सम्पादकीय

वन्यजीवों का संरक्षण

Subhi
16 Sep 2022 6:15 AM GMT
वन्यजीवों का संरक्षण
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पिछले कुछ वर्षों से वन्य जीव-जंतुओं पर नजर दौड़ाई जाए तो धीरे-धीरे उनकी संख्या में गिरावट आनी शुरू हो रही है। इसका प्रमुख कारण है कि हम वन्य जीव-जंतुओं को बचाने में धीरे-धीरे नाकाम साबित हो रहे हैं।

Written by जनसत्ता: पिछले कुछ वर्षों से वन्य जीव-जंतुओं पर नजर दौड़ाई जाए तो धीरे-धीरे उनकी संख्या में गिरावट आनी शुरू हो रही है। इसका प्रमुख कारण है कि हम वन्य जीव-जंतुओं को बचाने में धीरे-धीरे नाकाम साबित हो रहे हैं। किसी राज्य में हाथी पाए जाते हैं तो किसी राज्य में शेर और बाघ चीता आदि दिखाई देते हैं, लेकिन कुछ समय से आ रही प्राकृतिक आपदाएं भी इनकी जान ले रही हैं।

यों सरकार ने संरक्षित जीव-जंतुओं का शिकार करने पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगाया हुआ है, लेकिन उसके बाद भी चोरी-छिपे इनका शिकार किया जाता है। अक्सर देखा गया है कि कहीं बिजली के करंट के कारण यह जीव-जंतु मौत का शिकार होते हैं तो कहीं जंगलों में लगने वाली आग इनको अपनी चपेट में ले लेती है। यहां तक कि अनेक बार विभिन्न राज्यों में चोरी-छिपे इनका शिकार भी किया जाता है। जहां से रेलगाड़ी गुजरती है, वहां पर भी बड़ी संख्या में विभिन्न तरह के जीव-जंतु हादसे का शिकार होते हैं।

हमें खासतौर पर संरक्षित जीव-जंतुओं को बचाना होगा और उसके साथ-साथ उनके प्राकृतिक आपदाओं का शिकार होने से बचाने की कोशिश करनी होगी। इस बात पर भी विशेष रूप से ध्यान देना होगा कि इस तरह के जीव-जंतुओं में समय-समय पर विभिन्न तरह की बीमारियां भी आती रहती हैं और उनके इलाज की भी व्यवस्था करनी होती है।

इसके अलावा, कुछ समय पहले केरल में एक हथिनी के साथ जैसी घटना हुई थी, उसने दिल दहला दिया था। उसके मुंह में पटाखों का अनार डाल दिया गया, जिसमें विस्फोट से उसका मुंह फट गया। इस प्रकार की प्रवृत्तियों के खिलाफ सख्ती बरतनी होगी। साथ ही समुद्र में रहने वाले, लेकिन लुप्त होते जा रहे जीव-जंतुओं को प्राकृतिक और इस तरह के दूषित हो रहे वातावरण से बचाना होगा।

आज भारत विश्व में चल रहे यूक्रेन-रूस युद्ध के दौरान एक तटस्थ देश की भूमिका निभा रहा है। भारत का अपना एक रिकार्ड रहा है। वह किसी भी बड़े देश की छोटे के लिए किसी भी तरह की ज्यादती सहन नहीं करता। फिर चाहे ज्यादती करने वाला उसका अपना दोस्त ही क्यों न हो। आज रूस एक महाशक्ति है। उसने अपने से छोटे पड़ोसी देश यूक्रेन पर हमला करके उसे तहस-नहस कर दिया है।

विश्व एवं भारत की नजर में भी यह एक ज्यादती है। उसके इस व्यवहार को भारत कतई सही नहीं मानता। हालांकि इसके लिए वह रूस का विरोध भी नहीं करता, मगर रूस के इस कृत्य का समर्थन भी नहीं करता। खुद रूस भी भारत को अच्छी तरह से समझता है, इसलिए वह भारत से इस बात के लिए नाराजगी जाहिर नहीं करता और भारत-रूस के संबंधों पर इसका कोई असर नहीं पड़ता।

इसका दोनों देशों के आयात-निर्यात पर भी कोई असर नहीं पड़ता है। भारत का रूस से कई वस्तुओं के लेनदेन का बरसों से व्यापार चला रहा है। इसलिए आज इसी कारण भारत की मांग पर रूस उसे सस्ता कच्चा तेल निर्यात कर रहा है। फिर रूस कच्चा तेल जी-7 की मूल्य सीमा के खिलाफ जाकर भारत को पर्याप्त छूट पर भी तेल दे रहा है। यों भारत को तेल आपूर्ति करने वाला एक देश इराक भी है।

यह देश भी हमें काफी सस्ता तेल निर्यात करता रहता है। देखा जाए तो हमारा तेल आपूर्ति देश सऊदी अरब भी है जो हमें 20.8 फीसद तेल निर्यात करता है। इसके बाद इराक हमें 20.6 फीसद तथा इसी तरह से रूस है जो आज हमें 18.2 फीसद तेल निर्यात कर रहा है। इसलिए हमें इस बात को कतई नहीं भूलना चाहिए कि आज ऐसी विषम परिस्थितियों में होने के बाद भी रूस ने भारत के प्रति अपनी दोस्ती के भाव को कम नहीं किया है, जबकि आज वह खुद पिछले छह माह से युद्ध की रणनीति में व्यस्त है।

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