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- लोकतन्त्र मेें हिंसा...
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। राज्य में अगले साल की शुरुआती छमाही में चुनाव होने हैं जिसकी तैयारी सभी राजनीतिक दल अपने-अपने हिसाब से कर रहे हैं। लोकतन्त्र में जरा भी हिंसा का स्थान नहीं है। इस प्रणाली में वैचारिक मतभिन्नता को प्रकट करने के लिए ऐसे अहिंसक तरीके अपनाने की शर्त होती है जिनमें विरोधी पक्ष को किसी प्रकार के भौतिक नुकसान की गुंजाइश नहीं होती। यह कार्य विचारों के तीरों से ही एक-दूसरे के तर्कों को काट कर किया जाता है। हिंसक माध्यमों का इस्तेमाल करके जब लोकतन्त्र में विरोधी के विचारों को काटने का प्रयास किया जाता है तो कानून-व्यवस्था की समस्या पैदा होती है जिसे काबू या नियन्त्रण में रखना राज्य स्तर पर सत्ताधारी दल की सरकार की जिम्मेदारी होती है। प. बंगाल में पिछले कुछ समय से जिस प्रकार का माहौल बना हुआ है उससे यही लगता है कि राज्य में राजनीतिक हिंसा लगातार बढ़ रही है। राजनीतिक दल यदि हिंसा का रास्ता अपना कर एक-दूसरे को पछाड़ने की गतिविधियों में शामिल होते हैं तो इससे अराजक व समाज विरोधी तत्वों को राजनीति में परोक्ष रूप से वैधानिकता प्राप्त होती है और वे समूची प्रणाली को विषाक्त बनाने के प्रयास करते हैं। कल प. बंगाल में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री जेपी नड्डा के काफिले पर जिस तरह पत्थरबाजी की गई उसका समर्थन किसी भी रूप मे नहीं किया जा सकता।