सम्पादकीय

महज राजनीतिक लाभ लेने के उद्देश्य से मुफ्तखोरी को बढ़ावा देना आत्मघात

Gulabi Jagat
6 April 2022 1:55 PM GMT
महज राजनीतिक लाभ लेने के उद्देश्य से मुफ्तखोरी को बढ़ावा देना आत्मघात
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गंभीर आर्थिक संकट किस तरह किसी देश में राजनीतिक संकट खड़ा करने के साथ कानून एवं व्यवस्था के लिए भी चुनौती बन सकता है
गंभीर आर्थिक संकट किस तरह किसी देश में राजनीतिक संकट खड़ा करने के साथ कानून एवं व्यवस्था के लिए भी चुनौती बन सकता है, इसका उदाहरण है श्रीलंका। वहां की स्थितियां जिस तेजी से बिगड़ रही हैं, वे भारत के लिए भी चिंता का विषय बन गई हैं। आर्थिक हालात बिगडऩे और महंगाई के बेलगाम हो जाने के कारण एक ओर जहां जनता का अंसतोष बढ़ता जा रहा है, वहीं दूसरी ओर राजनीतिक अस्थिरता भी गहराती जा रही है। करीब-करीब हर जरूरी वस्तु के आसमान छूते दामों से नाराज श्रीलंका की जनता सड़कों पर उतर रही है और वहां के राष्ट्रपति को यह समझ नहीं आ रहा है कि वे करें तो क्या करें? स्थिति की गंभीरता का अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि राष्ट्रपति ने वित्त मंत्री को हटाकर जिन्हें इस मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी, उन्होंने 24 घंटे के अंदर ही इस्तीफा दे दिया। हालांकि भारत श्रीलंका की यथासंभव मदद कर रहा है, लेकिन इसमें संदेह है कि वहां जल्द हालात संभलेंगे।
श्रीलंका की आर्थिक स्थिति जिन कारणों से बिगड़ी, उनमें चीन से कठोर शर्तों पर लिया गया कर्ज तो जिम्मेदार है ही, इसके अलावा वे लोकलुभावन नीतियां भी उत्तरदायी हैं, जो आर्थिक नियमों को धता बताती थीं। कर्ज के बढऩे और विदेशी मुद्रा भंडार खाली होते जाने के बाद भी इन नीतियों को आगे बढ़ाकर श्रीलंका ने अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने का ही काम किया। यह ठीक है कि भारत श्रीलंका के हालात पर नजर रखे हुए है, लेकिन केवल इतना ही पर्याप्त नहीं। इसी के साथ ही उन कारणों पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है, जिनके चलते श्रीलंका गहरे संकट में धंस गया। इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि हाल में प्रधानमंत्री मोदी ने जब शीर्ष अधिकारियों के साथ एक बैठक की तो कई अफसरों ने यह कहा कि कुछ राज्यों की ओर से मुफ्त वस्तुएं और सुविधाएं देने का जो काम किया जा रहा है, वह उन्हें श्रीलंका जैसी स्थिति में ले जा सकता है। इन अफसरों की मानें तो कर्ज में डूबे राज्य मुफ्तखोरी वाली योजनाएं चलाकर अर्थव्यवस्था का बेड़ा गर्क कर रहे हैं। इस कटु सत्य से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता। इससे इन्कार नहीं कि देश में एक तबका ऐसा है, जिसे राहत और रियायत देने की आवश्यकता है।
दैनिक जागरण के सौजन्य से सम्पादकीय
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