सम्पादकीय

भड़काऊ राजनीति: अराजकता का परिचय दे रहे युवाओं को भड़काने का काम कर रहे विपक्षी दल

Gulabi Jagat
18 Jun 2022 5:53 AM GMT
भड़काऊ राजनीति: अराजकता का परिचय दे रहे युवाओं को भड़काने का काम कर रहे विपक्षी दल
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भड़काऊ राजनीति
सेना में भर्ती के लिए लाई गई अग्निपथ योजना के विरोध में कई राज्यों में बड़े पैमाने पर आगजनी और तोड़फोड़ के शर्मनाक सिलसिले के बीच कई विपक्षी दलों की ओर से जिस तरह इस योजना को वापस लेने पर जोर दिया जा रहा है, वह एक तरह से आग में घी डालने वाला कृत्य है। दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि अग्निपथ योजना को वापस लेने की मांग करने वाले राजनीतिक दलों में वह कांग्रेस सबसे आगे है, जिसने इस देश की सत्ता पर लंबे समय तक शासन किया है और जो इससे कहीं अच्छी तरह अवगत है कि देश के सैन्य ढांचे में व्यापक बदलाव समय की मांग है। क्या कांग्रेस को यह पता नहीं कि भारतीय सेना के तीनों अंग किन समस्याओं से दो-चार हैं और उनका प्राथमिकता के आधार पर समाधान करना कितना आवश्यक है?
यह समझ आता है कि अग्निपथ योजना के कुछ प्रविधानों में संशोधन-परिवर्तन की मांग की जाए, लेकिन इसका तो कोई मतलब ही नहीं कि उसे वापस लेने की जिद की जाए। विपक्षी दल ऐसी जिद करके एक तरह से उन युवाओं को भड़काने का ही काम कर रहे हैं, जो अराजकता का परिचय दे रहे हैं। इससे भी खराब बात यह है कि वे इस खुली अराजकता के विरोध में कुछ कहने के बजाय किंतु-परंतु के साथ युवाओं के अराजक व्यवहार को सही बताने की कोशिश करते दिख रहे हैं। क्या इससे अधिक गैर जिम्मेदाराना राजनीति और कोई हो सकती है?
एक ऐसे समय जब दुनिया के सभी प्रमुख देश अपनी सेनाओं की औसत आयु कम करने, संख्याबल घटाने, सेवा शर्तों में बदलाव करने, वेतन-पेंशन खर्च में कटौती करने के साथ उनका आधुनिकीकरण करने में लगे हुए हैं, तब इसका कोई औचित्य नहीं कि भारत ऐसा कुछ न करे-और वह भी तब, जब सुरक्षा के मोर्चे पर चुनौतियां बढ़ती जा रही हैं। यदि विपक्षी दल इन तथ्यों से अनजान बने रहने का दिखावा करना चाहते हैं कि रक्षा बजट का एक बड़ा हिस्सा सैनिकों के वेतन एवं पेंशन में खप जा रहा है और उसके चलते सेनाओं के आधुनिकीकरण का लक्ष्य पीछे छूटता जा रहा है तो इसका यही अर्थ निकलता है कि वे राष्ट्रहित से अधिक महत्व अपने संकीर्ण राजनीतिक स्वार्थों को दे रहे हैं।
अब जब यह स्पष्ट है कि विपक्षी दल अग्निपथ योजना के विरोध में उत्पात मचा रहे युवाओं की आड़ में अपनी राजनीतिक रोटियां सेंक रहे हैं, तब फिर सरकार को हालात संभालने के लिए और अधिक सक्रियता दिखानी चाहिए। इस क्रम में उसे यह भी दृढ़ता से प्रदर्शित करना होगा कि वह इस योजना में आवश्यक सुधार करने के लिए तो तैयार है और कर भी रही है, लेकिन भीड़तंत्र के आगे झुकने का कहीं कोई प्रश्न नहीं उठता।

दैनिक जागरण के सौजन्य से सम्पादकीय
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