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आम आदमी होने की सजा: उन लोगोंं की सुध क्यों नहीं ली जा रही, जो किसान संगठनों की धरनेबाजी से आजिज आ चुके हैं?
[ राजीव सचान ]: कृषि कानून विरोधी आंदोलनकारियों ने अपने आंदोलन के सात माह पूरे होने के मौके को भुनाने के लिए 26 जून को देश भर में राज्यपालों, उपराज्यपालों को ज्ञापन देने की ठानी। इसमें कुछ भी गलत नहीं था, लेकिन ज्ञापन देने का असल मकसद शक्ति प्रदर्शन करना अधिक था। इस मकसद को हासिल करने के लिए कई जगह सड़कों पर ट्रैक्टर समेत उतरा गया। वैसे तो ज्ञापन देने का यह कार्यक्रम सभी राज्यों की राजधानियों में किया जाना था, लेकिन आम किसानों के इस आंदोलन से दूर रहने के कारण वह चंडीगढ़ और दिल्ली में ही अधिक प्रभावी नजर आया। यह प्रभाव भी हुड़दंग और सड़कों पर जाम लगाकर पैदा किया गया। 26 जून को पंजाब, हरियाणा और दिल्ली-एनसीआर में तथाकथित किसान आंदोलनकारियों के कारण कई मार्गों पर यातायात अवरुद्ध हुआ। बतौर उदाहरण पंचकूला से यमुनानगर नेशनल हाईवे-सात, जीरकपुर-पंचकूला-कालका-शिमला हाईवे, चंडीगढ़ से कालका हाईवे और नेशनल-हाइवे-58 समेत दर्जनों और रास्तों को जाम किया गया। चुनिंदा राष्ट्रीय राजमार्गों के जाम का असर अन्य अनेक रास्तों पर पड़ा। इससे मोहाली से लेकर मेरठ तक लाखों लोग प्रभावित हुए। कुछ लोग तो घंटों जाम में फंसे रहे। कई जगह 15-20 किमी की दूरी तय करने में दो घंटे से अधिक लगे।