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- आपदा में मुनाफाखोरी ने...
अरविंद मिश्रा: आक्सीजन मनुष्य के लिए प्राणवायु है। वातावरण में मौजूद जिस आक्सीजन के जरिये हमारी सांसों की डोर चलती है, उसके लिए हमें न तो पैसे खर्च करने पड़ते हैं और न ही कतार लगानी पड़ती है। शायद इसीलिए आक्सीजन के प्रति हमने संवेदनशील होना तो दूर, अपनी गतिविधियों से उसकी गुणवत्ता को नष्ट किया। आक्सीजन के चिकित्सकीय रूप ने तो कोरोना की दूसरी लहर की वजह से ही लोगों का ध्यान आर्किषत किया है। आज यह एक ऐसा उत्पाद बन गया है जिसे हासिल करने के लिए मरीज और अस्पताल जिद्दोजहद कर रहे हैं। कई मामलों में तो न्यायालयों को भी दखल देना पड़ रहा है। हालांकि आक्सीजन से जुड़ी यह विपदा संसाधनों के अभाव से कहीं अधिक उसके अनुचित संग्रहण और उसके उपयोग के प्रति जागरूकता के अभाव से उत्पन्न हुई है। औद्योगिक गतिविधियों और चिकित्सकीय उपचार में प्रयुक्त होने वाली आक्सीजन सामान्यत: एक ही संयंत्र में तैयार की जाती है। एक ही प्रकार के टैंक और सिलेंडर के जरिये इसे संग्रहित किया जाता है।
देश में तकरीबन एक लाख टन आक्सीजन का प्रतिदिन उत्पादन होता है