सम्पादकीय

रक्षक या भक्षक

Gulabi Jagat
6 May 2022 12:20 PM GMT
रक्षक या भक्षक
x
सम्पादकीय
Written by जनसत्ता।
इससे बड़ी विडंबना और क्या होगी कि किसी अपराध की कोई पीड़ित मदद और इंसाफ की आस में पुलिस के पास पहुंचे और वहां भी उसे एक त्रासदी का सामना करना पड़े। उत्तर प्रदेश और राजधानी दिल्ली में कुछ पुलिस थानों की ताजा घटनाएं यह बताती हैं कि हमारे देश में जिन्हें रक्षा के चेहरे और ठिकाने के तौर पर देखा जाता है, वहां भी अलग स्वरूप में कई बार आपराधिक प्रवृत्तियां पलती रहती हैं।
हाल ही में उत्तर प्रदेश के ललितपुर में सामूहिक बलात्कार की एक नाबालिग पीड़िता जब थाने में पहुंची तो वहां के दरोगा पर उसके खिलाफ फिर वही अपराध करने का आरोप लगा। वहीं दिल्ली में कुछ दिन पहले कैब से घर लौट रही महिला को एक अन्य कार चालक ने बुरी तरह पीटा और जब इस बात की शिकायत लेकर महिला कालकाजी थाने पहुंची तो वहां पुलिसकर्मियों ने भी उससे दुर्व्यवहार किया और मारपीट की। इसी तरह उत्तर प्रदेश में महरौनी थाने में महज किसी तांत्रिक के एक महिला को चोर बताने के बाद कुछ पुलिसकर्मियों ने महिला को निर्वस्त्र करके बुरी तरह बेल्ट से पीटा और यातना दी।
आजादी के सात दशक के बाद भी देश के पुलिस थानों में होने वाली ऐसी घटनाएं यह बताने के लिए काफी हैं कि कानून-व्यवस्था और न्याय के रास्ते में अभी हमें कितना लंबा सफर करना बाकी है। किसी भी अन्याय या अपराध के शिकार लोगों को इंसाफ के लिए सबसे पहले पुलिस के पास ही जाना पड़ता है। एक सभ्य या सजग समाज और देश में पुलिस की व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए कि वहां पहुंचे हर पीड़ित को पहले चरण से ही अपने खिलाफ होने वाले अन्याय या अपराध के एवज इंसाफ की उम्मीद बंधे।
लेकिन हकीकत कई बार इसके इतने उलट रूप में देखने को मिलती है कि सबसे ज्यादा निराशा इंसाफ मिलने को लेकर ही होती है। थाने में लोगों की सुरक्षा के लिए तैनात किसी पुलिसकर्मी के भीतर आखिर वह कौन-सी आश्वस्ति होती है कि वह अपने पास इंसाफ की उम्मीद में पहुंची किसी महिला की मदद करने के बजाय उसके खिलाफ खुद अपराधियों की तरह पेश आता है? हिरासत में हिंसा और हत्या के अक्सर सामने आने वाले मामले यह बताते हैं कि न्याय की प्रक्रिया के सबसे प्राथमिक केंद्र के तौर पर काम कर रहे पुलिस थाने कई पीड़ितों के लिए भी एक त्रासद ठिकाना साबित होते हैं।
यह एक जगजाहिर तथ्य है कि पुलिस थानों में पहुंची शिकायतों और संबंधित पक्ष के प्रति पुलिस का रवैया ही आखिर अदालतों में उस मामले में न्याय की दिशा का निर्धारक तत्त्व होता है। इसलिए उम्मीद की जाती है कि पुलिस खासतौर पर समाज में कमजोर तबकों और महिलाओं के प्रति न्याय सुनिश्चित कराने के लिए न केवल शिकायतों के मामले में गंभीर और संवेदनशील रुख अपनाएगी, बल्कि हर स्तर पर मदद करेगी।
मगर इससे शर्मनाक और क्या होगा कि कोई बलात्कार पीड़िता थाने पहुंचती है तो वहां कोई पुलिसकर्मी भी उसके साथ अपराधियों की तरह फिर वही अपराध करता है। सड़क पर कोई अराजक व्यक्ति महिला से बेरहमी से मारपीट करता है और वैसा ही बर्ताव थाने में मौजूद पुलिसकर्मी करते हैं। सवाल है कि क्या पुलिस महकमा और सरकार पुलिस थानों में मौजूद इस तरह की विकृतियों से पूरी तरह अनजान हैं? इस तरह की तमाम घटनाएं इस बात को रेखांकित करती हैं कि इस महकमे में सुधारों की किस स्तर तक जरूरत है और पुलिस में भर्ती होने वाले सभी कर्मियों को न केवल ड्यूटी, बल्कि इंसाफ में उनकी जिम्मेदारी का पाठ पढ़ाया जाए, उन्हें मानवीय और संवेदनशील बर्ताव का प्रशिक्षण दिया जाए।
Next Story