सम्पादकीय

प्रियंका का 'महिला कार्ड'

Subhi
21 Oct 2021 2:24 AM GMT
प्रियंका का महिला कार्ड
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कांग्रेस महासचिव श्रीमती प्रियंका गांधी ने जिस प्रकार उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में 40 प्रतिशत टिकट महिला प्रत्याशियों को देने की घोषणा की है उससे इस राज्य की राजनीति पर गुणात्मक असर पड़ सकता है

आदित्य नारायण चोपड़ा: कांग्रेस महासचिव श्रीमती प्रियंका गांधी ने जिस प्रकार उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में 40 प्रतिशत टिकट महिला प्रत्याशियों को देने की घोषणा की है उससे इस राज्य की राजनीति पर गुणात्मक असर पड़ सकता है क्योंकि पिछले तीस साल से देश के इस सबसे बड़े राज्य की राजनीति संकीर्ण विभाजनकारी सामाजिक मुद्दों के चारों तरफ ही घूम रही है जिससे इस प्रदेश की छवि प्रतिगामी सियासत के सूरमा की बनी हुई है। तथ्य यह है कि उत्तर प्रदेश सम्पूर्ण भारत का राजनीतिक 'विमर्श' तय करने वाला प्रदेश भी है क्योंकि इसकी सामाजिक संरचना भारत के इतिहास के उन विभिन्न चरणों की उत्तराधिकारी है जिनमें सामाजिक-आर्थिक प्रगति के सिलसिले क्रमवार चलते रहते हैं। एक तरफ यह घनघोर जातिवाद से ग्रस्त तो दूसरी तरफ सामन्तवाद से त्रस्त विरासत को ढोता रहा है तो तीसरी तरफ इसी की सरजमीं से औद्योगिक क्रन्ति से जन्मी प्रगतिशीलता इसकी धरोहर रही है। आजादी के बाद के कुछ दशकों तक इसी प्रदेश का 'कानपुर' शहर भारत का 'मेनचेस्टर' कहलाया करता था परन्तु 80 के दशक के बाद यह राज्य भारत की राजनीति की एेसी प्रयोगशाला बना जिसमें धार्मिक व जातिगत पहचान ने शार्षस्थ स्थान इस प्रकार लिया कि विचारधारात्मक रूप से समाज के सर्वांगीण विकास का भाव लुप्त होता चला गया। और समाज का कबायली स्वरूप ऊपर आने लगा। निश्चित रूप से इसमें राम मन्दिर आन्दोलन और मंडल आयोग ने निर्णायक भूमिका निभाई। प्रियंका गांधी ने राजनीति की इस रफ्तार को मोड़ने का जो प्रयास किया है उसका स्वागत किया जाना चाहिए और जाति-धर्म से ऊपर उठ कर सकल समाजोत्थान के बारे में विचार किया जाना चाहिए। इससे सैद्धान्तिक व वैचारिक आधार पर राजनीति को नये कलेवरों में बांधने की शुरूआत तभी हो सकती है जबकि पूरी कांग्रेस पार्टी एकजुट होकर चुनाव लड़े। प्रियंका गांधी ने महिला सशक्तीकरण का वह कार्ड खेला है जिसमें पूरे समाज को फिर से वैचारिक रूप से गोलबन्द करने की क्षमता है। उत्तर प्रदेश के सम्बन्ध में हमें विचार करना चाहिए कि 1963 में जब तत्कालीन प्रधानमन्त्री पं. जवाहर लाल नेहरू ने कामराज प्लान लागू करके मठाधीश बने कांग्रेसी नेताओं का इस्तीफा लिया था तो राज्य के लौहपुरुष कहे जाने वाले स्व. चन्द्रभानु गुप्ता मुख्यमन्त्री थे। कामराज प्लान के तहत श्री गुप्ता के स्थान पर स्व. श्रीमती सुचेता कृपलानी को मुख्यमन्त्री पद पर बैठाया गया। उनके बैठने से राज्य की कांग्रेस पार्टी में गुटबाजी पर विराम लगा और राजनीति में सदाचारिता की बातें होने लगीं। हालांकि इसके बाद 1967 में कांग्रेस पार्टी के भीतर स्व. चौधरी चरण सिंह ने विद्रोह का बिगुल इसी वजह से बजाया कि सत्ता के शीर्ष पर केवल कुछ संभ्रान्त कहे जाने वाले लोगों का एकाधिकार नहीं हो सकता परन्तु उन्होंने कांग्रेस से अलग होकर वह राजनीतिक विमर्श खड़ा किया जिससे भारत का जमीनी धरातल से सर्वांगीण विकास हो सके जिसके लिए उन्होंने बापू के गांवों के विकास के दर्शन को आगे रखा और कहा कि गांवों की कीमत पर शहरों का विकास करके हम भारत का विकास नहीं कर सकते। संपादकीय :100 करोड़ लोगों का टीकाकरणइंतजार की घड़ियां समाप्त होने वाली हैं पर .. ध्यान सेकश्मीर की 'फिजां' की फरियाद'बाबा' को सजाजाते मानसून का कहरभारत-पाक महासंघ का विचारआज बदले हुए सन्दर्भों में प्रियंका गांधी भी वही बात कह रही हैं कि जाति और धर्म में बांट कर हम उत्तर प्रदेश का विकास नहीं कर सकते परन्तु कांग्रेस पार्टी को पंजाब में अपने गिरेबान में भी झांकना होगा जहां उसके पूर्व मुख्यमन्त्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने अपनी अलग पार्टी गठित करने का एेलान कर दिया है। कैप्टन भूल रहे हैं कि वह कोई व्यापक जनाधार वाले नेता नहीं हैं। उनका जनाधार इतना ही है कि वह पंजाब की शीर्ष राजनीति में कांग्रेस में रहते हुए पटियाला राजघराने के प्रतीक वैभव की आभा में आम कांग्रेसियों का भरपूर समर्थन प्राप्त करते रहे और राज्य में कांग्रेस के एक सशक्त विकल्प के रूप में होने का लाभ उठाते रहे। निश्चित रूप से वह न तो चौधरी चरण सिंह हैं और न ममता बनर्जी या जगन रेड्डी जो अपने पुरुषार्थ से जनता के बीच लोकप्रिय हुए। उनके लोकप्रिय होने का एकमात्र कारण उनका कांग्रेसी होना था। अतः उनकी नई पार्टी का भाजपा या अकाली दल (एसएस ढींढसा गुट) से सहयोग करने का असर केवल इतना ही पड़ेगा कि वह पंजाब विधानसभा चुनावों में कांग्रेस पार्टी का टिकट पाने को आतुर नाकामयाब प्रत्याशियों को अपनी तरफ खींच सकेंगे। मगर एेसा करके वह केवल पंजाब में अस्थिरता को ही दावत दे सकते हैं अतः पंजाब राज्य की जनता की राजनीतिक बुद्धि को वह एक मायने में चुनौती भी देंगे क्योंकि यह सीमान्त राज्य है जिसमें राजनीतिक स्थायित्व की सख्त जरूरत है और इस हकीकत को आम पंजाबी बखूबी समझता है। कैप्टन को गलतफहमी में रहने की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि 2017 में लोगों ने कांग्रेस पार्टी को वोट दिया था कैप्टन को नहीं।


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