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- चुनाव की मनोवैज्ञानिक...
चुनाव अब वन काटुओं की तरह आ रहे हैं और एक तरह मुद्दा विहीन जंगल को काट कर हतप्रभ करते हैं। हकीकत और बौद्धिक बहस से कहीं दूर और मध्यम वर्ग से किनारा करते हुए चुनाव पिछली परंपराओं को झुठला रहे हैं और जनता को बरगला रहे हैं। पुनः लौटती सरकारों के पदचाप ने भाजपा के करिश्मे को इतना आगे बढ़ा दिया है कि अब आगामी चुनावों के दुर्ग इंगित हैं। यानी कल हो न हो जैसै वाक्यों से किनारा करती हकीकत अब हिमाचल जैसे राज्य के लिए मिशन रिपीट के नारे को बुलंद कर रही है। यह इसलिए भी कि उत्तराखंड से सटे हिमाचल की राजनीतिक हवाएं और मौसम काफी हद तक मिलते हैं और एक साझी मनोवैज्ञानिक बिसात भाजपा का कार्य आसान करती है। अपनी संभावनाओं से दूर हटती कांग्रेस के तेवर और नखरे नहीं बदले, तो हिमाचल का मुकाबला इस बार अति कठिन होता जाएगा। विधानसभा के 2017 में हुए चुनाव में भाजपा ने 48.8 प्रतिशत जबकि कांग्रेस ने 41.7 प्रतिशत मत हासिल किए थे। यानी दोनों पार्टियों के बीच करीब सात प्रतिशत के अंतर को बटोरना या सहेजना इस साल के अंत में होने जा रहे चुनावों को अग्नि परीक्षा में डालते हैं।
क्रेडिट बाय दिव्याहिमाचल