सम्पादकीय

पेगासस में जांच

Rani Sahu
28 Oct 2021 7:34 AM GMT
पेगासस में जांच
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पेगासस मामले में देश की सर्वोच्च अदालत का फैसला स्वागतयोग्य है

पेगासस मामले में देश की सर्वोच्च अदालत का फैसला स्वागतयोग्य है। अदालत ने इस मामले में स्वतंत्र जांच की मांग करने वाली याचिकाओं पर अपना जो फैसला सुनाया है, वह कतई नहीं चौंकाता। मामले को अंजाम तक पहुंचाने के लिए अदालत के पास शायद यही सबसे बेहतर विकल्प था। अब इस सनसनीखेज मामले की जांच एक्सपर्ट कमेटी करेगी। जांच समिति के गठन के साथ ही कोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए यह भी कह दिया है कि लोगों की जासूसी किसी भी कीमत पर मंजूर नहीं की जा सकती। सुप्रीम कोर्ट ने तीन सदस्यीय समिति गठित की है और जांच के लिए आठ सप्ताह की समय-सीमा तय करके बिल्कुल सही किया है। अदालत को सुनिश्चित करना चाहिए कि तय समय में जांच रिपोर्ट पेश हो जाए। हालांकि, यह रिपोर्ट सार्वजनिक होगी या नहीं, यह कहना कठिन है, लेकिन जब बड़े सवालों के जवाब जिम्मेदार अधिकारियों की ओर से नहीं आ रहे हैं, तब शीर्ष अदालत से ही अब याचिकाकर्ताओं को उम्मीद है। यह जानना जरूरी है कि जासूसी के लिए क्या अवैध तरीके से पेगासस सॉफ्टवेयर का उपयोग किया गया है? आखिर पेगासस या जासूसी की जरूरत ही क्यों पड़ी है? शायद इन सवालों के जवाब सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित समिति खोज पाएगी।

कोई शक नहीं कि आदर्श स्थिति तब होती, जब सुप्रीम कोर्ट को सवालों के जवाब पहले ही मिल जाते, जांच की जरूरत ही नहीं पड़ती। लेकिन याचिकाकर्ताओं ने जो सवाल उठाए थे, उन्हें जब अदालत संतुष्ट नहीं कर सकी, तब मामले की जांच जरूरी हो गई। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कह दिया कि हमारे पास याचिकाकर्ता की दलीलों को प्रथम दृष्टया स्वीकार करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। अब जो समिति गठित हुई है, उसकी निगरानी सर्वोच्च अदालत के हाथों में रहेगी। संभव है, जांच के बाद अदालत किसी ठोस नतीजे पर पहुंचे। अब जब आठ सप्ताह बाद सुनवाई होगी, देश के सामने दूध का दूध पानी का पानी होने की उम्मीद है। अगर जासूसी हुई है, तो यह जानना सबसे जरूरी है कि उससे देश को फायदा हुआ है या नुकसान? दुनिया में लोगों की जासूसी का इतिहास पुराना है, लेकिन सभ्यता के दायरे में इसे अच्छा नहीं माना जाता है। विशेष रूप से लोकतंत्र में तंत्र पर लोक का विश्वास जितना जरूरी है, उतनी ही जरूरी है तंत्र में पारदर्शिता। पेगासस से अगर जन-विश्वास खंडित हुआ है, तो संविधान की रोशनी में यह चिंता की बात है। इसकी पुनरावृत्ति तो कतई नहीं होनी चाहिए।
तीन सदस्यीय जांच समिति की अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश आर वी रवींद्रन करेंगे और इसमें आलोक जोशी और संदीप ओबेरॉय सदस्य होंगे। यह देश के लिए एक आदर्श जांच हो, तो ही बात बनेगी। किसी भी तरह की खानापूर्ति के बजाय यह देखने की जरूरत है कि किन्हीं नागरिकों पर किसी सरकार के अविश्वास के निहितार्थ क्या हैं? यह भी संभव है कि जांच के दौरान समिति जिम्मेदार अधिकारियों के जासूसी कराने संबंधी फैसले से सहमत हो। पेगासस के जरिये जांच यदि जरूरी थी, अगर देश पर कोई खतरा था, तो जांच के बाद खामोश रह जाना बेहतर होगा। लेकिन अगर विधान को ताक पर रखकर अवैध रूप से जासूसी की गई है, तो हमें सचेत हो जाना चाहिए। जासूसी की किसी भी गलत परंपरा से अपने देश को बचाना चाहिए।

क्रेडिट बाय हिन्दुस्तान

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