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- प्रियंका भी चलीं राहुल...
जिससे आपको सबसे ज्यादा उम्मीद होती है वही आपको सबसे ज्यादा निराश करने की भी क्षमता रखता है. बात है कांग्रेस पार्टी की राजकुमारी प्रियंका गाँधी वाड्रा की. शुरू से ही उनका राजनीति के साथ छुईमुई जैसा रिश्ता रहा है. जब राजनीति में नहीं थी, तब भी राजनीति में थीं. और जब राजनीति में हैं, तब भी कई बार ऐसा प्रतीत होता है कि वह राजनीति में नहीं हैं. 1999 में जब माँ सोनिया गाँधी पहली बार चुनाव लड़ीं और बाद में जब बड़े भाई राहुल गाँधी 2004 में पहली बार चुनाव लड़े तब से ही वह राजनीति में नहीं होते हुए भी राजनीति में थीं. माँ और भाई को चुनाव जिताने का दारोमदार प्रियंका के ही कंधे पर होता था. दोनों पार्टी के बड़े नेता थे और स्टार प्रचारक भी. अमेठी हो या रायबरेली, एक तरह से चुनाव प्रियंका ही लड़तीं और जीतती थीं. और चुनाव के बाद भी वहां के जनता की बात सुनना और उनके लिए काम करने की भी जिम्मेदारी प्रियंका पर ही होती थी. बस वह लोकसभा में माँ या भाई के स्थान पर बैठ नहीं सकती थीं.