सम्पादकीय

पंजाब विधानसभा चुनावः कांग्रेस के लिए सीएम पद का उम्मीदवार तय करना इतना सहज नहीं है

Rani Sahu
30 Jan 2022 8:51 AM GMT
पंजाब विधानसभा चुनावः कांग्रेस के लिए सीएम पद का उम्मीदवार तय करना इतना सहज नहीं है
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आम आदमी पार्टी के चुनावी दांव को देखते हुए राहुल गांधी ने घोषणा की है कि प्रदेश के पार्टी कार्यकर्ताओं से चर्चा के बाद कांग्रेस की ओर से मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार का नाम तय कर दिया जाएगा

आम आदमी पार्टी के चुनावी दांव को देखते हुए राहुल गांधी ने घोषणा की है कि प्रदेश के पार्टी कार्यकर्ताओं से चर्चा के बाद कांग्रेस की ओर से मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार का नाम तय कर दिया जाएगा. हालांकि AAP, जो कि राज्य चुनाव में कांग्रेस की प्रमुख प्रतिद्वंदी है, की नकल करने से कांग्रेस के भीतर सत्ता के लिए संघर्ष को बढ़ा सकता है, जो कि फिलहाल शांत है. कांग्रेस से अलग, AAP के भीतर भगवंत सिंह मान (Bhagawnt Mann) को सीएम पद का उम्मीदवार घोषित करने में किसी तरह का कंफ्यूजन नहीं था. यहां तक कि जब AAP ने सीएम पद के लिए उम्मीदवार चुनने के लिए पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच एक पोल किया था, उससे पहले ही संगरूर के लोकसभा सदस्य भगवंत मान एक स्पष्ट पसंद थे. इस पोल में मान को 93 फीसदी वोट प्राप्त हुए थे. इसके ठीक विपरीत, कांग्रेस के लिए सीएम पद का उम्मीदवार तय करना इतना सहज नहीं है. इस बात के स्पष्ट संकेत हैं कि पार्टी मौजूदा मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी (Charanjit singh channi) का पक्ष ले सकती है. राहुल गांधी का दावा है कि पीसीसी चीफ नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) सीएम पद के लिए हाईकमान के निर्णय का समर्थन करेंगे.

हालांकि, यदि इस बात में सच्चाई होती कि सिद्धू अपने हाईकमान के इतने आज्ञाकारी हैं कि वे अपनी महत्वाकांक्षा के साथ समझौता कर लेंगे, तो पंजाब कांग्रेस में किसी तरह का संकट ही नहीं पैदा होता. चीफ मिनिस्टर बनने की यह सिद्धू की खुली महत्वाकांक्षा ही है जिसकी वजह से कैप्टन अमरिंदर सिंह के साथ उनका राजनीतिक युद्ध हुआ. वास्तव में इस युद्ध में राहुल और प्रियंका ने भी बतौर अगुवा सैनिक ही हिस्सा लिया था. यहां तक कि सिद्धू ने यह संकेत दे दिया था कि वे असली हीरो हैं और राहुल और प्रियंका महज सहयोगी की भूमिका में हैं. हालांकि, कैप्टन पर हुई उनकी जीत का उल्लास ज्यादा समय तक नहीं टिका. उनको तब जोरदार झटका लगा जब अगले मुख्यमंत्री के लिए कांग्रेस ने दलित नेता चन्नी को चुना. मुख्यमंत्री न बनाए जाने से चोटिल सिद्धू ने चन्नी के खिलाफ भी उसी तरह का मोर्चा खोला जैसा उन्होंने अमरिंदर सिंह के खिलाफ खोला था.
सिद्धू की बलि देने की स्थिति में नहीं कांग्रेस
कांग्रेस के टॉप लीडरशिप ने सिद्धू द्वारा अपने ही सरकार पर किए जा रहे हमलों को भी बर्दाश्त किया, क्योंकि आने वाले चुनाव में सत्ता में आने के लिए वे सिद्धू की बलि देने की स्थिति में नहीं हैं. उनपर काफी कुछ निर्भर है. माना जाता है कि वह प्रियंका और राहुल गांधी के करीबी हैं. वे सिद्धू की उग्रता, आगे बढ़ने के जुनून, प्रतिद्वंदियों पर हमले करने के तरीके और उग्र-तेवर वाले चुनावी अभियान को पसंद करते हैं. ऐसा लगता है कि सिद्धू यह समझ चुके हैं कि बिना किसी डर के मुख्यमंत्री के अधिकारों को चुनौती दे सकते हैं. कहा जाता है कि चन्नी जब साल में आठ सिलेंडर और महिलाओं को प्रतिमाह 2 हजार रुपये देने की संभावनाओं पर वित्त मंत्री मनप्रीत सिंह बादल के साथ चर्चा कर रहे थे तो सिद्धू को अचानक इसकी भनक लग गई और भदौर में उन्होंने पहली बाजी मारते हुए यह कह दिया कि यदि उनकी पार्टी दोबारा सत्ता में आती है तो महिलाओं के तोहफों का पिटारा खोल दिया जाएगा. वे खुद की ओर लोगों का ध्यान खींचना चाहते थे. इसी तरह एक अन्य मामले में, जब पार्टी की स्क्रीनिंग कमेटी, जो उम्मीदवारों का चयन करती है, की बैठक हो रही थी तब सिद्धू ने कांदियां से मौजूदा विधायक फतेह जंग बाजवा के दोबारा उम्मीदवारी की घोषणा कर दी. साथ ही उन्होंने बटाला में आयोजित सार्वजनिक सभा में यह घोषणा कर दी कि अश्विनी सेखरी बटाला से पार्टी के उम्मीदवार होंगे.
सिद्धू ने चुनावी वादा न पूरा करने पर अमरिंदर सिंह पर भी हमले किए थे. अब वे इसी तरह चन्नी को भी नहीं बख्श रहे हैं. सिद्धू ने मुख्यमंत्री को इस बात के लिए मजबूर किया कि एडवोकेट जनरल एपीएस देओल की जगह डीएस पटवालिया और डीजीपी आईपीएस सहोता की जगह सिद्धार्थ चटोपाध्याय को लाया जाए. और यह सब जनता की नजर के सामने था.
खास बात ये है कि सिद्धू पहले ही मुख्यमंत्री के खिलाफ इस हद तक मोर्चा खोल चुके हैं, जब कांग्रेस ने अभी चन्नी को सीएम के चेहरा नहीं घोषित किया है. कल्पना कीजिए कि यदि पार्टी अगले पांच सालों के लिए भी चन्नी को चुनने का फैसला करती है तो सिद्धू क्या कर सकते हैं.कांग्रेस पार्टी में यह परंपरा नहीं रही है कि विधानसभा चुनावों में वह पहले से मुख्यमंत्री के पद का उम्मीदवार घोषित करे. यहां तक कि पार्टी के वर्तमान मुख्यमंत्री भी यह कहकर इस परंपरा का पालन करते रहे हैं कि चुनाव खत्म होने के बाद चुने गए विधायक ही अपने लीडर का चुनाव करेंगे.
सिद्धू और चन्नी के बीच जारी खुली जंग
सिद्धू और चन्नी के बीच जारी खुली जंग को देखते हुए, पार्टी के यह सबसे बेहतर होगा कि चुनाव खत्म होने तक इस विषय पर चुप्पी बनाए रखे. कांग्रेस के उम्मीदवार की लिस्ट में भी सिद्धू और चन्नी के बीच के मतभेद स्पष्ट सामने आते हैं, क्योंकि अपने समर्थकों को टिकट दिलाने में न तो सिद्धू ने कोई कसर छोड़ी है और न ही चन्नी ने.
बहुत से मौजूदा विधायकों को दोबारा उतारा जा रहा है. इनमें से ज्यादातर लोगों को 2017 में तब के प्रदेश प्रमुख और गांधी परिवार के करीबी माने जाने वाले अमरिंदर सिंह की वजह से टिकट मिला था. हालांकि, कुछ को छोड़ ज्यादातर विधायक पार्टी के साथ बने रहे और गांधी परिवार के साथ अपनी निष्ठा जताई. इन्होंने अमरिंदर का हाथ थामने के बजाए पार्टी को चुना.
इसलिए, हाईकमान को यह सलाह दी गई कि लीडरशिप के मसले पर वह विधायकों पर भरोसा करे. सीएम पद का चेहरा घोषित करने के लिए केवल पार्टी के भीतर कलह बढ़ेगी और इससे पार्टी की विश्वसनीयता पर गहरी चोट पहुंचेगी.
TV9 Hindi


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