सम्पादकीय

प्रस्तावित चंद्र-अभियान हमारे सामने अपार संभावनाओं का दरवाजा खोलते हैं

Gulabi
1 Feb 2022 7:55 AM GMT
प्रस्तावित चंद्र-अभियान हमारे सामने अपार संभावनाओं का दरवाजा खोलते हैं
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साल 2021 में स्पेस-टूरिज़्म के प्रति बड़ा उत्साह दिखलाई दिया था, लेकिन इस साल चांद की सैर पर नजर रहेगी
साधना शंकर का कॉलम:
साल 2021 में स्पेस-टूरिज़्म के प्रति बड़ा उत्साह दिखलाई दिया था, लेकिन इस साल चांद की सैर पर नजर रहेगी। साल 1969 में मनुष्य ने पहली बार चांद पर कदम रखा था। उस बात को अब आधी सदी से अधिक समय हो चुका। लेकिन अब फिर से चंद्रयात्रा पर दुनिया का ध्यान केंद्रित हो रहा है। साल 2022 में अनेक देश चांद की यात्रा के लिए कमर कसे हुए हैं। ये चंद्र अभियान भविष्य में अंतरिक्ष से हमारे नाते को बदल देंगे।
इस साल गर्मियों में दक्षिण कोरिया अपना पहला लूनर स्पेसक्राफ्ट लॉन्च करने जा रहा है। पतझड़ में यूएई भी राशिद नामक स्पेसक्राफ्ट चांद पर भेजेगा। रूस, चीन और भारत भी इस साल चांद पर जाने के लिए कमर कसे हुए हैं। 2022 के उत्तरार्ध में इसरो अपना महत्वाकांक्षी चंद्रयान-3 मिशन लॉन्च करेगा। कोविड-19 के चलते इसमें देरी होती चली गई है। दो साल पहले इसरो के चंद्रयान-2 ने चांद की फार-साइड पर क्रैश-लैंडिंग की थी।
लैंडर और रोवर तो क्रैश हो गए थे, लेकिन आेर्बिटर अभी भी चांद की परिक्रमा कर रहा है और इसरो चंद्रयान-3 के लिए उसका इस्तेमाल करना चाहता है। लेकिन वर्तमान में चांद के लिए सबसे महत्वाकांक्षी परियोजना नासा का अर्तेमीस प्रोजेक्ट है। इसे कुछ ही महीनों में लॉन्च किया जाने वाला है। इसमें एक ताकतवर स्पेस लॉन्च सिस्टम रॉकेट के साथ ही ओरियॉन नामक एक क्रू-कैप्सूल होगा।
इस प्रोजेक्ट का मकसद है एस्ट्रोनॉट्स को ना केवल चांद, बल्कि उसके परे भी ले जाना। दूसरे शब्दों में, भविष्य में अंतरिक्ष-अन्वेषण के लिए रोबोटिक रोवर्स के बजाय मनुष्यों को भेजना। नासा की योजना है वर्ष 2024 तक गेट-वे नामक एक लूनर ओर्बिटिंग स्पेस स्टेशन का निर्माण करना। इसमें एक शटल होगा, जिसका इस्तेमाल एस्ट्राेनॉट्स चांद पर उतरने के लिए करेंगे।
वास्तव में नासा चाहता है कि चांद पर एक आउटपोस्ट बनाया जाए, जहां एस्ट्रोनॉट्स कई महीनों तक रह सकें और रिसर्च कर सकें। बात केवल सरकारी अंतरिक्ष-अभियानों तक ही सीमित नहीं, अब कई निजी संस्थान भी मैदान में उतर आए हैं। नासा के अर्तेमीस प्रोजेक्ट में स्पेसएक्स का स्टारशिप भी सम्मिलित है, जिसका मकसद है 2025 तक चांद पर मनुष्यों को भेजना।
मंगल ग्रह पर बस्तियां बसाने की एलन मस्क की योजना के लिए स्टारशिप बहुत महत्वपूर्ण है। स्पेसआईएल नामक एक इजरायली संस्था भी चांद की फार-साइड पर प्रोब-मिशन लॉन्च करने की दिशा में काम कर रही है। यूएई का रोवर एक जापानी फर्म द्वारा निर्मित लैंडिंग क्राफ्ट की मदद से लॉन्च किया जाएगा। चंद्र-अभियानों के प्रति बढ़ते रुझान के चलते कुछ नई साझेदारियां और गठबंधन भी उभरने लगे हैं।
अर्तेमीस प्रोजेक्ट में यूरोपियन स्पेस एजेंसी की सहभागिता और निवेश है। जून 2021 में चीन और रूस ने मिलकर एक संयुक्त अभियान शुरू किया, जिसका मकसद है चांद की कक्षा के लिए एक मूनबेस और स्पेस स्टेशन बनाना। क्या कारण है कि अचानक दुनिया में चांद के लिए नई ललक दिखलाई देने लगी है? वास्तव में चांद को एक ऐसे बेस-स्टेशन की तरह देखा जाने लगा है, जहां से भविष्य के मार्स मिशन संचालित किए जा सकते हैं।
चांद पर पहले लूनर-पोस्ट के लिए उसके दक्षिणी ध्रुव पर स्थित शैकलटन क्रैटर को चुना गया है। माना जाता है कि इसमें बर्फ के भंडार हैं। यह ना केवल एस्ट्रोनॉट्स के लिए उपयोगी सिद्ध हो सकता है, बल्कि इलेक्ट्रोलिसिस की प्रक्रिया के जरिए हाइड्रोजन और ऑक्सीजन के स्रोत के रूप में भी इसका उपयोग किया जा सकता है, जिनसे रॉकेट फ्यूल बनाया जा सकता है।
इतना ही नहीं, रोगोलिथ यानी चांद की सतह को अगर उपयुक्त द्रव पदार्थों में मिलाया जाए तो उससे थ्री-डी प्रिंटिंग के लिए इंक भी बन सकती है। प्रस्तावित चंद्र-अभियान रोमांच से भरने वाले हैं और वे हमारे सामने अपार संभावनाओं का दरवाजा खोलते हैं। लेकिन इसके साथ ही आउटर-स्पेस में मौजूद संसाधनों पर स्वामित्व का विवाद भी खड़ा हो सकता है।
वर्ष 1967 में आउटर स्पेस संधि पर 111 देशों के द्वारा सहमति दी गई थी, जिसमें भारत भी शामिल था। इसमें कहा गया था कि अंतरिक्ष के पिंडों पर पृथ्वी के किसी देश की सम्प्रभुता नहीं हो सकती। लेकिन तब से अब तक भू-राजनीति में बहुत बदलाव आ चुके हैं। बहुत सारे नॉन-स्टेट एक्टर्स भी अंतरिक्ष-अन्वेषण की दुनिया में पदार्पण कर चुके हैं।
ऐसे में स्पेस-रिसोर्सेस पर मिल्कियत के प्रश्न पर पुनर्विचार जरूरी हो गया है। अगली बार जब आप रात के आकाश में चांद को चमचमाता देखें तो कल्पना करें कि जल्द ही उस पर मनुष्यों का बसेरा होगा और वे वहां पर काम में जुटे होंगे। उसी के बाद चांद के परे दूसरे ग्रहों के लिए हमारी यात्राएं सही मायनों में शुरू हो पाएंगी।
(ये लेखिका के अपने विचार हैं)
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