- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- एकाकी विवाह का...
x
एक सामाजिक प्राणी के रूप में आज के युग में यह हमारी एक बड़ी उपलब्धि होगा।
गुजरात के वडोदरा की चौबीस वर्षीय क्षमा बिंदु इन दिनों स्वयं से विवाह करने की घोषणा के कारण सुर्खियों में है। क्षमा बिंदु की इस घोषणा के बाद एकाकी विवाह या स्व-विवाह (सोलोगैमी या सोलो मैरेज) को लेकर देश भर में बहस छिड़ी हुई है। यदि भारतीय समाज में विवाह की बात की जाए, तो यह एक सामाजिक संस्था के रूप में तो स्वीकृत है ही, साथ ही सांस्कृतिक और आध्यात्मिक आयाम भी इससे जुड़े हुए हैं। विवाह जहां लोगों की मूलभूत आवश्यकताओं को परिवार और समाज के माध्यम से स्थायित्व प्रदान करता है, वहीं परस्पर समायोजन के आदर्श को भी प्रस्तुत करता है। जब भी विवाह की चर्चा होती है, तो इसमें दो परिवार, दो कुल, दो व्यक्तियों की आत्माओं के जुड़ाव की बात परंपरा से मानी जाती रही है।
समय के साथ समाज में परिवर्तन स्वाभाविक है। परिणामस्वरूप हमें लिव इन रिलेशनशिप, एकाकी अभिभावकत्व जैसे रूप बहुधा देखने को मिलते हैं। इसका मूल कारण है कि जिन मूल आवश्यकताओं के तहत इस संस्थान-संस्कार विशेष की आवश्यकता का अनुभव किया गया था, बदलते समाज ने उसके दूसरे माध्यम भी क्रमशः तलाश लिए। लेकिन बदलते हुए समाज में यदि कोई परिवर्तन समाज के साथ-साथ प्रकृति के नियमों की भी उपेक्षा करे, तो समाज की दशा-दिशा पर पुनरालोकन जरूरी जान पड़ता है। जापान में महिलाएं बड़े उत्साह से एकल विवाह पद्धति को अपना रही हैं। यह एक ऐसा विशेष सामाजिक रुझान है, जिसने विवाह जैसी संस्था के मानकों को बिल्कुल भिन्न तरीके से दर्शा कर नारी मुक्ति की एक विचित्र इबारत लिख दी
है।
विवाह किसी व्यक्ति के उमंग या उत्साह का कारण इसलिए होता है, क्योंकि उसे जीवन सहचर के रूप में परस्पर एक भावनात्मक, पारिवारिक, सामाजिक और बहुधा आर्थिक सुरक्षा प्राप्त होती है। इसमें भी नैतिक संबल व्यक्ति की जिजीविषा का सर्वाधिक महत्वपूर्ण कारक होता है। विवाह में सर्वाधिक महत्वपूर्ण होता है, वर-वधू के बीच होने वाला आत्मीय वैवाहिक संबंध। भले ही हमारे समाज के लिए यह विचित्र लगे, लेकिन हमारे इसी भूमंडल पर बहुत-सी लड़कियां पिछले एक दशक से एकल विवाह (सोलो मैरिज) को वरीयता दे रही हैं। वे खुद का ख्याल रखने और खुद के साथ जिंदगी भर रहने का वादा तक करती हैं। उन्हें किसी पुरुष सहचर की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि वे जीवन भर एकाकी रहने का वचन ले चुकी हैं।
एकाकी विवाह जहां स्त्रियों की स्वावलंबी और सशक्त होती मानसिकता का परिचायक है, वहीं शादी में दूल्हे का न होना विवाह संबंधी सामाजिक ढांचे में भयावह टूटन का भी संकेत है। भारतीय समाज में विवाह संस्कार में पत्नी की भूमिका सहधर्मिणी की होती है। पति-पत्नी गृहस्थी रूपी रथ के दो पहिए माने गए हैं। ऐसे में स्वयं से किया गया एकाकी विवाह प्रकृति और समाज के साथ किस प्रकार का सामंजस्य बना पाएगा? देखा जा रहा है कि टूटे संबंधों से हताश, जीवन में अपने परिचितों के कटु अनुभव के चलते लड़कियां किसी पुरुष के साथ बंधने से बच रही हैं। प्रेम, विश्वास की बुनियाद की अपेक्षा रखने वाला वैवाहिक संबंध अब एक समझौता बनकर रह गया।
सोशल मीडिया के बढ़ते रुझान के दौर में लड़कियों द्वारा खूबसूरत वेडिंग गाउन पहनकर बकायदा सोलो वेडिंग शूट करवाए जा रहे हैं। तस्वीरें खिंचवाना या उसे सोशल साइट्स पर अपलोड करना निस्संदेह किसी का व्यक्तिगत मामला हो सकता है, किंतु इसे विवाह का नाम देना पारंपरिक विवाह संस्था को चुनौती देने के समान है। जापान, इटली, ऑस्ट्रेलिया, ताइवान, अमेरिका, ब्रिटेन में यह प्रवृत्ति बहुत तेजी से नई जीवन-शैली का हिस्सा बन रही है। इससे पहले कि भारतीय समाज में एकाकी विवाह के इक्का-दुक्का मामले व्यापक स्तर पर प्रचलन में आए, हमें अपने पारिवारिक एवं सामाजिक संबंधों को स्वस्थ, सुखी और प्रगाढ़ बनाने के लिए नए सिरे से प्रयास करना चाहिए। टूटते और एकाकी होते परिवार और लोगों के बीच यदि हम अपने संबंधों को प्रतिबद्धताओं के साथ प्रेम तथा विश्वास का आधार दे सकें, तो एक सामाजिक प्राणी के रूप में आज के युग में यह हमारी एक बड़ी उपलब्धि होगा।
सोर्स: अमर उजाला
Next Story