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उत्तर प्रदेश के लखीमपुर-खीरी में हिंसक घटनाओं के बीच राहत की खबर यह आई कि प्रशासन और किसान नेताओं में आरंभिक मसलों पर समझौता हो गया।
उत्तर प्रदेश के लखीमपुर-खीरी में हिंसक घटनाओं के बीच राहत की खबर यह आई कि प्रशासन और किसान नेताओं में आरंभिक मसलों पर समझौता हो गया। इससे मृत किसानों के शवों का पोस्टमॉर्टम और फिर अंतिम संस्कार का रास्ता साफ हो गया। आंदोलनकारी किसानों ने हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज से पूरे मामले की जांच कराने की मांग की थी, जिसकी तैयारी चल रही है। अभी तक यूपी सरकार ने इस मामले को अच्छी तरह संभाला है। उसने सही वक्त पर आला पुलिस अधिकारियों को मौके पर भेजा। मृतक किसान परिवारों को 45 लाख रुपये का मुआवजा और एक सदस्य को सरकारी नौकरी भी देने का वादा किया। इसके साथ 8 दिनों में आरोपियों को अरेस्ट करने की बात भी सरकार ने कही है।
इन उपायों से इलाके में तनाव कम करने में मदद मिल सकती है। साथ ही, इस मामले में कई चीजें अभी स्पष्ट होनी हैं। चार किसानों को एक केंद्रीय मंत्री के बेटे की गाड़ी से कुचले जाने के इल्जाम हैं तो किसानों पर भी बीजेपी के चार कार्यकर्ताओं को मार डालने के आरोप हैं। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी भी गौरतलब है। उसने भी कहा कि जब भी ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएं होती हैं, कोई जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं होता। प्रदर्शनकारी आंदोलन को शांतिपूर्ण बताते हैं, लेकिन हिंसा होने पर उसकी जिम्मेदारी नहीं लेते।
अदालत ने किसान महापंचायत की जंतर-मंतर पर सत्याग्रह की अनुमति मांगने वाली याचिका की सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की। दूसरी ओर, इस मामले में केंद्र सरकार की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि लखीमपुर खीरी जैसी घटनाओं को रोकने के लिए किसानों के विरोध प्रदर्शन पर तुरंत रोक लगाई जाए। किसानों और सरकार की इन दलीलों से अलग हमें यह सोचने की जरूरत है कि समय-समय पर लखीमपुर खीरी जैसी घटनाएं क्यों होती हैं और उन्हें किस तरह से रोका जाए। कुछ दिन पहले एक विडियो वायरल हुआ, जिसमें संबंधित केंद्रीय मंत्री आंदोलनकारी किसानों को चेतावनी देते दिख रहे हैं।
सोशल मीडिया पर एक और वीडियो चर्चा में है, जिसमें हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल समर्थकों से आंदोलनकारी किसानों को 'शठे शाठ्यम् समाचरेत' (जैसे को तैसा) की शैली में जवाब देने को कहते दिख रहे हैं। अगर ये वीडियो सही हैं तो कहना होगा कि ये बयान गैर-जिम्मेदाराना हैं। जो लोग जिम्मेदार पदों पर बैठे हुए हैं, उन्हें कुछ भी कहते हुए अपने पद की गरिमा का भी खयाल करना होगा। आखिर संवैधानिक, लोकतांत्रिक मूल्यों को संरक्षित रखने की पहली जिम्मेदारी उनकी ही बनती है। वहीं, अगर बात लखीमपुर खीरी मामले की करें तो जांच के बाद दोषियों को सजा मिलना भी जरूरी है। तभी इस तरह की घटनाओं का दोहराव रुक पाएगा।
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