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भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं के सामने समावेशी विकास की सामानांतर चुनौती है
भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं के सामने समावेशी विकास की सामानांतर चुनौती है. देशभर में फैला एमएसएमई सेक्टर महिलाओं, प्रवासियों और अल्पसंख्यकों समेत करोड़ों कामगारों को मुफलिसी के दलदल से निकाल सकता है. साथ ही, यह आत्मनिर्भर भारत के लिए सरकार की 'मेक इन इंडिया' मुहिम को ऊर्जा प्रदान करने में सक्षम है. इसी के मद्देनजर छोटे और मध्यम व्यवसायों के लिए केंद्रीय कैबिनेट द्वारा विश्व बैंक समर्थित 6062 करोड़ रुपये के वित्त पोषण को मंजूरी प्रदान की गयी है.
प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में एमएसएमई सेक्टर और स्थानीय व्यवसायों को गतिमान करने के उद्देश्य से अनेक फैसले किये गये हैं. कैबिनेट के इस फैसले से छोटे और मध्यम व्यवसायों की बाजार और क्रेडिट तक बेहतर पहुंच होगी. कारोबारी माहौल को बेहतर बनाने में क्रेडिट गारंटी योजनाओं की प्रभावी भूमिका है, इससे एमएसएमई को आर्थिक अनिश्चितताओं से निपटने में भी मदद मिलेगी. घरेलू उद्योगों के लिए रक्षा पूंजी बजट के 68 प्रतिशत आरक्षित होने से एमएसएमई सेक्टर को मजबूत आधार मिलेगा. साढ़े सात लाख करोड़ रुपये का सार्वजनिक निवेश अर्थव्यवस्था को मजबूती और छोटे व अन्य उद्योगों को नया अवसर प्रदान करेगा.
देश में 1.3 करोड़ से अधिक एमएसएमई को अतिरिक्त क्रेडिट उपलब्ध कराने के उद्देश्य से इमरजेंसी क्रेडिट लाइन गारंटी स्कीम (इसीएलजीएस) को मार्च, 2023 तक बढ़ाया गया है. इसे आत्मनिर्भर भारत अभियान पैकेज के तहत मई, 2020 में प्रारंभ किया गया था, ताकि लॉकडाउन से प्रभावित विभिन्न सेक्टर, विशेषकर छोटे और मध्यम उद्योगों को राहत मिल सके. रोजगार पैदा करने, ग्रामीण इलाकों तक औद्योगिक विकास, स्थानीय संसाधनों के प्रभावी इस्तेमाल और विविध प्रकार के उत्पादों को निर्यात योग्य बनाने में एमएसएमई सेक्टर में अपार क्षमता है. एमएसएमई मंत्रालय के अनुसार, देशभर में 10 करोड़ से अधिक रोजगार इस क्षेत्र की आर्थिक गतिविधियों से आता है.
देश के सकल घरेलू उत्पाद में 38 प्रतिशत और कुल निर्यात तथा विनिर्माण में 45 प्रतिशत के योगदान के साथ यह सेक्टर सामाजिक और आर्थिक पुनर्संरचना में अहम है. यह क्षेत्र 6000 से अधिक पारंपरिक से लेकर हाईटेक उत्पाद विनिर्मित करता है. इस प्रकार, 2025 तक पांच ट्रिलियन आर्थिकी बनने की सरकारी महत्वकांक्षा को हासिल करने में यह अग्रणी भूमिका निभा सकता है. वर्तमान में सीमित बजट और डिजिटल तकनीकों तक पर्याप्त पहुंच नहीं होने से कुछ चुनौतियां भी हैं.
नवाचार योजनाओं में अपर्याप्त निवेश, मांग के अनुरूप उत्पाद तैयार नहीं कर पाने और नये बाजारों तक पर्याप्त पहुंच नहीं होने से यह क्षेत्र जूझ रहा है. इसके लिए आवश्यक है कि निवेश और नये बाजारों तक पहुंच के लिए डिजिटल आर्थिकी से इसे समन्वित किया जाये. इससे उद्योग और अर्थव्यवस्था को लाभकारी तकनीकों का फायदा मिलेगा, साथ ही रोजगार के नये अवसर भी उपलब्ध हो सकेंगे.
प्रभात खबर के सौजन्य से सम्पादकीय
Gulabi Jagat
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