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सोर्स- Jagran
डा. लक्ष्मीशंकर यादव। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गत दिवस स्वदेश निर्मित भारत के पहले विमानवाहक पोत आइएनएस विक्रांत को कोचीन शिपयार्ड में देश सेवा के लिए समर्पित किया। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि केरल के समुद्री तट पर पूरा भारत एक नए भविष्य के सूर्योदय का साक्षी बन रहा है। यह विश्व क्षितिज पर भारत के बुलंद होते हौसलों की हुंकार है। यह पहला स्वदेशी विमानवाहक पोत ही नहीं, बल्कि समंदर पर तैरता हुआ एक किला है। इसका डिजाइन और निर्माण सब कुछ भारत में ही किया गया है। इसमें जितनी बिजली पैदा होगी, उससे 5000 घरों को रोशन किया जा सकता है। इसका फ्लाइंग डेक भी फुटबाल के दो मैदानों से बड़ा है। 1971 की लड़ाई में अपनी शानदार भूमिका निभाने वाले विक्रांत का यह नया अवतार अमृत-काल की उपलब्धि के साथ-साथ हमारे स्वतंत्रता सेनानियों और बहादुर सैनिकों को भी एक विनम्र श्रद्धांजलि है। इस अवसर पर भारतीय नौसेना ने अपनी सभी शाखाओं को महिलाओं के लिए खोलने का निर्णय भी लिया है।
इस अवसर पर प्रधानमंत्री ने भारतीय नौसेना को नया ध्वज भी प्रदान किया। अब छत्रपति शिवाजी से प्रेरित नौसेना का नया ध्वज समुद्र में लहराएगा। प्रधानमंत्री मोदी ने भारतीय नौसेना के नए निशान का भी अनावरण किया। अब गुलामी के प्रतीक लाल क्रास को हटा दिया गया है। ध्वज में ऊपर बाईं तरफ तिरंगा बना हुआ है और बगल में नीले रंग के बैकग्राउंड पर गोल्डन कलर में अशोक चिह्न बना हुआ है, जिसके नीचे सत्यमेव जयते लिखा हुआ है। स्वदेशी विमानवाहक पोत का निर्माण आत्मनिर्भर भारत अभियान की एक खास मिसाल है। इस तरह इसने नौसैन्य बल का एक नया समुद्री इतिहास रच दिया गया है। इस उपलब्धि के बाद भारतीय नौसेना दुनिया की शीर्ष तीन नौसेनाओं में से एक बन गई है।
आइएनएस विक्रांत के निर्माण की शुरुआत 28 फरवरी 2009 को कोच्चि के कोचीन शिपयार्ड में की गई। निर्माण कार्य पूरा होने के बाद इसे 12 अगस्त 2013 को लांच किया गया।
दिसंबर 2020 में इसका बेसिन ट्रायल किया गया, जिसमें यह पूरी तरह खरा उतरा। सामुद्रिक परीक्षणों के लिए इसे 4 अगस्त 2021 को समुद्र की लहरों पर उतारा गया, जो इसके परीक्षण का पहला चरण था। परीक्षण का दूसरा चरण अक्टूबर 2021 और तीसरा चरण 22 जनवरी 2022 को पूरा हुआ। इसका अंतिम और चौथा समुद्री परीक्षण मई 2022 में शुरू किया गया, जो 10 जुलाई 2022 को पूरा हुआ। चौथे परीक्षण में समुद्र के करीब और दूरी पर रक्षा संबंधी उपकरणों के साथ इसकी रणनीतिक क्षमता को नौसेना द्वारा व्यापक रुप से जांचा-परखा गया। परीक्षणों में यह भी देखा गया कि यह पोत कितना ताकतवर, टिकाऊ और भरोसेमंद है। इसके अलावा इसकी मारक क्षमता भी देखी गई। इन परीक्षणों ने यह सिद्ध कर दिया कि इसके नौसेना में शामिल होने के बाद देश की रक्षा शक्ति में अभूतपूर्व क्षमता जुड़ जाएगी और समुद्री क्षेत्र में भारत के हितों को सुरक्षित करने में मदद मिलेगी।
आइएनएस विक्रांत भारत का पहला स्टेट आफ द आर्ट विमानवाहक पोत है। इस युद्धपोत को बनाने में करीब 23,000 करोड़ रुपये की लागत आई है। इसके कांबैट मैनेजमेंट सिस्टम को टाटा पावर स्ट्रैटेजिक इंजीनियर डिवीजन ने रूस की वीपन एंड इलेक्ट्रानिक्स सिस्टम इंजीनियरिंग और मार्स के साथ मिलकर बनाया है। इसे बनाने में कोचीन शिपयार्ड के साथ-साथ 500 से अधिक भारतीय कंपनियों ने मदद की है। इसके अलावा इसके निर्माण में करीब सौ एमएसएमई कंपनियां भी शामिल थीं। इस युद्धपोत के अलग-अलग हिस्सों को अलग-अलग कंपनियों ने बनाया है। यह मेक इन इंडिया का एक बेहतरीन उदाहरण है। इस पर तैनात होने वाले लड़ाकू विमानों को लेकर भी काफी चिंतन और मनन किया गया। पहले इस पर हल्के तेजस लड़ाकू विमानों को तैनात किए जाने की बात हुई, परंतु इसमें कुछ समस्याएं आईं तो रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन यानी डीआरडीओ ने एक प्लान बनाकर हिंदुस्तान एयरोनाटिक्स लिमिटेड को दिया, जिसके तहत अब वह ट्विन इंजन डेक बेस्ड फाइटर विकसित कर रहा है। तब तक के लिए इस पर मिग-29के श्रेणी वाले लड़ाकू विमानों को तैनात किया जाएगा।
इस विमानवाहक पोत की फ्लाइट डेक करीब 1.10 लाख वर्ग फुट की है, जिस पर बड़ी संख्या में लड़ाकू विमान आराम से टेक आफ और लैंडिंग कर सकते हैं। इस पर एक बार में 36 से लेकर 40 की संख्या में लड़ाकू विमान तैनात किए जा सकते हैं। इस विमानवाहक पोत की स्ट्राइक फोर्स की रेंज 1,500 किमी तक की है। इस पर जमीन से हवा में मार करने में सक्षम 64 बराक मिसाइलें लगी होंगी। आइएनएस विक्रांत में जनरल इलेक्ट्रिक के ताकतवर टरबाइन लगे हैं, जो इसे 1.10 लाख हार्स पावर की ताकत देंगे। इस तरह यह काफी शक्तिशाली विमानवाहक पोत है। इस युद्धपोत को सर्वश्रेष्ठ आटोमेटेड मशीनों, आपरेशन, शिप नेविगेशन एवं सुरक्षा प्रणलियों से लैस किया गया है। इसकी लंबाई 860 फुट, गहराई 84 फुट ओर चौड़ाई 203 फुट है। इस पोत का कुल क्षेत्रफल 2.5 एकड़ का है। यह 52 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से समुद्र की लहरों को चीरता हुआ तेजी से आगे बढ़ने की क्षमता रखता है। यह एक बार में 15,000 किमी की यात्रा कर सकता है। इसमें एक बार में 196 नौसेना अधिकारी, 1149 सेलर्स और एयरक्रू तैनात रह सकते हैं। इन खूबियों वाला यह पोत हिंद महासागर में चीन की बढ़ती गतिविधियों के मद्देनजर भारतीय नौसेना की ताकत काफी बढ़ा देगा।

Rani Sahu
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