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कई शीर्ष कंपनियों के आज नए शक्तिशाली विरोधी हैं, उनके खुद के कर्मचारी
एन. रघुरामन । कई शीर्ष कंपनियों के आज नए शक्तिशाली विरोधी हैं, उनके खुद के कर्मचारी। कम से कम सिलिकॉन वैली में तो ऐसा ही दिख रहा है। दो कंपनियों, फेसबुक और नेटफ्लिक्स के कर्मचारियों को जब लगा कि उनकी समस्याएं कंपनी में नहीं सुनी जा रहीं तो वे इन्हें ऑफिस की इमारत से बाहर, जनता तथा मीडिया और यहां तक कि लंदन की संसद के सामने तक ले गए।
बहुत लोगों ने फेसबुक की पूर्व प्रोडक्ट मैनेजर फ्रांसेस हॉगन की तस्वीर देखी होगी, जिन्होंने इस मंगलवार ब्रिटिश संसद समिति के सामने पेश होकर सरकार को फेसबुक के ढेरों आंतरिक दस्तावेज दिए। वे लंदन तक पहुंचीं और फेसबुक पर दुनियाभर के युवाओं की मानसिक स्थिति को नुकसान पहुंचाने का आरोप लगाया तथा उन्हें नियंत्रित करने के नियमों से जुड़े दस्तावेज दिखाए।
दस्तावेजों में कंपनी के शोधपत्र शामिल हैं, जिन्होंने पाया कि ये सोशल साइट्स खतरनाक हैं, खासतौर पर इंस्टाग्राम क्योंकि यह लोगों की शारीरिक बनावट और जीवनशैली की तुलना पर केंद्रित है, जो बच्चों के लिए और बुरा है। हॉगन कहती हैं, 'फेसबुक का खुद का शोध युवा उपयोगकर्ताओं को व्यसनी बताता है।' पिछले हफ्ते नेटफ्लिक्स के ट्रांसजेंडर कर्मचारियों और उनके सहयोगियों ने लॉस एंजलिस में सुनियोजित वॉकआउट कर विरोध जताया।
गूगल कर्मचारी उन परियोजनाओं के खिलाफ नाराजगी जता चुके हैं, जिनसे वे सहमत नहीं हैं। अमेज़न कर्मचारी कंपनी के पर्यावरणीय और श्रम व्यवहारों के खिलाफ बोल रहे हैं। अन्य छोटी व मध्यम टेक कंपनियां, जैसे वेफेयर, बेसकैंप, कॉइनबेस और हूटसूट भी आंतरिक उठा-पटक में लगी हैं क्योंकि वहां कमर्चारी की इच्छाओं और प्रबंधन की मांगों के बीच संघर्ष है।
कुछ कंपनियों के कर्मचारी परेशानियां कंपनी के आंतरिक मैसेज बोर्ड में ले जा रहे हैं। अब टेक कर्मचारी इन मामलों में विरोध जताने के बाहरी माध्यम अपना रहे हैं। इससे सिलिकॉन वैली में बड़ा सांस्कृतिक बदलाव दिख रहा है, जिसे अपनी आंतरिक पारदर्शिता और लोगों को सशक्त करने पर गर्व था। लेकिन अब यही कंपनियां अपने राज़ तिजोरियों में रखने में परेशान हो रही हैं क्योंकि कर्मचारी इन्हें सार्वजनिक कर रहे हैं।
जैसे कर्मचारियों के पास बॉस या कंपनियों के प्रति नाराजगी जाहिर करने के विभिन्न तरीके हैं, उसी तरह कंपनियों को भी राज़ सुरक्षित रखने का अधिकार है। याद रखें कि हर संगठन विवादास्पद राजनीतिक और सांस्कृतिक संघर्षों के बीच है और वे लगातार इस नतीजे पर पहुंच रहे हैं कि अच्छी कमाई या लाभ के लिए कॉर्पोरेट की सोच और कायदों को कुछ तोड़ना होगा, सार्वजनिक रूप से भी।
इसलिए मुझे उम्मीद है कि काम के नियमों में भारी बदलाव होगा। मुझे लगता है कि भविष्य में कंपनियां आपकी निजी जिंदगियों और सोशल मीडिया पर दिए जाने वाले मतों की भी गहन जांच करेंगी। मुझे हैरानी नहीं होगी अगर बड़ी कंपनियां एक आंतरिक निगरानी विभाग बना लें, जो न सिर्फ आपके साथ पार्टी करेगा, बल्कि छद्म नामों से आपसे सोशल मीडिया पर भी जुड़ा रहेगा।
वह आपके नजरिए पर नजर रखेगा और शुक्रवार की देर रात आपने पार्टी में नशे में क्या कहा, यह भी सुनेगा। मैं जानता हूं कि यह जेन-ज़ी यानी युवा पीढ़ी को परेशान करेगा, जो ऐसे समझौतों के लिए तैयार नहीं हैं। मानें या न मानें, आपकी पहले ही निगरानी हो रही है। ऐसे घटनाक्रमों के बाद यह आने वाले दिनों में और बढ़ेगी। फंडा ये है कि आपको ही कंपनी की जरूरतों और अपने मूल्यों के बीच संतुलन बनाए रखते हुए अपनी नौकरी की रक्षा करनी होगी, जिसकी आपको जरूरत है।

Rani Sahu
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