सम्पादकीय

प्रचार-प्रसार तेज : नेपाल निकाय चुनाव का तराई में असर, साझा सीमाओं पर रिश्तों की दुहाई का शोर

Neha Dani
11 May 2022 1:42 AM GMT
प्रचार-प्रसार तेज : नेपाल निकाय चुनाव का तराई में असर, साझा सीमाओं पर रिश्तों की दुहाई का शोर
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नया संविधान लागू होने के बाद वहां दूसरी बार निकाय चुनाव हो रहे हैं। सीमावर्ती क्षेत्रों में सेना एहतियात बरत रही है।

हिंदुस्तान-नेपाल के दरम्यान रिश्ते शुरू से रोटी-बेटी के रहे हैं। उन्हीं रिश्तों की दुहाई का शोर इस वक्त दोनों की साझा सीमाओं पर है। इसी 13 मई को पड़ोसी देश नेपाल में निकाय चुनाव जो होने हैं। कई लोग इस बात से हैरान होंगे कि चुनाव वहां हैं, तो भला सरगर्मी हिंदुस्तान में क्यों? दरअसल, सीमा से सटे इस ओर तराई क्षेत्र के गांवों के हजारों लोग वहां मतदान करेंगे, क्योंकि उनके पास नेपाली नागरिकता है और वे वहां के मतदाता भी हैं। तराई के कुछ खास जिले पीलीभीत, लखीमपुर खीरी, बहराइच, महराजगंज, सिद्धार्थनगर व बिहार के कुछ जिले ऐसे हैं, जो नेपाल सीमा से सटे हैं।

इन जिलों के लोग हमेशा दोनों तरफ काम-धंधों के लिए आते-जाते हैं और ब्याह भी कर लेते हैं। भारत-नेपाल का तराई क्षेत्र कमोबेश एक जैसा है। आपस में गहरे संबंध हैं। चुनाव नजदीक आ चुका है, इसलिए प्रचार भी जोरों पर है। भारतीय सीमा से सटे नेपाल के रूपनदेही, कपिलवस्तु व नवलपरासी आदि जिलों के लोग हमारे यहां के लोगों से भी वोट करने की अपील कर रहे हैं। उन्हें हमारे अधिकारी भी कुछ नहीं कहते। जैसे ही दिन छिपता है, नेपाली प्रत्याशियों का प्रचार-प्रसार तेज हो जाता है।
उम्मीदवारों की प्रचार गाड़ियां सरहद के जिलों में खूब दौड़ रही हैं। प्रत्याशी और उनके समर्थक हिंदुस्तानी सीमा क्षेत्र में अपने रिश्तेदारों के घर पहुंचकर आपसी रिश्तों की दुहाई दे रहे हैं। गौरतलब है कि भारत-नेपाल सीमाओं पर पाकिस्तान, चीन या अन्य देशों के मुकाबले ज्यादा सख्ती नहीं बरती जाती। दोनों मुल्क आपस में सभ्यता-संस्कृति भी साझा करते हैं। वर्ष 1950 में दोनों देशों के बीच हुई विशेष संधि ने दोनों सीमावर्ती नागरिकों को विशेष अधिकार दिए हैं। मतलब, दोनों ओर के लोग आपस में रहकर संपत्ति अर्जित कर सकते हैं।
सिविल सेवा को छोड़कर सरकारी नौकरियां भी कर सकते हैं। हमारे तराई क्षेत्रों में नेपालियों के बसने की भी एक कहानी है। आज से करीब बीस वर्ष पूर्व बड़ी संख्या में नेपाली नागरिक माओवादी आंदोलन के चलते तराई के विभिन्न क्षेत्रों में आकर बस गए थे। पर, उनकी नेपाली नागरिकता और घर-जमीन अब भी वहां बरकरार हैं। वहां के निकाय चुनाव का नतीजा मतों के कम अंतर से हो जाता है, इसलिए यही लोग नेपाल का चुनावी समीकरण बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं, लिहाजा प्रत्याशियों की नजर इन पर बनी हुई है।
हालांकि दोनों देशों के अफसर किसी भी अप्रिय घटनाओं को रोकने के लिए मुस्तैद हैं, दोनों तरफ की सेना एक-दूसरे के संपर्क में हैं। जैसे हमारे यहां प्रधानी चुनावों में मुर्गा-मछली की पार्टियां चलती हैं, वैसी ही वहां हो रही हैं। ढोल-नगाड़े भी बज रहे हैं। गांव-देहातों को चमकाने के वादे हो रहे हैं। नेपाली टोपी पहने नेपाली प्रत्याशी हमारे यहां के मतदाताओं को रिझाने के लिए ग्रामीण इलाकों महराजगंज, नौतनवा, सोनौली, भगवानपुर, श्यामकाट, शेख फरेंदा, केवटलिया, डाली, सुंडी व सिद्धार्थनगर के बैरियहवा, ककरहवा, फरसादीपुर, धनगढ़वा आदि इलाकों में व्यक्तिगत रूप से भी जनसंपर्क कर रहे हैं।
दरअसल, तराई के सीमावर्ती क्षेत्र ऐसा है, जहां के अधिकांश घरों के युवक-युवतियों की शादी दोनों तरफ होती हैं। भारत के लोग भी उनका खुलेदिल से स्वागत-सम्मान कर रहे हैं। भारतीय सीमा में सबसे ज्यादा वोटर बहराइच, पलिया, रमनगरा, सिद्धार्थनगर और महराजगंज के ग्रामीण इलाकों से हैं। नेपाल के कपिलवस्तु, नवलपरासी और रूपनदेही जिले की लगभग दो सौ किलोमीटर सीमा हमारे इन क्षेत्रों से आपस में साझा करती हैं। अनुमान है करीब एक लाख से ज्यादा मतदाता ऐसे हैं, जिनके पास दोहरी भारतीय और नेपाली नागरिकता है। इस पहाड़ी मुल्क का निकाय चुनाव इस बार कुछ अलग है। नेपालियों में उत्साह है, उमंग हैं। नया संविधान लागू होने के बाद वहां दूसरी बार निकाय चुनाव हो रहे हैं। सीमावर्ती क्षेत्रों में सेना एहतियात बरत रही है।

सोर्स: अमर उजाला

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