सम्पादकीय

प्रियंका भी चलीं राहुल के रास्ते, कांग्रेस की सियासत अपनों के वास्ते

Gulabi
22 Feb 2021 10:13 AM GMT
प्रियंका भी चलीं राहुल के रास्ते, कांग्रेस की सियासत अपनों के वास्ते
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जिससे आपको सबसे ज्यादा उम्मीद होती है वही आपको सबसे ज्यादा निराश करने की भी क्षमता रखता है

जिससे आपको सबसे ज्यादा उम्मीद होती है वही आपको सबसे ज्यादा निराश करने की भी क्षमता रखता है. बात है कांग्रेस पार्टी की राजकुमारी प्रियंका गाँधी वाड्रा की. शुरू से ही उनका राजनीति के साथ छुईमुई जैसा रिश्ता रहा है. जब राजनीति में नहीं थी, तब भी राजनीति में थीं. और जब राजनीति में हैं, तब भी कई बार ऐसा प्रतीत होता है कि वह राजनीति में नहीं हैं. 1999 में जब माँ सोनिया गाँधी पहली बार चुनाव लड़ीं और बाद में जब बड़े भाई राहुल गाँधी 2004 में पहली बार चुनाव लड़े तब से ही वह राजनीति में नहीं होते हुए भी राजनीति में थीं. माँ और भाई को चुनाव जिताने का दारोमदार प्रियंका के ही कंधे पर होता था. दोनों पार्टी के बड़े नेता थे और स्टार प्रचारक भी. अमेठी हो या रायबरेली, एक तरह से चुनाव प्रियंका ही लड़तीं और जीतती थीं. और चुनाव के बाद भी वहां के जनता की बात सुनना और उनके लिए काम करने की भी जिम्मेदारी प्रियंका पर ही होती थी. बस वह लोकसभा में माँ या भाई के स्थान पर बैठ नहीं सकती थीं.

आज से 10-15 साल पहले सोनिया गाँधी से मीडिया द्वारा दो सवाल पूछा जाना आम था कि, राहुल गाँधी की शादी कब होगी और प्रियंका सक्रिय राजनीति में कब आएंगी? प्रियंका के बारे में सोनिया गाँधी का हमेशा एक ही जवाब होता था कि अभी उसके बच्चे छोटे हैं, वह जब भी राजनीति में आएंगी फैसला खुद उनका होगा.

प्रियंका ने एक बार एक साक्षात्कार में कहा था कि उनके लिए राजनीति में उतना आकर्षण नहीं है जितना की जनता की सेवा करने में है और जनता की सेवा करने के लिए उन्हें राजनीति में आने की ज़रुरत नहीं है. क्योकि यह काम वह बिना राजनीति में शामिल हुए भी कर रही हैं. राहुल गाँधी 50 साल के हो चुके हैं अभी तक कुंवारे हैं. अब मीडिया ने उनकी शादी के बारे में सवाल करना छोड़ दिया है. प्रियंका दो साल पहले सक्रिय राजनीति में आ गईं और अब जनता सवाल करने लगी है कि क्यों प्रियंका राजनीति में आयीं ? जैसा कि कहावत है, सर मुंडाते ही ओले पड़ना, वही बात प्रियंका पर लागू हो गई. जब तक वह राजनीति में नहीं आयीं थीं तब तक अमेठी में गाँधी परिवार को चुनाव जीतने के लिए कुछ खास नहीं करना पड़ता था. फरवरी 2019 में प्रियंका सक्रिय राजनीति में शामिल हो गईं और शुरुआत ही धमाकेदार हुई, सीधे कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव पद से. एक बार फिर अमेठी और रायबरेली की जिम्मेदारी प्रियंका के कन्धों पर थी. अमेठी से भाई राहुल गाँधी चुनाव हार गए. इसके बाद प्रियंका को झटका लगना और राजनीति से उदासीन हो जाना स्वाभाविक था.

क्या उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बन सकती हैं प्रियंका गांधी?
एक लम्बे समय तक राजनीति में होते हुए वह राजनीति में नहीं थीं, पर अब भाई राहुल गाँधी की तरह ही प्रियंका भी सक्रिय हो गयी हैं. कारण साफ है. जिस तरह गाँधी परिवार के नेतृत्व पर पार्टी के अन्दर सवाल उठना शुरू हो गया है, वह किसी चुनौती से कम नहीं है, समय आ गया है कि अभी नहीं तो कभी नहीं. उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी एक महासचिव के तौर पर प्रियंका के पास है. पहले जहाँ उनका उत्तर प्रदेश का दौरा साल में एक या दो बार ही लगता था, अब पिछले कई दिनों से प्रियंका लगातार उत्तर प्रदेश के दौरे पर हैं. उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में सिर्फ एक वर्ष का समय बचा है और कांग्रेस पार्टी को सबल और सफल बनाने की जिम्मेदारी सिर्फ प्रियंका के कन्धों पर है. आसार यही है कि वह कांग्रेस पार्टी के अघोषित मुख्यमंत्री पद की दावेदार हो सकती हैं.

चमचागिरी पसंद है!
कल यानि शनिवार को प्रियंका मुज़फ्फरनगर जिले के बघरा में एक किसान रैली को संबोधित करने पहुंची थीं. मंच से उनका जनता से परिचय कराया गया यह कहते हुए कि अब उनके बीच उस परिवार का एक सदस्य आ रहा है जो परिवार जनता से कुछ लेता नहीं है, सिर्फ देता ही है. प्रियंका मुस्कुराते हुए माइक के सामने आयीं. यह तो साफ हो गया कि उन्हें भी चमचागिरी पसंद है और जिस तरह से उन्हें मंच पर आमंत्रित किया गया, वह गदगद दिखीं.
उस परिवार से प्रियंका का सम्बन्ध जो जनता दे कुछ लेता नहीं है, सिर्फ देता है बहुतों के गले उतरा नहीं होगा. अगर कुछ लेता नहीं है तो धोखाधड़ी से किसानों से हरियाणा और राजस्थान ज़मीन किसने ली थी? किस पर अब जमीन घोटाले की जाँच और मुकदमा चल रहा है? कांग्रेस पार्टी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा प्रियंका के ही तो पति हैं ना?

दादी इंदिरा से होती थी तुलना
एक समय था जब प्रियंका की तुलना उनकी दादी इंदिरा गाँधी से की जाती थी. लोगों का मानना था की उनपर इंदिरा गाँधी की छवि साफ़ दिखती है. यह तब तक सही लगता था जब तक वह राजनीति में नही आयी थीं. अब जबकि रोज उत्तर प्रदेश में उनका भाषण हो रहा है, यह स्पष्ट होता जा रहा है कि प्रियंका इंदिरा गाँधी से कम और राहुल गाँधी से ज्यादा प्रभावित हैं. हो सकता है कि दोनों के सलाहकार और स्पीच राइटर एक ही हों. वही घिसापिटा किसान कानून पर राहुल गाँधी जैसा भाषण देना और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर उल्टे सीधे आरोप लगाना ही प्रियंका भी करने लगी हैं.

प्रधानमंत्री मोदी से सवाल, गहलोत की 'ढाल'
प्रियंका ने अपने एक भाषण में कहा, "आपको मालूम होगा कि बीजेपी सरकार ने पिछले साल डीजल पर जो टैक्स लगाया उससे साढ़े तीन लाख करोड़ रुपए कमाए. मैं पूछना चाहती हूं, कहाँ गए वो रुपए? 2014 से अब तक मोदी सरकार ने पेट्रोल-डीजल पर टैक्स बढ़ाकर आपको मालूम नहीं होगा 21 लाख 50 हजार करोड़ रुपए कमाए. मैं पूछना चाहती हूं, कहाँ गया वो पैसा?" प्रियंका गाँधी ने मोदी सरकार से सवाल किया. मानो जैसे वह पैसा मोदी ने डकार लिया हो और कोई गबन का मामला हो.

राजस्थान में सबसे महंगा पेट्रोल
इस बात में कोई शक नहीं कि जिस कीमत पर इन दिनों पेट्रोल और डीजल बिक रहा है वह काफी ज्यादा है. सरकार को टैक्स कम करके उनकी कीमत कम करनी चाहिए क्योकि इसका असर उनपर भी पड़ रहा है जिनके पास खुद के वाहन नहीं हैं. हर एक ज़रूरी चीजों की कीमत बढ़ती जा रही है, क्योकि सामान को खेत या फैक्ट्री से दुकान पर लाने का खर्च बढ़ गया है. प्रियंका गाँधी को यह तो पता होगा कि पेट्रोल और डीजल पर केंद्र का टैक्स और राज्य सरकारों का भी टैक्स लगा होता है. कांग्रेस शासित राजस्थान में पेट्रोल और डीजल इन दिनों सबसे महंगा बिक रहा है और कारण है राजस्थान में किसी अन्य राज्य के मुकाबले पेट्रोल और डीजल पर VAT सबसे ज्यादा है. पेट्रोल पर 36 प्रतिशत और डीजल पर 26 प्रतिशत. इसके आलावा राजस्थान सरकार पेट्रोल पर 1500 रूपये प्रति किलोलीटर और डीजल पर 1750 रूपये प्रति किलोलीटर की दर से रोड सेस वसूल रही है. पेट्रोल और डीजल की कीमत अगर असमान छू रही है तो इसके लिए केंद्र और राज्य सरकार दोनों जिम्मेदार हैं, चाहे सरकार जिसकी भी हो.

रॉबर्ट वाड्रा से भी पूछना चाहिए सवाल
क्यों नहीं वह कांग्रेस पार्टी के राजस्थान सरकार को टैक्स कम करने की सलाह देतीं हैं ताकि कीमत कम हो जाए और क्या प्रियंका यही सवाल कि टैक्स से कमाए पैसे कहाँ गए राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से भी करने वाली हैं? पर नहीं, यह सवाल अशोक गहलोत से नहीं किया जायेगा, ठीक उसी तरह जैसे अपने पति रॉबर्ट वाड्रा से उन्होंने काफी सवाल नहीं किया कि क्यों वह धोखाधड़ी से किसानों के ज़मीन कौड़ी के मोल खरीद कर बड़े बिल्डर्स को बेच रहे थे? कथनी और करनी में काफी अंतर होता है और प्रियंका गाँधी वाड्रा भी राहुल गाँधी वाले रस्ते पर चलती दिख रही हैं. अगर जनता जो सब जानती है प्रियंका गाँधी से भी निराश होती दिखी तो इसमें कोई ताज्जुब नहीं होना चाहिए.


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