सम्पादकीय

समझदारी जरूरी

Rani Sahu
24 March 2022 5:47 PM GMT
समझदारी जरूरी
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हिजाब मामले में देश की सर्वोच्च अदालत का रुख प्रथम दृष्टया प्रशंसनीय और सांकेतिक है

हिजाब मामले में देश की सर्वोच्च अदालत का रुख प्रथम दृष्टया प्रशंसनीय और सांकेतिक है। प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना के रुख से समाज में समझदारी का अनुपात बढ़ना चाहिए। अदालत का इशारा है कि मामले को ज्यादा सनसनीखेज न बनाया जाए। इस मामले को सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष लाने वाले अधिवक्ता ने परीक्षाओं का हवाला देते हुए जल्दी सुनवाई की मांग की थी, पर अदालत को जल्दी नहीं है। अदालत ने कहा है कि परीक्षाओं का इस मुद्दे से कोई लेना-देना नहीं है। परीक्षा देने संबंधी जो प्रावधान हैं, उनमें हिजाब जैसी कोई बात नहीं है। कर्नाटक में कई लड़कियों ने हिजाब पहनने की जिद के कारण परीक्षा में बैठने से इनकार कर दिया था। कर्नाटक सरकार पहले ही स्पष्ट कर चुकी है कि दोबारा परीक्षा नहीं ली जाएगी, जबकि कुछ लड़कियों की मांग है कि परीक्षा फिर से ली जाए, वरना साल बर्बाद हो जाएगा। यहां प्रश्न प्राथमिकता का है, हिजाब या परीक्षा? ऐसे कारणों से अगर परीक्षा दोबारा होने लगे, तो एक नई परिपाटी शुरू हो जाएगी, जिसे गलत मानने वाले भी अच्छी-खासी संख्या में होंगे। फिर भी उन लड़कियों के बारे में शिक्षा के कर्णधारों को स्थानीय स्तर पर कोई फैसला लेना चाहिए, ताकि उनका साल बर्बाद न हो।

वैसे तो कर्नाटक उच्च न्यायालय ने पहले ही अपना फैसला सुना दिया है कि हिजाब अनिवार्य नहीं है। यह कोई ऐसा हक नहीं है, जो मजहब से हासिल होता हो। आम जनजीवन में हिजाब पर कोई रोक नहीं है, कोई भी पहन सकता है, लेकिन जब बात स्कूल और कॉलेज की आती है, तो अनुशासन और एकरूपता को अहमियत देना अपरिहार्य है। जाहिर है, इस फैसले से असंतुष्ट लोगों ने सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है और सर्वोच्च न्यायालय ने बिल्कुल वाजिब इशारा किया है कि यह मामला उतने महत्व का नहीं है, जितना उसे बनाया जा रहा है। कर्नाटक उच्च न्यायालय ने न्यायिक और धार्मिक आधारों के अध्ययन के बाद अपने फैसले में हिजाब सहित शैक्षणिक संस्थानों के अंदर सभी तरह के धार्मिक कपड़ों पर प्रतिबंध को सही माना था। अब सर्वोच्च न्यायालय को विचार करना है, क्या हिजाब जरूरी धार्मिक प्रथा है।
वास्तव में, ऐसे मामलों को हम जरूरत से ज्यादा तरजीह देने लगे हैं। कई बार सनसनीखेज और हिंसक भी बना दे रहे हैं। अगर हम इसी मामले को लें, तो उच्च न्यायालय के जिन न्यायाधीशों ने यह फैसला सुनाया था, उन्हें मौत की धमकी दे दी गई। शिकायत मिलने के बाद न्यायमूर्तियों को वाई श्रेणी की सुरक्षा प्रदान की गई है। किसी भी चीज को धर्म के नजरिए से देखने में बुराई नहीं है, पर जब सांप्रदायिकता के नजरिए से देखा जाता है, तब समस्या होती है। हिजाब के पक्ष और विपक्ष, दोनों तरफ सांप्रदायिकता की घुसपैठ है। अदालत इस घुसपैठ से परे जाकर संविधान की रोशनी में ही विचार करेगी। आज समाज जिस ओर बढ़ रहा है, उसमें सांप्रदायिकता की चाशनी में पगे ऐसे मामले खूब सामने आएंगे। अव्वल तो लोगों को ही सावधान रहना होगा। स्कूलों, कॉलेजों में प्राथमिकता पढ़ाई ही रहे। सामान्य शिक्षा किसी धार्मिक कर्मकांड का क्षेत्र नहीं है। स्कूलों-कॉलेजों के बाहर धार्मिक व्यवहार की भी पूरी आजादी है, जिसकी रक्षा संविधान करता है और हमेशा करेगा। अब स्कूलों में भी धर्म के नाम पर किसी परिधान को अगर स्वीकार किया जाना है, तो इसके लिए भी सद्भाव जरूरी है, ताकि हम अप्रिय स्थितियों से बचते हुए राह निकाल सकें।

क्रेडिट बाय हिन्दुस्तान

Rani Sahu

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