सम्पादकीय

अफगान मामले में बाइडेन खुद को साबित करें, आतंकियों से अमेरिका को सुरक्षित करने का बाइडेन के पास क्या तरीका है

Rani Sahu
19 Aug 2021 10:07 AM GMT
अफगान मामले में बाइडेन खुद को साबित करें, आतंकियों से अमेरिका को सुरक्षित करने का बाइडेन के पास क्या तरीका है
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अफगानिस्तान में अमेरिकी मिशन के बारे में बताने के लिए सालों तक अमेरिकी अधिकारी एक शॉर्टहैंड मुहावरे का इस्तेमाल करते रहे-

थाॅमस एल. फ्रीडमैन का कॉलम: अफगानिस्तान में अमेरिकी मिशन के बारे में बताने के लिए सालों तक अमेरिकी अधिकारी एक शॉर्टहैंड मुहावरे का इस्तेमाल करते रहे- 'हम वहां अफगान आर्मी को अपनी ही सरकार से लड़ने का प्रशिक्षण देने के लिए हैं।' और फिर ये मिशन में मिल रही सारी असफलताओं के लिए शॉर्टहैंड मुहावरे में बदल गया, ये विचार कि अफगानों को नहीं पता कि लड़ा कैसे जाता है, क्या वाकई में ऐसा है? अफगानों को लड़ना सिखाना मतलब प्रायद्वीपीय इलाकों में रहने वालों को मछली पकड़ना सिखाना है।

यह इस बारे में कभी भी नहीं था कि अफगान सहयोगियों ने जिस तरह से लड़ाई लड़ी। यह हमेशा से भ्रष्ट अमेरिकी समर्थक, पश्चिमी समर्थक सरकारों के लिए लड़ने की उनकी इच्छाशक्ति के बारे में था, जिसे अमेरिका ने काबुल में खड़े होने में मदद की। और शुरुआत से छोटी तालिबानी सेनाओं में मजबूत इच्छाशक्ति थी।
कट्‌टर राष्ट्रवाद के सिद्धांतों के लिए लड़ने के रूप में देखे जाने का लाभ भी उन्हें मिला। और विदेशियों से आजादी और धर्म, संस्कृति, कानून और राजनीति के आधार के रूप में कट्टरपंथी इस्लाम का संरक्षण मिला। अब आता है मूल और दर्दनाक सवाल कि क्या अमेरिकी मिशन पूरी तरह नाकामयाब रहा?
तालिबान से बात शुरू करते हैं। क्या तालिबान फिर से वहीं से शुरू करेगा जैसा 20 साल पहले छोड़कर गया था? अलकायदा को पनाह देने वाला, कट्टर इस्लाम थोपने वाला और महिलाओं के साथ अत्याचार करने वाला। मुझे नहीं पता। बस मुझे ये पता है कि उन पर अफगानियों को नौकरी देने का दबाव होगा। और उन्हें कतर, यूएई, सऊदी अरब, पाकिस्तान, यूरोपियन यूनियन के देशों से विदेशी मदद और निवेश की जरूरत होगी, जिन पर अमेरिका का प्रभाव है।
कॉम्बैटिंग टेररिज्म सेंटर के एक पेपर में थॉमस रुटिंग लिखते हैं कि 2001 के बाद का तालिबान ज्यादा सीखा हुआ और ज्यादा राजनीतिक संगठन साबित हो रहा है। 2001 में अफगानिस्तान में किसी के पास मोबाइल नहीं था। आज 70 फीसदी अफगानियों के पास है और अधिकांश के पास इंटरनेट वाले स्मार्टफोन हैं। हालांकि फोन होने का मतलब स्वाभाविक रूप से कुछ भी उदार नहीं है।
2017 में इंटरन्यूज के अध्ययन के अनुसार, अफगानिस्तान का सोशल मीडिया पहले से ही बदलाव का प्रचार कर रहा था यह भ्रष्टाचार और अन्याय के मामलों की आलोचना करने का मंच बन गया था, जिन्हें पारंपरिक मीडिया पर तवज्जो नहीं मिली। हो सकता है कि तालिबान ये सब बंद कर दे। या ये भी हो सकता है कि वे ऐसा न कर पाएं।
जहां तक ​​बाइडेन टीम का सवाल है, काबुल में उस दिन की सुबह से बुरी सुबह की कल्पना करना मुश्किल है। उचित सुरक्षा और बदलाव की प्रक्रिया को सुरक्षित बनाने में उसकी नाकामयाबी भयावह है। लेकिन अंतत: बाइडेन टीम को इस बात से आंका जाएगा कि वह इस सब को कैसे संभालती है। बाइडेन ने एक दावा किया, जिसे ट्रम्प की टीम ने भी साझा किया कि अगर हम अफगानिस्तान से बाहर होते तो किसी भी आतंकवादी खतरे से निपटने में अमेरिका अधिक सुरक्षित और बेहतर होता।
उन्होंने सोमवार दोपहर राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में फिर से यही सुझाव दिया। बाइडेन टीम ने कहा कि कब्जे और राष्ट्र निर्माण के माध्यम से मध्य पूर्व के आतंकवादियों से अमेरिका को सुरक्षित करने का पुराना तरीका अब काम नहीं करता है और इसका एक बेहतर तरीका है। उन्हें यह बताने की जरूरत है कि वह तरीका क्या है और इसे साबित करें।
हम मानव इतिहास में एक अभूतपूर्व युग में प्रवेश कर रहे हैं, जहां दो बेहद चुनौतीपूर्ण परिवर्तन एक साथ मुंह बाए हैं- एक प्रौद्योगिकी के माहौल में और दूसरा जलवायु में। बहुलवाद के बिना न अफगानिस्तान और न ही रसातल में जा रहे देश या अमेरिका भी 21वीं सदी को स्वीकार कर पाएगा।
बदल गया है अफगानिस्तान
2001 में अमेरिका ने अफगानिस्तान पर हमला किया था, तब फेसबुक, ट्विटर का अस्तित्व तक नहीं था। आज अफगानिस्तान न सिर्फ दुनिया से बेहतर तरीके से जुड़ा हुआ है बल्कि अंदरुनी भी जुड़ा है। तालिबान के लिए अफगानियों पर अपने अत्याचार छुपा पाना अब उतना आसान नहीं होगा।


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