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जनता की भागीदारी जरूरी
12 सालों में एनडीआरएफ ने 01 लाख 14 हजार 492 लोगों की जान बचाई है और 5.50 लाख लोगों को अपनी जान पर खेलकर सुरक्षित जगहों तक पहुंचाया है। हमारे प्रदेश में कांगड़ा के नूरपुर में एनडीआरएफ यानी राष्ट्रीय आपदा अनुक्रिया बल स्थापित हो चुका है जिसमें आईटीबीपी के जवान तैनात हैं जो लगातार लोगों की हर आपदा व मुसीबत में सेवा कर रहे हैं। हाल में ही कांगड़ा जिले में कई स्थानों पर लगातार भारी बारिश के बाद अचानक धर्मशाला में बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में कई इमारतें क्षतिग्रस्त हो गई थीं। उसी समय शाहपुर (कांगड़ा) के राजोल गांव की बाढ़ में बुरी तरह फंसे सुनील कुमार को एनडीआरएफ की टीम ने देर रात जोखिमपूर्ण स्थितियों में बचाया था…
13 अक्तूबर का दिन बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। आज प्राकृतिक आपदा के निवारण को लेकर विश्व भर में लोगों को जागरूक करने के लिए कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। दुनिया में प्राकृतिक आपदाएं घटती ही रहती हैं। इस दिवस को इसलिए पारित किया गया है जिससे आपदाओं से निपटने के लिए लोगों को आगे आने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है, ताकि सभी इस खतरे को समझ सकें। प्राकृतिक आपदाओं के जोखिम को कम करने के लिए अंतरराष्ट्रीय दिवस पर गतिविधियों का आयोजन किया जाता है। प्राकृतिक आपदाएं अपेक्षाकृत तीव्रता से घटित होती हैं जिस पर मानव समाज का नियंत्रण नहीं के बराबर ही होता है। आपदाओं को दो वर्गों में वर्गीकृत किया गया है। पहली प्राकृतिक आपदा और दूसरी मानव जनित आपदा। 'प्राकृतिक आपदा' में भूकंप, ज्वालामुखी विस्फोट, भूस्खलन, हिमस्खलन, चक्रवात, बाढ़, सूखा, वनों में आग लगना, शीत लहर, समुद्री तूफान, ताप लहर, सुनामी, आकाशीय बिजली का गिरना, बादलों का फटना इत्यादि आते हैं।
'मानव जनित आपदा' में बम का विस्फोट, नाभिकीय रिएक्टर संयंत्रों से रेडियो एक्टिव रिसाव, रासायनिक कारखाने से जहरीली गैसों का रिसाव, मिट्टी के ज्यादा कटाव से भूस्खलन, रेल, वायुयान दुर्घटनाएं, महामारी एवं जैवीय आपदाएं, जल, भोजन, वायु या स्पर्श द्वारा फैलने वाले विभिन्न प्रकार के संक्रामक रोग महामारियां, युद्ध, दंगा, नाभिकीय दुर्घटना, आतंकवाद, विषाक्त रसायनों का विमोचन आदि आते हैं। भारत में प्राकृतिक आपदाओं के प्रबंधन के लिए गृह मंत्रालय नोडल मुख्यालय (एनडीएमए) भवन सफदरजंग एनक्लेव नई दिल्ली में है, जिसका मकसद आपदा जोखिमों में पर्याप्त रूप से कमी लाना है। जान-माल, आजीविका और संपदाओं, आर्थिक, शारीरिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और पर्यावरणीय के नुकसान को कम करना और आपदाओं से निपटने की क्षमता को बढ़ाया जाना है। राज्यों में एनडीआरएफ यानी नेशनल डिजास्टर रिस्पांस फोर्स, जिसे हिंदी में राष्ट्रीय आपदा अनुक्रिया बल कहते हैं। सशस्त्र बल और केंद्रीय पैरामिलिट्री बलों की तैनाती शामिल है, जो सभी प्रकार की आपदाओं से निपटने के लिए पूरी तरह से हमेशा तैयार रहते हैं। एनडीआरएफ एक नागरिक सुरक्षा बल है। इसका गठन डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट 2005 के अंतर्गत किया गया है।
आपातकाल या आपदा के समय होने वाली सभी समस्याओं, परेशानियों को दूर करने की विशेषता रखते हैं। इन्हें प्रत्येक परिस्थिति से निपटने की ट्रेनिंग दी जाती है। राष्ट्रीय आपदा मोचन और नागरिक सुरक्षा भी आपातकाल या आपदा के समय विशेषज्ञता और प्रतिबद्धता के साथ संगठित होकर प्रभावितों और हताहतों के भले के लिए काम करते हैं । एनडीएमए यानी राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन अथॉरिटी है जिसका मुखिया प्रधानमंत्री होता है। भारत के संघीय ढांचे में आपदा प्रबंधन का जिम्मा राज्य सरकार के कंधे पर होता है। केंद्र में गृह मंत्रालय, भारत सरकार सभी राज्य इकाइयों में समन्वय का काम करती है। बेहद गंभीर आपदाओं में केंद्र सरकार की जिम्मेदारी होती है कि वो प्रभावित राज्य के आग्रह पर सैन्य बल, एनडीआरएफ तमाम तरह की विशाल स्तर पर मदद राज्य को भेजते हैं, जो देश के अलग-अलग इलाकों में तैनात हैं। बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स को गुवाहाटी-असम, कोलकाता-वेस्ट बंगाल, पटना-बिहार। सीआईएसएफ को उड़ीसा, अराकोनम, तमिलनाडु, महाराष्ट्र। सीआरपीएफ को गांधीनगर-गुजरात, विजयवाड़ा-आंध्र प्रदेश। आईटीबीपी को गाजियाबाद-उत्तर प्रदेश, भटिंडा-पंजाब, हिमाचल, एसएसबी को वाराणसी-उत्तर प्रदेश, इटानगर-अरुणाचल प्रदेश इलाकों की जिम्मेदारी दे रखी है। 12 सालों में एनडीआरएफ ने 01 लाख 14 हजार 492 लोगों की जान बचाई है और 5.50 लाख लोगों को अपनी जान पर खेलकर सुरक्षित जगहों तक पहुंचाया है। हमारे प्रदेश में कांगड़ा के नूरपुर में स्थित एनडीआरएफ यानी राष्ट्रीय आपदा अनुक्रिया बल स्थापित हो चुका है जिसमें आईटीबीपी के जवान तैनात हैं जो लगातार लोगों की हर आपदा व मुसीबत में अपनी अहम सेवा दे रहा है।
हाल में ही कांगड़ा जिले में कई स्थानों पर लगातार भारी बारिश के बाद अचानक धर्मशाला में बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में कई इमारतें क्षतिग्रस्त हो गई थीं। उसी समय शाहपुर (कांगड़ा) के राजोल गांव की बाढ़ में बुरी तरह फंसे सुनील कुमार को एनडीआरएफ की टीम ने देर रात बेहद खतरनाक तरीके से बचाया था। प्राकृतिक आपदाओं के लिहाज से बेहद संवेदनशील माने जाने वाले हमारे प्रदेश को केंद्र सरकार जल्दी ही और भी एनडीआरएफ की बटालियनें खोलने का विचार कर चुकी है। पहले कोई आपदा आने पर पड़ोसी राज्य पंजाब से एनडीआरएफ की बटालियन आती थी। आपदाओं से होने वाले जोखिम को कम करने के लिए इस दिवस पर विभिन्न सरकारी और गैर सरकारी कर्मचारी संगठनों, स्वयंसेवकों द्वारा जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं जिसमें मीडिया की प्रमुख भूमिका होती है। आज युवा पीढ़ी इन्हीं आपदाओं को लेकर जागरूकता फैलाने के लिए फेसबुक, ट्विटर व अन्य सोशल साइटों का उपयोग करते हैं। आज जरूरत है कि स्कूली व कालेज शिक्षा पाठ्यक्रमों में भी आपदा प्रबंधन को जोड़ा जाए।
मनवीर चंद कटोच
लेखक भवारना से हैं
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