सम्पादकीय

वैट पर विरोध

Rani Sahu
28 April 2022 6:37 PM GMT
वैट पर विरोध
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जैसे-जैसे महंगाई तनाव बढ़ाती जा रही है

जैसे-जैसे महंगाई तनाव बढ़ाती जा रही है, वैसे-वैसे राजनीतिक बयानबाजी में भी तेजी आ रही है। महंगाई के समय ऐसे विवाद या आरोप-प्रत्यारोप नए नहीं हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पेट्रोल-डीजल पर कुछ राज्यों को वैट घटाने के लिए कहते हुए इसे प्रार्थना बताया है, हालांकि कोई भी राज्य वैट घटाने को बाध्य नहीं है। लेकिन इसके बावजूद राज्यों से जो आवाजें आ रही हैं, उनको सकारात्मक रूप में ही स्वीकार करना चाहिए। कुछ नेताओं को यह शिकायत है कि प्रधानमंत्री ने कोरोना संबंधी बैठक में वैट की चर्चा क्यों की? हालांकि, यह विषय अलग है कि प्रधानमंत्री को ऐसी बैठकों में एक चिंता से हटकर दूसरी चिंता का जिक्र करना चाहिए या नहीं? बहरहाल, यह लगभग परंपरा ही रही है कि केंद्र सरकार ऐसी सलाह राज्यों को देती है, मानने या न मानने के लिए राज्य स्वतंत्र हैं। वैसे आपत्ति दो राज्यों की ओर से तीखी आई है। पश्चिम बंगाल व महाराष्ट्र की सत्तारूढ़ पार्टियों की राजनीति को समझा जा सकता है। हम एक ऐसे समय में जी रहे हैं, जब नेता राजनीति का कोई भी अवसर हाथ से जाने नहीं देना चाहते। लेकिन किसी को भी निशाने पर ले लेने का यह चलन प्रशंसनीय नहीं है।

महाराष्ट्र में पेट्रोल अपेक्षाकृत महंगा है। मुंबई में प्रति लीटर डीजल से 24.38 रुपये केंद्र सरकार को और 22.37 रुपये राज्य के खाते में जा रहे हैं। वसूली का प्रतिशत पेट्रोल पर भी कमोबेश यही है। मतलब यह कि पेट्रोल, डीजल से केंद्र और राज्य, दोनों को लाभ है। दोनों का एक-दूसरे को दोषी ठहराना वाजिब नहीं है और किसी ने किसी को सीधे दोषी ठहराया भी नहीं है। आम लोगों की नजर से देखें, तो भाव कम करने की जिम्मेदारी दोनों पर है। आम लोगों की परवाह सभी सरकारों को करनी चाहिए। केंद्र और राज्य सरकारें जीएसटी के लिए सहमत तो हुईं, लेकिन दोनों ने पेट्रोल और डीजल को जीएसटी के दायरे से बाहर रखा। ऐसे बहुपयोगी उत्पादों को विशेष वर्ग में रखकर भारी टैक्स लगाना कहां तक सही है, इस पर आम लोगों के हित में विचार करना चाहिए। आम लोगों पर टैक्स लगाना बिल्कुल सही है, लेकिन टैक्स तार्किक व न्यायपूर्ण भी महसूस होना चाहिए। पेट्रोल और डीजल को लेकर शिकायतें पुरानी हैं। अब समय आ गया है कि समाधान किया जाए। बेशक, आज की राजनीति से भी समाधान की उम्मीद की जा सकती है।
फिर भी राज्य सरकारों को इस बात पर गौर करना चाहिए कि क्या ऐसे राज्य भी हैं, जहां पेट्रोल-डीजल की कीमत कम है? यह तथ्य तो सामने है कि चेन्नई में पेट्रोल 111 रुपये, जयपुर में 118 रुपये, कोलकाता में 115 रुपये और मुंबई में 120 रुपये प्रति लीटर है। ध्यान दीजिए, लखनऊ में पेट्रोल 105 रुपये के करीब है। उत्तर प्रदेश के लोगों की तुलना में महाराष्ट्र के लोग भला क्यों पंद्रह रुपये ज्यादा कीमत चुका रहे हैं? यह भी गौरतलब है कि पिछले साल नवंबर में केंद्र सरकार ने उत्पाद शुल्क में कटौती की थी, लेकिन महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, केरल, झारखंड और तमिलनाडु जैसे राज्यों ने पेट्रोल, डीजल पर वैट में कटौती नहीं की। यह देखना चाहिए कि ये राज्य आखिर अपनी ओर से टैक्स में कटौती क्यों नहीं कर रहे हैं? क्या इन राज्यों की माली हालत ज्यादा खराब है? क्या इन राज्यों को केंद्र से पर्याप्त राजस्व नहीं मिल रहा है? यह केंद्र और राज्यों को मिलकर तय करना चाहिए। एक ही देश में पेट्रोल-डीजल की कीमतों में समानता होनी चाहिए। लोग तो यही चाहते हैं।

क्रेडिट बाय हिन्दुस्तान

Rani Sahu

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