सम्पादकीय

विरोध, प्रदर्शन और अनशन : बंगाल के शैक्षिक सुनाम पर कालिख, छात्रों को इंतजार है तो सिर्फ न्याय का

Neha Dani
9 Jun 2022 1:41 AM GMT
विरोध, प्रदर्शन और अनशन : बंगाल के शैक्षिक सुनाम पर कालिख, छात्रों को इंतजार है तो सिर्फ न्याय का
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कभी सीबीआई को देख रहे हैं, तो कभी अदालत को। इंतजार है तो सिर्फ न्याय का।

राजा राममोहन राय, ईश्वरचंद्र विद्यासागर और नोबेलजयी रवींद्रनाथ टैगोर जैसी महान विभूतियों के प्रभामंडल की चकाचौंध में आज के बंगाल की तस्वीर बाहर के लोगों को साफ-साफ नहीं दिख रही होगी। ये महापुरुष बंगाल में जन्मे, पर इनके कृतित्व को राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिली और इन महापुरुषों ने ही आधुनिक भारत की मजबूत नींव रखी। रवींद्रनाथ टैगोर को आधुनिक भारत में शैक्षिक पुनरुत्थान का पैगंबर कहा जाता है। देश के सामने शिक्षा के सर्वोच्च आदर्शों को स्थापित करने के लिए निरंतर संघर्ष करनेवाले टैगोर ने शांति निकेतन की स्थापना कर नए शैक्षिक प्रयोग किए।

लेकिन जिस रवींद्रनाथ की तस्वीर पर जरा-सी खरोंच भी बंगाल का शासक वर्ग बर्दाश्त नहीं कर पाता, उसके हाथों ही बंगाल के सांस्कृतिक व शैक्षिक सुनाम पर कालिख पोती जा रही है। राज्य में शिक्षा का माहौल दूषित हो गया है। गुरुदेव का शांति निकेतन विवादों का अखाड़ा बन गया है। ममता सरकार के एक बाहुबली नेता अणुव्रत के चलते यह केंद्रीय विश्वविद्यालय अपनी चारदीवारी तक नहीं बना पा रहा है। केंद्र व राज्य के बीच टकराव ने इसे भी अपनी चपेट में ले लिया है। भ्रष्टाचार ने बंगाल की पूरी शिक्षा व्यवस्था को क्रूर मजाक बना दिया है।
आज बंगाल में प्राइमरी से लेकर कॉलेज स्तर की परीक्षाओं व भर्तियों में भ्रष्टाचार को लेकर चर्चा हो रही है। कोई शिक्षा राज्यमंत्री कैसे किसी मेधावी छात्रा का पत्ता कटवाकर उसकी जगह अपनी बेटी की बहाली करवा सकता है? हालांकि हाई कोर्ट ने मंत्री परेश अधिकारी की दुलारी बेटी की जगह असली हकदार बबीता सरकार की नियुक्ति करने की सिफारिश कर दी है। बबिता की याचिका के आधार पर ही यह मामला सीबीआई को सौंपा गया और कोर्ट के आदेश पर मंत्री की बेटी को नौकरी से बर्खास्त करने के साथ-साथ अब तक उठाए गए वेतन को हाई कोर्ट में जमा करने को कहा गया है।
पश्चिम बंगाल के स्कूल सर्विस कमीशन (एसएससी) में भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच जैसे-जैसे आगे बढ़ रही है, नई-नई परतें खुल रही हैं। हाई कोर्ट के आदेश पर गठित सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति रंजीत बाग समिति ने जब अपनी रिपोर्ट सौंपी, तो पता चला कि 381 लोगों को एसएससी की कमेटी ने कार्यकाल की समाप्ति के बाद भी नियुक्ति के लिए सिफारिश पत्र जारी किए। इन 381 में से 222 लोगों के नाम किसी पैनल या प्रतीक्षा सूची में नहीं थे। इनमें से किसी ने भी लिखित परीक्षा पास नहीं की और न इंटरव्यू में भाग लिया। अनुशंसा पत्र एसएससी कार्यालय से स्कैन किए गए हस्ताक्षर के साथ जारी किए गए थे।
रिपोर्ट में भ्रष्टाचार में कथित संलिप्तता के लिए कुल 11 अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने की सिफारिश की गई है। इस खेल में शिक्षा राज्यमंत्री परेश अधिकारी के अलावा पूर्व शिक्षा और मौजूदा उद्योगमंत्री पार्थ चटर्जी भी शामिल हैं। पार्थ की मंजूरी के आधार पर बनी सलाहकार समिति अवैध थी और उसी ने बिना परीक्षा में बैठे छात्रों को नियुक्ति पत्र दिए। इनके कार्यकाल में ही सबसे ज्यादा घपला हुआ। न्यायमूर्ति अभिजीत गंगोपाध्याय की एकल पीठ ने एसएससी के ग्रुप-डी, ग्रुप-सी और कक्षा नौवीं व दसवीं के शिक्षकों की भर्ती में भ्रष्टाचार के कुल सात मामलों की सीबीआई जांच का निर्देश दिया है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि एसएससी चेयरमैन शांति प्रसाद सिन्हा झूठी सिफारिश वाला पत्र दिया करते थे। इसके आधार पर कल्याणमय गंगोपाध्याय तकनीकी अधिकारी राजेश लाएक के साथ नियुक्ति पत्र तैयार करते थे। पार्थ चटर्जी और परेश अधिकारी, दोनों अब भी अपने-अपने पदों पर विराजमान हैं। ऐसे बहुत सारे मामले हैं, जिनसे बार-बार साबित हुआ कि दीदी अपनी नैतिकता को धराऊ कपड़े मानती हैं। यही नहीं, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी राज्य के सरकारी विश्वविद्यालयों का आचार्य पद राज्यपाल से छीनकर खुद लेने वाली हैं।
इस पर बिल भी पेश होने वाला है, पर मुख्यमंत्री शायद भूल गईं कि वह बिल भी कानून तभी बनेगा, जब राज्यपाल का हस्ताक्षर होगा। इसके अलावा, मौजूदा शिक्षामंत्री ने हाल ही में घोषणा की कि अब से विश्वविद्यालयों के विजिटर वह खुद होंगे। राज्यपाल जगदीप धनखड़ से इन लोगों की पुरानी अदावत है। राष्ट्रपति तक इनकी शिकायत की गई है और संसद में भी इन्हें हटाने की मांग की जा चुकी है। सेंटर फार मॉनिटरिंग इंडियन इकनॉमी के मुताबिक, अक्तूबर, 2016 में राज्य में बेरोजगारी दर 4.6 थी, जो अप्रैल, 2020 में बढ़कर 17.4 हो गई, जबकि राष्ट्रीय दर 23.5 थी।
मार्च, 2022 में यह प्रतिशत घटकर 5.6 प्रतिशत पर आ गया है। ममता सरकार इन आंकड़ों के आधार पर अपनी पीठ थपथपाती है, पर चार जून को राज्य के मंत्री शोभन देव चटर्जी ने कोलकातामें आयोजित शिक्षा मेले में सरकार के उत्साह पर पानी फेर दिया। उन्होंने कहा कि मुझसे मिलने आने वाले 10 लोगों में छह युवा नौकरी मांगते हैं। उनके मुताबिक, इस साल माध्यमिक परीक्षा में 12 लाख छात्र बैठे और 86 प्रतिशत पास हुए। हालांकि अब इन्हें शिक्षित बेरोजगार ही माना जाएगा।
बाद में उन्होंने सफाई दी कि उनके कहने का मतलब था कि केवल ग्रेजुएशन या मास्टर डिग्री पाने से ही नौकरी मिल जाएगी, इसकी गारंटी नहीं। वैसे दो साल के कोविड की वजह से पूरी दुनिया में रोजगार का संकट पैदा हुआ है, पर बंगाल में 2016 से ही एसएससी की परीक्षा पास कर नौकरी के लिए बेमियादी अनशन कर रहे छात्र यह जानकर खून के आंसू रो रहे हैं कि उनके बदले बिना परीक्षा में बैठे लोग आज विद्यालयों में पढ़ा रहे हैं।
2019 से अनशन पर बैठी वीरभूम की कैंसर पीड़ित सोमा दास ने भावुक होकर हाई कोर्ट के जज अभिजीत गांगुली की सहानुभूति के आधार पर नौकरी का प्रस्ताव स्वीकार करने से इनकार करते हुए कहा था कि आंदोलन हम सब कर रहे थे, तो केवल मैं यह प्रस्ताव क्यों स्वीकार करूं? हालांकि सरकार के मनाने पर उसने नियुक्ति पत्र स्वीकार कर लिया है, पर मन में एक ग्लानि का भाव तो है ही। बाकी छात्रों का अनशन आज भी जारी है। आज भी हताश-निराश ये लोग खुले आसमान के नीचे तंबू गाड़कर कभी सीबीआई को देख रहे हैं, तो कभी अदालत को। इंतजार है तो सिर्फ न्याय का।

सोर्स: अमर उजाला

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