सम्पादकीय

भ्रष्ट को सजा

Triveni
16 Dec 2022 10:30 AM GMT
भ्रष्ट को सजा
x

फाइल फोटो 

सर्वोच्च न्यायालय का भ्रष्टाचार पर आया फैसला न केवल सुखद, बल्कि अनुकरणीय भी है।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क | -सर्वोच्च न्यायालय का भ्रष्टाचार पर आया फैसला न केवल सुखद, बल्कि अनुकरणीय भी है। किसी भ्रष्ट लोकसेवक के खिलाफ अगर प्रत्यक्ष सुबूत न भी हो, तो उसे परिस्थितिजन्य साक्ष्य के आधार पर दंडित किया जा सकता है। अपने देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष की जो स्थिति है, उसमें यह फैसला बहुत महत्वपूर्ण है। शिकायत करने वाला अगर मुकर भी जाता है या किसी वजह से साक्ष्य के लिए उपस्थित नहीं होता है, तो भी भ्रष्ट लोकसेवक को सजा सुनाई जा सकती है। न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ ने जोर देकर कहा कि भ्रष्टों को दोषी ठहराए जाने की जरूरत है, ताकि प्रशासन और शासन दोष रहित और भ्रष्टाचार से मुक्त हों। संविधान पीठ ने गुरुवार को साफ कर दिया कि किसी लोकसेवक के खिलाफ भ्रष्टाचार का मुकदमा स्वत: समाप्त नहीं हो जाएगा। आज लोगों के बीच आम धारणा यही है कि अगर शिकायत करने वाला मुकर जाए, तो मुकदमे की जान निकल जाती है और दोषी भी बरी हो जाता है। इस फैसले को अगर हम व्यापकता में देखें, तो देश में न्याय की संभावना बढ़ती हुई जान पड़ती है। इस संविधान पीठ में शामिल न्यायमूर्ति बीआर गवई, न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना, न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमण्यन और न्यायमूर्ति नागरत्ना को भी याद किया जाएगा। यह फैसला नजीर बन सकता है। भ्रष्टाचार हुआ है, तो इसकी पुष्टि के लिए परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर्याप्त हैं। संयोग से किसी साक्ष्य या गवाह की नामौजूदगी से अपराध कम नहीं हो जाता है। भ्रष्टाचार के मामलों में अक्सर देखा गया है कि दोषी भ्रष्टाचार का सहारा लेकर ही बच निकलते हैं। गवाह को मुकरने के लिए येन-केन-प्रकारेण तैयार कर लेने की परिपाटी किसी से छिपी नहीं है। यहां तक कि सजा से बचने के लिए गवाहों की हत्या का भी सहारा लिया जाता है। अदालती फैसलों में कई बार ऐसा संदेश सुनाई पड़ता है कि हमें पता है, अपराध हुआ है, पर चूंकि सुबूत नहीं हैं, इसलिए आरोपी को बाइज्जत बरी किया जाता है। अपराधियों को छोटे-छोटे संदेहों का सहारा लेकर भी खूब बचाया जाता है। भारत में आर्थिक अपराध के 30 प्रतिशत मामलों में भी सजा नहीं हो पाती है। सुबूतों का अभाव एक बड़ा कारण है। कई वकील तो सुबूतों में कमी खोजने या सुबूतों को अपर्याप्त साबित करने के लिए ही लाखों रुपये वसूलते हैं। आंध्र प्रदेश के इस मामले में निचली अदालत ने पहले यह कहा था कि यदि दोषियों के खिलाफ प्राथमिक साक्ष्य की कमी है, तो लोकसेवक को बरी किया जाना चाहिए। सर्वोच्च न्यायालय में भी दोषी को बरी करने की मांग तब भी हो रही थी, जबकि उसे रंगे हाथ पकड़ा गया था। यह अच्छी बात है कि सरकार का नजरिया सकारात्मक था। सरकार की ओर से भी यही तर्क दिया गया कि प्रत्यक्ष या प्राथमिक साक्ष्य की कमी के चलते दोषी स्वत: बरी नहीं होगा। अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने दोटूक कहा कि भ्रष्टाचार देश को खोखला बना रहा है। यह राष्ट्रीय हित की जड़ पर प्रहार करता है और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत कड़े प्रावधानों को पूरा अर्थ मिलना चाहिए। वाकई, सुबूतों या गवाहों के साथ खिलवाड़ करके बचने की किसी भी आपराधिक कोशिश को माकूल जवाब मिलना ही चाहिए। बेशक, सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले से इंसाफ और ईमानदारी के माहौल को बल मिलेगा।

Next Story