैं कि उन्होंने शराब पीना काफी कम कर दिया है और यदाकदा ही वह शराब का सेवन करते हैं, जो शायद सच भी हो.
आप के पास मन के सिवा ऐसा और कोई नेता नहीं है जिसे पूरे पंजाब में जाना जाता हो. मान एक कॉमेडियन के रूप में पूरे पंजाब में विख्यात हैं और 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने अपने लोकप्रियता फिर से सिद्ध कर दी. पंजाब के 13 सीटों में से संगरूर से मान ही आप के सिर्फ एकमात्र विजेता बने. जहां बांकी और किसी सीट पर आप का कोई प्रत्याशी दूसरे नंबर पर भी नहीं आ पाया, मान ने जीत 1.10 लाख से भी अधिक वोट से हासिल की.
अब जबकि लगभग यह तय है कि भगवंत मान के जिम्मे ही आप की कमान होगी, एक दिलचस्प तथ्य यह भी है कि उनके सामने कांग्रेस पार्टी का मुख्यमंत्री पद का कोई चेहरा सामने नहीं होगा. सिद्धू और वर्तमान मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी के द्वन्द में उलझ कर कांग्रेस पार्टी ने बिना मुख्यमंत्री पद के दावेदार के ही चुनाव लड़ने की घोषणा की है. आप को फिर से सर्वेक्षणों में कांग्रेस पार्टी से आगे जाते दिखाया गया है जो बहुतमत से थोड़ा कम हो सकता है. देखना दिलचस्प होता है कि क्या भगवंत मान उस फासले को मिटा कर आम आदमी पार्टी को जीत दिला पाएंगे.
Rani Sahu
Next Story