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- एकता में विरोध
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By: divyahimachal
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री एवं तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी ने विपक्षी एकता और 2024 का आम चुनाव साथ-साथ लडऩे का जो फॉर्मूला दिया है, वह कांग्रेस को कबूल नहीं है। ममता का सुझाव था कि जिन 200 सीटों पर कांग्रेस मजबूत है, वहां क्षेत्रीय दल उसके उम्मीदवार को समर्थन दें। जिन राज्यों में क्षेत्रीय दल ताकतवर हैं और उनकी सरकारें भी हैं, वहां कांग्रेस उनके उम्मीदवार का समर्थन करे। बंगाल का उदाहरण देते हुए ममता ने साफ कहा कि कांग्रेस हमारा विरोध न करे। दरअसल विपक्षी एकता तो तभी संभव है, जब विभिन्न दल अपनी संकीर्णताओं और क्षुद्रताओं को छोड़ दें। ऐसा फिलहाल संभव नहीं लग रहा, क्योंकि कर्नाटक जनादेश के बाद कांग्रेस एक बार फिर फुलफुलाने लगी है। उसे लग रहा है मानो उसने पूरा देश जीत लिया! यूं भी कह सकते हैं कि उसका राष्ट्रीय दल वाला अहंकार फिर से जागृत हो उठा है। कांग्रेस प्रवक्ता अलका लांबा ने टीवी चर्चाओं के दौरान साफ कहा है कि तृणमूल कांग्रेस पहले अपने गिरेबां में झांक कर देखे। हमें ऐसे दलों का समर्थन नहीं चाहिए। तृणमूल भाजपा की ‘बी टीम’ ही बनी रहे। लोकसभा में कांग्रेस संसदीय दल के नेता अधीर रंजन चौधरी का बयान भी ममता-विरोधी है। वयोवृद्ध नेता शरद पवार कई बार कह चुके हैं कि जो मजबूत दल है, उसकी मदद की जाए। समान विचार वाले दल एक साथ आएं और साझा न्यूनतम कार्यक्रम भी तैयार किया जाए। उसी के आधार पर 2024 का आम चुनाव लड़ा जा सकता है। चूंकि इसी माह के अंत में राजधानी दिल्ली में ‘नीति आयोग’ की बैठक होनी है, लिहाजा अधिकतर मुख्यमंत्री भी दिल्ली आएंगे। नीतीश और ममता के आने की भी खबर है।
संभवत: सोनिया गांधी से ममता बनर्जी की मुलाकात होगी! लेकिन इन मुलाकातों, संवादों और रणनीतियों का राजनीतिक लाभ तभी है, जब विपक्षी एकता का आकार सामने आने लगे। नीतीश कुमार लगातार विपक्षी नेताओं से मिल रहे हैं। न जाने बातें क्या हो रही हैं, लेकिन ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने नीतीश से मुलाकात के बाद बयान दिया कि अभी कोई तीसरा मोर्चा नहीं। जाहिर है कि उनका बीजद उसी तरह चुनाव में उतरना चाहता है, जिस तरह उतरता रहा है। नवीन पटनायक प्रधानमंत्री मोदी के स्पष्ट विरोधी नहीं हैं। अलबत्ता भाजपा के साथ गठबंधन भी नहीं है। नीतीश को सुझाव दिया गया था कि वह जयप्रकाश नारायण की ‘संपूर्ण क्रांति’ की तर्ज पर पटना में विपक्षी नेताओं की महारैली करें। कांग्रेस इससे भी सहमत नहीं है, क्योंकि जेपी आंदोलन कांग्रेस की सर्वोच्च नेता तथा देश की प्रधानमंत्री रहीं इंदिरा गांधी के खिलाफ मोर्चा था। कांग्रेस की दलील है कि विपक्षी एकता और 2024 के चुनाव का समूचा अभियान प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ होना चाहिए। एक साझा फॉर्मूला तय किया जाए, जिस पर अभी से देश भर में प्रचार आरंभ किया जाए। बहरहाल अभी तो विपक्षी एकता बहुत दूर की कौड़ी है। कमोबेश सभी प्रमुख दल एक-दूसरे को स्वीकार करना तो सीखें। कांग्रेस की ये दलीलें भी मुखर हो रही हैं कि बंगाल के अलावा ओडिशा, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, उप्र, दिल्ली, पंजाब आदि राज्यों में भी क्षेत्रीय दल ताकतवर हैं। ज्यादातर राज्यों में वे सत्तारूढ़ भी हैं। तो क्या कांग्रेस इन राज्यों से चुनाव न लड़े? 2019 के चुनाव में कांग्रेस के 52 सांसद चुन कर आए और 209 सीटों पर पार्टी दूसरे स्थान पर रही। यह भी तथ्य है कि 2019 में ही 136 संसदीय सीटों पर भाजपा और कांग्रेस आमने-सामने चुनाव लड़ी थी, जिनमें से मात्र 7 सीटें ही कांग्रेस को नसीब हुईं। कांग्रेस जानना चाहती है कि 2024 में भाजपा बनाम विपक्ष का एक ही साझा उम्मीदवार वाली स्थिति कैसे होगी?
Rani Sahu
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