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भारत में निजीकरण की जो प्रक्रिया ‘एयर इंडिया’ के साथ शुरू हुई है, उ
divyahimachal .
भारत में निजीकरण की जो प्रक्रिया 'एयर इंडिया' के साथ शुरू हुई है, उसकी सूची लंबी है और निजीकरण का सिलसिला व्यापक स्तर पर चलेगा। यह भारत सरकार का नीतिगत निर्णय है। निजीकरण की प्रक्रिया पुरानी है, लेकिन अब 'नवरत्न' सार्वजनिक उद्यमों की बिक्री भी तय कर ली गई है। तर्क दिए जा रहे हैं कि लक्ष्य राजकोषीय घाटे तक सीमित नहीं हैं, बल्कि आर्थिक सुधार किए जाने जरूरी हैं। 'एयर इंडिया' को टाटा समूह की कंपनी को बेचा गया है। अब नीलाचल इस्पात निगम लिमिटेड और सेंट्रल इलेक्ट्रॉनिक्स का निजीकरण दिसंबर, 2021 तक संपन्न हो सकता है। भारत सरकार के निवेश एवं लोक संपत्ति प्रबंधन विभाग के विनिवेश संबंधी तमाम प्रक्रियाएं पूरी कर ली गई हैं। इस विभाग के सचिव तुहिन कांत पांडेय ने ही निजीकरण की मौजूदा प्रक्रिया की पुष्टि की है। इन दो उद्यमों के बाद भारतीय पेट्रोलियम निगम लि., भारत अर्थ मूवर्स लि., पवन हंस, शिपिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया आदि को निजी हाथों में बेच दिया जाएगा। भारत अर्थ मूवर्स रक्षा क्षेत्र का बड़ा सरकारी उद्यम है। उसके तहत रेल कोच और उसके स्पेयर पार्ट्स बनाने, खनन उपकरण और विनिर्माण के काम करने वाली महत्त्वपूर्ण कंपनी है। क्या ऐसे रणनीतिक महत्त्व के उद्यमों को भी बेचना जरूरी है? यह सब कुछ मौजूदा वित्त-वर्ष के दौरान ही किया जाना है। सबसे चौंकाने वाला निजीकरण का सौदा भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) को चौथी तिमाही तक बाज़ार के लिए सूचीबद्ध किया जाना लगभग तय है।
फिलहाल एलआईसी का सौदा भारतीय बाज़ार में ही किया जाएगा, हालांकि उसमें विदेशी निवेशक भी पैसा लगा सकते हैं। निजीकरण के सरकारी सूत्रधारों का आकलन है कि एलआईसी के शेयर्स बाज़ार में आते ही धूम मचा देंगे, क्योंकि 35 फीसदी शेयर्स खुदरा एवं घरेलू निवेशकों के लिए आरक्षित होंगे। आगामी साल में जनरल इंश्योरेंस का भी निजीकरण तय कर लिया गया है। राष्ट्रीय इस्पात निगम लि. भारत सरकार की 'नवरत्न' कंपनी है। नगरनार इस्पात प्लांट छत्तीसगढ़ के जिला बस्तर में है। कैबिनेट की आर्थिक मामलों की समिति इन दोनों सार्वजनिक कंपनियों को अलग करके, उनके विनिवेश का, निर्णय ले चुकी है। इस बार निजीकरण के दायरे में इस्पात की बड़ी कंपनियां हैं, जो हमारी अर्थव्यवस्था की 'रीढ़' रही हैं। वैसे आईडीबीआई बैंक का भी निजीकरण होगा। इसकी पुष्टि भी मंत्रालय के शीर्ष अधिकारी कर चुके हैं। इसमें नौ माह से एक साल तक का समय लग सकता है, क्योंकि भारतीय रिजर्व बैंक का दखल हर कदम पर होना जरूरी है। फिलहाल यह संतोष की ख़बर है कि अभी पॉवरग्रिड और एनटीपीसी सरीखी 'नवरत्न' सार्वजनिक कंपनियों का निजीकरण नहीं होगा, क्योंकि हमारी 50-60 फीसदी ऊर्जा संबंधी काम ये कंपनियां ही पूरे करती हैं। किसी और वैकल्पिक संस्थान में इतनी क्षमताएं नहीं हैं। ये रणनीतिक क्षेत्र के उद्यम हैं, लिहाजा अभी निजीकरण से बाहर हैं।
हालांकि एनटीपीसी के विनिवेश की ख़बरें चर्चा में रही हैं, लेकिन फिलहाल सरकारी सूत्रों ने खंडन किया है। वैसे रणनीतिक क्षेेत्र के निजीकरण का फैसला नीति आयोग लेता है। उसकी सिफारिश पर भारत सरकार किसी निर्णायक बिंदु तक पहुंचती है। निजीकरण पहले भी किया जाता रहा है। जिन उद्यमों में सरकार की हिस्सेदारी कम होती है, उसे निजी हाथों में बेचा जाता रहा है। आठ उद्यमों के विनिवेश एक उद्यम से दूसरे उद्यम के बीच किए जा चुके हैं। इनमें पूरी प्रक्रिया सरकार के नियंत्रण में रही है। पहले निजीकरण में डर का भाव भी होता था, क्योंकि बहुत कायदे-कानून स्पष्ट नहीं थे। अब प्रक्रियाओं में काफी सुधार किए जा चुके हैं, लिहाजा सरकार का मानना है कि निजीकरण का जलवायु अब सुधरेगा। बोलीदाता और सलाहकार अब जागरूक हो चुके हैं। नीतियां भी तय होकर स्पष्ट हो चुकी हैं। अंतर मंत्रालय की गुत्थियां सुलझा ली गई हैं, लिहाजा निजीकरण जोर पकड़ेगा। सवाल यह है कि जो कंपनियां 'नवरत्न' जमात की हैं और उन्हें स्थापित करने में दशकों लगे हैं, तो उन्हें निजी हाथों में बेचने का औचित्य क्या है? उन कंपनियों में 'एयर इंडिया' जैसा पहाड़-सा घाटा भी नहीं है। कर्मचारियों की पूरी फौज जुटी रही है, उनके भविष्य का क्या होगा? अभी तो 'एयर इंडिया' के अनुभव से ही सब कुछ स्पष्ट हो जाएगा। यदि आंदोलन सड़कों पर आए, तो सरकार एक और मोर्चे पर घिर सकती है। विपक्ष को सरकार के खिलाफ एक और मुद्दा मिलेगा, लिहाजा बेहतर होगा कि सरकार अपनी नीतियों का स्पष्टीकरण दे।
Gulabi
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