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पंजाब (Punjab) की सियासत इन दिनों सुर्खियों में है
संयम श्रीवास्तव पंजाब (Punjab) की सियासत इन दिनों सुर्खियों में है, वजह हैं किसान आंदोलन के प्रमुख चेहरों में से एक और भारतीय किसान यूनियन के लीडर गुरनाम सिंह चढूनी (Gurnam Singh Charuni). जिन्होंने शनिवार को अपनी पार्टी 'संयुक्त संघर्ष पार्टी' बनाकर पंजाब विधानसभा चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है. हालांकि गुरनाम सिंह चढूनी के सियासी पार्टी बनाने और पंजाब विधानसभा चुनाव (Punjab Assembly Elections) लड़ने के कयास बहुत पहले से लगाए जा रहे थे, क्योंकि जिस तरह से पंजाब के किसानों ने केंद्र सरकार के तीनों नए कृषि कानूनों का विरोध किया था और एक बड़ा किसान आंदोलन खड़ा किया, जिसकी अगुवाई गुरनाम सिंह चढूनी जैसे नेता कर रहे थे. तो यह वाजिब था कि आने वाले समय में पंजाब विधानसभा चुनाव में भी उनकी भूमिका देखने को मिलती.
हालांकि सवाल जो सबसे खास है वह यह है कि क्या गुरनाम सिंह चढूनी पंजाब विधानसभा चुनाव में कुछ कमाल कर पाएंगे, क्योंकि अब भारतीय जनता पार्टी ने तीनों नए कृषि कानूनों को वापस ले लिया है और सबसे बड़ी बात कि जिस किसान आंदोलन को कैप्टन अमरिंदर सिंह ने खड़ा किया था, वह खुद ही बीजेपी के साथ गठबंधन करके पंजाब का विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं.
पंजाब में असरदार साबित होंगे गुरनाम सिंह चढूनी
इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि किसान आंदोलन और कांग्रेस पार्टी के अंदर हुए भीषण उठापटक ने पंजाब की सियासत को उलझा दिया है. ऐसे में नए लोगों के लिए भी मौके बने हैं. लेकिन यह मौके उन्हीं लोगों के लिए हैं जो शुरुआत से पंजाब की सियासत में दखल रखते हों. गुरनाम सिंह चढूनी की बात करें तो यह मूल रूप से हरियाणा की सियासत में दखल रखते हैं. 60 साल के गुरनाम सिंह चढूनी हरियाणा के कुरुक्षेत्र के रहने वाले हैं और भारतीय किसान यूनियन हरियाणा के अध्यक्ष भी हैं.
किसान आंदोलन को खड़ा करने में गुरनाम सिंह चढूनी का नाम सबसे ऊपर लिया जाता है. हालांकि यह इसलिए क्योंकि उन्होंने इस किसान आंदोलन का नेतृत्व हरियाणा में बखूबी किया था. किसान आंदोलन से पहले गुरनाम सिंह चढूनी कुरुक्षेत्र, कैथल, यमुनानगर और अंबाला जैसे क्षेत्र में अपनी सियासी धमक रखते थे. लेकिन किसान आंदोलन के बाद उनका नाम पूरे देश में जाना जाने लगा. शायद इसीलिए गुरनाम सिंह के चढूनी को लगता है कि वह अब पंजाब की सियासत में भी कुछ बड़ा कर सकते हैं. लेकिन अगर जमीनी हकीकत देखें तो हमें मालूम होगा कि इस बार पंजाब में सीधी लड़ाई कांग्रेस पार्टी, कैप्टन अमरिंदर सिंह+बीजेपी और आम आदमी पार्टी के बीच ही है, इसमें किसी तीसरे दल का दखल शायद ही देखने को मिले.
किसानों के मुद्दों समेत सभी मुद्दों पर चुनाव लड़ेंगे चढूनी
गुरनाम सिंह चढूनी जो शुरू से ही सिर्फ किसानों के मुद्दों पर सियासत करते आए हैं, वह अब अपनी राजनीतिक पार्टी बनाकर हर मुद्दे पर सियासत करेंगे. अपनी सियासी पार्टी बनाते वक्त चढूनी ने ऐलान किया कि उनकी पार्टी सभी धर्मों और जातियों के लिए बनाई गई पार्टी होगी. जिसमें ग्रामीण, शहरी, मजदूर, किसान और रेहड़ी पटरी के लोग होंगे. हालांकि गुरनाम सिंह चढूनी पहली बार चुनाव नहीं लड़ रहे हैं, इससे पहले वह बतौर निर्दलीय प्रत्याशी हरियाणा विधानसभा का चुनाव भी लड़ चुके हैं. हालांकि उसमें उन्हें हार का सामना करना पड़ा था.
2019 के लोकसभा चुनाव में उनकी पत्नी बलविंदर कौर भी आम आदमी पार्टी के टिकट पर मैदान में उतर चुकी हैं, लेकिन उन्हें भी हार का सामना करना पड़ा था. यानि बात साफ है कि सियासत में चढूनी की एंट्री कोई नई बात नहीं है, बल्कि यह सोची समझी एक प्लानिंग है. हालांकि पंजाब 2022 के विधानसभा चुनाव में गुरनाम सिंह चढूनी भी ताल ठोकेंगे इसमें संशय बरकरार है. क्योंकि उनके पास अभी तक पंजाब में 6 महीने पुराना स्थाई पता नहीं है. दरअसल इलेक्शन कमिशन के नियमों के हिसाब से किसी भी राज्य में विधानसभा का चुनाव वही व्यक्ति लड़ सकता है जिसके पास कम से कम उस राज्य में 6 महीने पुराना कोई स्थाई पता हो.
क्या सिर्फ आम आदमी पार्टी को फायदा पहुंचाएंगे चढूनी
गुरनाम सिंह चढूनी का राजनीतिक रिकॉर्ड आम आदमी पार्टी से जुड़ा हुआ है. और यह तब से है जब से आम आदमी पार्टी की शुरुआत हुई है. 2014 के लोकसभा चुनाव में भी आम आदमी पार्टी ने गुरनाम सिंह चढूनी को अपना उम्मीदवार बनाने की पेशकश की थी. हालांकि एक मुकदमे के चलते गुरनाम सिंह चढूनी 2014 का लोकसभा चुनाव नहीं लड़ पाए और उनकी जगह उनकी पत्नी ने आम आदमी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा. अब ऐसे में सवाल उठता है कि क्या पंजाब विधानसभा चुनाव में गुरनाम सिंह चढूनी की एंट्री पंजाब में आम आदमी पार्टी को सियासी फायदा पहुंचाने के लिए हुई है.
क्योंकि सभी जानते हैं कि किसान आंदोलन को खड़ा करने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह की रही थी जो अब कांग्रेस से अलग होकर अपनी पार्टी बनाकर बीजेपी से गठबंधन कर पंजाब विधानसभा चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुके हैं. बीजेपी के साथ कैप्टन अमरिंदर सिंह का गठबंधन केवल इस शर्त पर हुआ कि भारतीय जनता पार्टी तीनों नए कृषि कानूनों को वापस ले. अब जब बीजेपी ने इन कानूनों को वापस ले लिया है तो पंजाब के किसानों में यह संदेश गया है कि यह सब कुछ कैप्टन अमरिंदर सिंह के कहने पर हुआ है. यानि सीधे शब्दों में कहें तो कृषि कानूनों की वापसी का श्रेय कैप्टन अमरिंदर सिंह के सिर पर है और उन्हें इसका पंजाब विधानसभा चुनाव में सियासी फायदा भी मिलेगा.
आम आदमी पार्टी को पता है कि अगर कैप्टन अमरिंदर सिंह से यह सियासी फायदा छीनना है तो सबसे पहले किसी ऐसे नेता को सामने लाना होगा जिसकी पकड़ किसानों में मजबूत हो. ताकि पंजाब में जो किसानों का समर्थन कैप्टन अमरिंदर सिंह को मिले उसे तोड़ा जा सके. कुल मिला कर कहें तो चढूनी पंजाब विधानसभा चुनाव में एक वोट कटवा के अलावा कुछ सिद्ध नहीं होंगे. यानि उनकी एंट्री सिर्फ अमरिंदर सिंह को मिलने वाले किसानों का समर्थन कम करेगी, जिससे कांग्रेस पार्टी और आम आदमी पार्टी को फायदा पहुंचेगा.
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