सम्पादकीय

धरना-प्रदर्शन मना है

Rani Sahu
17 July 2022 7:10 PM GMT
धरना-प्रदर्शन मना है
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आज का दिन बेहद खास है। आज देश के प्रथम नागरिक, सेनाओं के सुप्रीम कमांडर, भारत सरकार के संवैधानिक प्रमुख, राष्ट्रपति के लिए सांसद और विधायक मतदान करेंगे

By: divyahimachal

आज का दिन बेहद खास है। आज देश के प्रथम नागरिक, सेनाओं के सुप्रीम कमांडर, भारत सरकार के संवैधानिक प्रमुख, राष्ट्रपति के लिए सांसद और विधायक मतदान करेंगे। आज से ही संसद का मॉनसून सत्र आरंभ हो रहा है। राष्ट्रपति पद पर भाजपा-एनडीए उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू की जीत महज एक औपचारिकता है। इस चुनाव ने विपक्ष की स्वयंभू एकता और लामबंदी को बेनकाब कर दिया है। देखते हैं, उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए विपक्ष की रणनीति क्या रहती है? संसद सत्र एक नए विवाद और टकराव के साथ शुरू हो रहा है। हालांकि स्पीकर ने सर्वदलीय बैठक बुलाई थी, जिसमें सहयोग का आश्वासन सभी दलों ने दिया। विपक्ष का प्रमुख चेहरा कांग्रेस ही रही, जबकि तृणमूल, एनसीपी, सपा, बसपा, द्रमुक आदि विपक्षी दलों के प्रतिनिधि सर्वदलीय बैठक में हाजिर नहीं हो पाए। बहरहाल यह बैठक और आश्वासन भी रस्म अदायगी होती है, क्योंकि सदन की कार्यवाही के दौरान खूब हंगामा मचाया जाता है।
नियमों की पुस्तिका तक फाड़ दी जाती है। सभापति के आसन तक, उनके माइक को तोडऩे-मोडऩे के लिए, सांसदों ने हमले किए हैं। इस बार टकराव का नया कारण एक सर्कुलर होगा, जिसके जरिए राज्यसभा महासचिव ने दिशा-निर्देश जारी किए हैं कि संसद भवन के परिसर में या महात्मा गांधी की प्रतिमा पर कोई धरना, प्रदर्शन, हड़ताल, अनशन या धार्मिक आयोजन करना वर्जित है। सदस्य इसमें सहयोग करें। बेशक संसद परिसर में ही धरना-प्रदर्शन से कई बार हुड़दंग मचा है, अवरोध पैदा किए गए हैं, कई बार तो सांसद रात भर धरने पर बैठे रहे या वहीं लेट गए। यह संसद की सुरक्षा से समझौता भी साबित हो सकता था। बेशक संसद हमारे लोकतंत्र और गणतंत्र का सबसे महान और पवित्र मंदिर है। सांसद जन-प्रतिनिधि हैं और देश के लिए कानून पारित करते हैं।
संसद के भीतर ज्वलंत और सामयिक मुद्दों पर सार्थक बहसें होनी चाहिए। संसद परिसर किसी भी तरह की अराजकता के लिए अड्डा नहीं है। संविधान हमें विचारों की अभिव्यक्ति की आज़ादी देता है। यह देश के प्रत्येक नागरिक का मौलिक अधिकार है। तो फिर सांसदों के लिए बंदिशें क्यों बिठाई जा रही हैं? बेशक यह सर्कुलर एक सामान्य प्रक्रिया है। पहले भी कांग्रेस नेतृत्व की यूपीए सरकार के दौरान ऐसे दिशा-निर्देश जारी किए गए थे। विपक्ष द्वारा विरोध की अभिव्यक्ति भी लोकतंत्र की एक जि़ंदा और सामान्य प्रक्रिया है। तो ऐसे धरना-प्रदर्शन 'असंसदीय' कैसे करार दिए जा सकते हैं? किसी मुद्दे या निर्णय पर विपक्ष अपना विरोध कैसे जताएगा? क्या विरोध-स्थल भी कहीं और तय किया जाएगा? विरोध तो मॉनसून सत्र के दौरान भी होगा। कुछ शब्दावली को 'असंसदीय' घोषित किया गया है। हालांकि इन शब्दों पर कोई पाबंदी नहीं थोपी गई है। ये शब्द ऐसे हैं, जिन्हें किसी सदस्य ने सदन के भीतर बोला है, लेकिन स्पीकर या पीठासीन अधिकारी ने उन्हें कार्यवाही के रिकॉर्ड में दर्ज नहीं होने दिया है।
यह आसन का विशेषाधिकार है। ऐसे शब्दों में जुमलाजीवी, गुंडा, चोर, डंकी, दलाल, कायर, गधा, माफिया, रबिश, भ्रष्ट, विनाश-पुरुष, जयचंद, तानाशाह, लॉलीपॉप, रक्तपात, विश्वासघात, धोखा, चमचा, आई विल क्रश यू, अंट-शंट, टाउट, स्नेकचार्मर, बालबुद्धि, कोविड स्प्रेडर, अहंकार, क्रोकोडाइल टीयर्स आदि असंख्य शब्द ऐसे हैं, जिन्हें 'असंसदीय' घोषित कर दिया गया है। विपक्ष के कई सांसदों को इस पर आपत्ति है। वे सदन में इस मुद्दे पर चर्चा कराना चाहेंगे। उनका मानना है कि मोदी सरकार के हस्तक्षेप से कई शब्दों को 'अमर्यादित' करार दिया गया है। कमोबेश उनके संदर्भ तो स्पष्ट किए जाएं। बहरहाल जहां तक संसद परिसर में धरने-प्रदर्शन का सवाल है, तो 2जी, कोयला घोटाला, संचार घोटाला सरीखे मुद्दों पर तत्कालीन विपक्ष भाजपा ने कई-कई दिन तक सदन की कार्यवाही बाधित की थी और परिसर में भी नारेबाजी, पोस्टरबाजी के साथ विरोध-प्रदर्शन किया था। अब विपक्ष को रोकने का तर्क और विवेक क्या है?


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