सम्पादकीय

धरोहर की रक्षा

Subhi
22 April 2022 6:11 AM GMT
धरोहर की रक्षा
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यूनेस्को द्वारा घोषित विश्व धरोहर अजंता की गुफाओं के बारे में जनसत्ता के 19 अप्रैल के अंक में पढ़ कर आश्चर्य हुआ कि महाराष्ट्र के पर्यटन मंत्री आदित्य ठाकरे के हस्तक्षेप के बाद भी जलापूर्ति की समुचित व्यवस्था नहीं की गई है अभी तक।

Written by जनसत्ता: यूनेस्को द्वारा घोषित विश्व धरोहर अजंता की गुफाओं के बारे में जनसत्ता के 19 अप्रैल के अंक में पढ़ कर आश्चर्य हुआ कि महाराष्ट्र के पर्यटन मंत्री आदित्य ठाकरे के हस्तक्षेप के बाद भी जलापूर्ति की समुचित व्यवस्था नहीं की गई है अभी तक। अजंता की गुफाएं भारत ही नहीं, विश्व में ऐतिहासिक महत्त्व रखती है। यह न केवल समृद्ध पर्यटन केंद्र है, बल्कि बौद्ध कालीन स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना भी है।

अजंता की गुफाएं 2019 से जलापूर्ति की समस्या से जूझ रही हैं और वहां बागवानी और सौंदर्यीकरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। मात्र 3.2 करोड़ राशि का भुगतान होता है। किसी भी सरकार के लिए यह राशि मामूली है। सरकार के विभिन्न मदों में हजार करोड़ के राजस्व अदायगी की जाती है, लेकिन यह मामूली-सी राशि एक विभाग से दूसरे विभाग में स्थानांतरित नहीं की जा रही है। महाराष्ट्र सरकार को इस पर संज्ञान लेना चाहिए। विश्व धरोहर की बदहाली को रोका जाए और इस समृद्ध पर्यटन केंद्र को बचाया जाए। वीरेंद्र कुमार जाटव, देवली गांव, दिल्ली

जब भी सांप्रदायिक तनाव और विवाद के कारण दंगे-फसाद होते हैं तो इस हिंसा के शिकार आमजन होते हैं, चाहे वे किसी भी धर्म या वर्ग के हों। लेकिन मन-मस्तिष्क में बार-बार बिजली की तरह प्रश्न कौंधता है कि किसी भी दल के नेताओं के परिजन, उनके बेटे-बेटियां धार्मिक यात्राओं में भाग क्यों नहीं लेते? इतने दंगे-फसाद होते हैं तो निरीह आम आदमी ही क्यों मरता-कटता है? कभी नहीं सुना कि किसी बड़े नेता के बच्चे शिकार हुए हों! इनके बच्चे तो देश-विदेश के नामी-गिरामी स्कूलों में पढ़ते-लिखते और मलाईदार पदों पर सुशोभित हो जाते हैं।

ये सियासत करने वाले मोहरा बना कर साधारण लोगों को भड़काते और उकसाते हैं। आम लोग धार्मिक भावनाओं में बह कर दंगे-फसाद में आसानी से हथियार बन जाते हैं। फिर सियासी नफे-नुकसान के हिसाब से अपना हित साधा जाता है। हम सब ठगे जा रहे हैं। मजे में हैं नेता और उनका परिवार। यह सत्य भी है कि जाल बुनने वाली मकड़ी (नेता व दलबल) अपने बुने हुए जाल में कभी नहीं फंसती। तो भला सियासत करने वाले भी कैसे फंसें। जब तक बेवकूफ जिंदा है तब तक समझदार भूखे नहीं मरता है। यही कड़वा सच है।

'बिजली का गहराता संकट' (लेख, 20 अप्रैल) पढ़ा। आज धीरे-धीरे ऊर्जा के पारंपरिक स्रोत कम होते जा रहे हैं। ऐसे में वैकल्पिक ऊर्जा पर न सिर्फ ध्यान देना होगा, बल्कि धरातल पर भी उतारने के यथासंभव प्रयास करने होंगे। अक्षय ऊर्जा को अपनाना समय की सबसे बड़ी मांग है। सूर्य की ऊर्जा उपलब्ध और सस्ती है। ऊर्जा के बिना आधुनिक सभ्यता की कल्पना भी नहीं की जा सकती, इसलिए समय रहते तैयारी करना होगी। साथ ही ऊर्जा की बचत भी करने की आदत डालनी होगी।


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