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- मौलिक अधिकारों की...
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। कोरोना काल में सब कुछ ठहर गया था और इस वायरस ने व्यापार, उद्योग, शिक्षा का क्षेत्र और मनोरंजन उद्योग सब प्रभावित हुए। इसका असर यह हुआ कि लोग भी बहुत प्रभावित हुए। अब जबकि स्थितियां सामान्य होने की ओर अग्रसर हैं तो हमें कोरोना यौद्धाओं को राहत देने की भी व्यवस्था करनी ही होगी। इसके लिए सत्ता और स्थानीय प्रशासन को कंधे से कंधा मिलाकर काम करना होगा तभी व्यवस्था को पटरी पर लाया जा सकता है। संविधान में जीवन यापन का अधिकार सबसे महत्वपूर्ण है। 1949 में बने हमारे संविधान में मौलिक अधिकारों को स्थान दिया गया तथा सन् 1976 के 42वें संविधान संशोधन ने उसमें नागरिकों के मौलिक कर्त्तव्य भी जोड़े हैं। हमारे संविधान में मौलिक अधिकारों को शामिल किया जाना अभूतपूर्व घटना नहीं है। अधिकारों के बिना मनुष्य सभ्य जीवन व्यतीत नहीं कर सकता। अधिकारहीन मनुष्य की स्थिति बंद पशु या पक्षी की तरह है। अंतः सभ्य जीवन का मापन अधिकारों की व्यवस्था से किया जा सकता है। राज्य में लोगों को जितने अधिक अधिकार प्राप्त होंगे वे उतना ही अधिक विकसित होते हैं तथा वे अपने अधिकारों की व्यवस्था को हर कीमत पर सुरक्षित रखते हैं।