सम्पादकीय

क्राइम थ्रिलर की तरह बनता जा रहा है पंजाब का विधानसभा चुनाव

Gulabi
9 Nov 2021 1:29 PM GMT
क्राइम थ्रिलर की तरह बनता जा रहा है पंजाब का विधानसभा चुनाव
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पंजाब का विधानसभा चुनाव

अजय झा.

पंजाब का आगामी विधानसभा चुनाव (Punjab Assembly Elections) किसी क्राइम थ्रिलर की तरह बनता जा रहा है, जिसमे अंत तक यह पता नही चलता कि कौन किसको और क्यों मार रहा है. चुनाव होने में अब तीन महीनों से भी कम समय बचा है, पर दिन प्रतिदिन प्रदेश में राजनीति उलझती ही जा रही है. किसने किसको मारने की सुपारी ले रखी है बताना मुश्किल होता जा रहा है. नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) अपनी ही कांग्रेस पार्टी के तत्कालीन मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के पीछे खंजर ले कर घूम रहे थे. अमरिंदर सिंह ने सिद्धू पर आरोप लगाया कि वह आम आदमी पार्टी में शामिल होने वाले हैं और कांग्रेस को कमजोर करने की कोशिश कर रहे हैं. सिद्धू अब तक तीन क़त्ल कर चुके हैं– सुनील जाखड़ को प्रदेश अध्यक्ष पद से और फिर अमरिंदर सिंह को मुख्यमंत्री पद से कांग्रेस आलाकमान ने सिद्धू की मांग पर हटा दिया. और अब तीसरा क़त्ल पंजाब के एडवोकेट जनरल एपीएस देओल का हुआ. सिद्धू के विरोध के कारण देओल को इस्तीफा देना पड़ा. पुलिस महानिदेशक इकबाल प्रीत सिंह सहोता का सर कभी भी कलम हो सकता है, क्योंकि सिद्धू को वह पसंद नहीं हैं और कांग्रेस आलाकमान को सिद्धू पसंद हैं.


सिद्धू ने प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद कांग्रेस को तहस नहस कर दिया है, पर अभी तक वह आम आदमी पार्टी में शामिल नहीं हुए हैं. इतना तो तय है कि सिद्धू ने कांग्रेस पार्टी को मारने की सुपारी ले रखी है और एक हद तक वह कामयाब हो रहे हैं, पर उन्हें सुपारी किसने दी यह रहस्य बना हुआ है. शायद आम आदमी पार्टी ने जो अभी भी सिद्धू के इंतज़ार में है और उसने अभी तक अपने मुख्यमंत्री पद के दावेदार की घोषणा नहीं की है! यह भी संभव हो सकता है कि सिद्धू को अमरिंदर सिंह की सुपारी राहुल गांधी ने दी हो, क्योंकि अमरिंदर सिंह राहुल गांधी को अपना नेता नहीं मानते थे और उनकी दरबार में हाजिरी नहीं लगाते थे. पार्टी चुनाव जीते या हारे यह राहुल गांधी के लिए शायद इतना माएने नही रखता है. जितना यह कि कांग्रेस पार्टी पर उनक एकछत्र राज हो.


बीजेपी ने कैप्टन अमरिंदर सिंह के सपनों का कत्ल किया
कांग्रेस पार्टी को शायद उम्मीद नहीं थी कि अमरिंदर सिंह कांग्रेस पार्टी को अलविदा कह कर अपनी पंजाब लोक कांग्रेस पार्टी का गठन करेंगे. इसका प्रत्यक्ष असर कांग्रेस पार्टी पर पड़ेगा. सितम्बर में मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद पिछले हफ्ते अपनी पार्टी बनाने के बीच अमरिंदर सिंह केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह, जिन्हें आधुनिक चाणक्य माना जाता है, से चार बार मिल चुके हैं. संभव है कि शाह ने कांग्रेस पार्टी के खिलाफ अमरिंदर सिंह को सुपारी दी हो!

अमरिंदर सिंह ने बीजेपी के शह पर अपनी पार्टी तो बना ली, पर अब तक वह इस इंतज़ार में बैठे थे कि उनके सुझाव पर केंद्र सरकार कृषि कानूनों में कुछ संशोधन करके कृषि फसलों पर न्यूतम मूल्य निर्धारित करने की घोषणा करेगी, ताकि किसान आन्दोलन खत्म हो जाए, बीजेपी से उनका गठबंधन हो जाए और किसानों के समर्थन से वह एक बार फिर से मुख्यमंत्री बन जाएं. पर रविवार को आशा के विपरीत बीजेपी नेशनल एग्जीक्यूटिव की मीटिंग में कृषि कानूनों पर चर्चा तक नहीं हुई, उल्टे बीजेपी ने ऐलान कर दिया कि वह पंजाब के सभी 117 सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है. यानि अमरिंदर सिंह के सपनों का क़त्ल अब तय है और इसके लिए बीजेपी को किसने सुपारी दी यह समझ से परे है. अमरिंदर सिंह अब अपने दम पर पंजाब चुनाव जीतने की स्थिति में नहीं हैं और बीजेपी पंजाब में अभी इतनी मजबूत नहीं हो पायी है कि वह अकेले चुनाव लड़ कर सत्ता में आ सके. बीजेपी ने पंजाब के सभी सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अश्विनी शर्मा के रिपोर्ट के आधार पर लिया है.

अकेले सत्ता की कुर्सी तक बीजेपी का पहुंचना मुश्किल
शिरोमणि अकाली दल ने बीजेपी से अपना पुराना संबंध पिछले वर्ष कृषि कानूनों के विरोध में तोड़ दिया था. अगर बीजेपी अमरिंदर सिंह को डरा कर और तोलमोल कर के ज्यादा सीट लेना चाहती है तब बात समझी जा सकती है, पर अकेले चुनाव लड़ कर मौजूदा विधानसभा में तीन विधयाकों से लम्बी छलांग लगा कर बीजेपी 59 सीट कैसे जीत पाएगी ताकि पंजाब में उसकी सरकार बने, यह एक उलझन ही है. कहीं ऐसा तो नहीं कि अश्विनी शर्मा को किसी ने पंजाब में अपनी ही पार्टी को क़त्ल करने की सुपारी दे दी हो, अगर हां तो वह कौन हो सकता है?

एक नजर में तो ऐसा ही प्रतीत होता है कि पंजाब में कोई भी पार्टी चुनाव जीतने की तैयारी नहीं कर रही है, बल्कि एक दूसरे को ठिकाने लगाने या खुद चुनाव हारने की तैयारी में जुटी है. रही बात शिरोमणि अकाली दल की तो पार्टी के चुनाव जीतने के आसार लगभग नगण्य है. और आम आदमी पार्टी जो मौजूदा विधानसभा में सबसे बड़ी विपक्षी दल है ने अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मार ली है. पार्टी को पंजाब में चरमपंथियों की पार्टी के रूप में ख्याति मिलती जा रही है, जो चुनाव जीतने का फार्मूला कतई नहीं हो सकता है. पंजाब में कौन किसे मारने में सफल रहा और इसका फायदा किसे मिला यह जानने के लिए चुनाव परिणाम आने तक प्रतीक्षा करनी होगी, क्योंकि यह बताना कि पंजाब में जीत किसकी होगी कठिन ही नहीं बल्कि असंभव है.
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