सम्पादकीय

बैंक और बीमा क्षेत्र का निजीकरण

Subhi
5 Feb 2022 3:19 AM GMT
बैंक और बीमा क्षेत्र का निजीकरण
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केन्द्र सरकार ने वित्तीय संसाधन जुटाने के लिए भारतीय औद्योगिक विकास बैंक (आईडीबीआई) के निजीकरण के फैसले को अमलीजामा पहनाने की प्रारम्भिक प्रक्रिया शुरू कर दी है

आदित्य चोपड़ा: केन्द्र सरकार ने वित्तीय संसाधन जुटाने के लिए भारतीय औद्योगिक विकास बैंक (आईडीबीआई) के निजीकरण के फैसले को अमलीजामा पहनाने की प्रारम्भिक प्रक्रिया शुरू कर दी है और साथ ही भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) का भी पब्लिक इशू लाने की तैयारी में भी लग गई है। हालांकि मोदी सरकार ने पिछले वर्ष ही विनिवेश के माध्यम से भारी धन जुटाने का ऐलान कर दिया था मगर विगत 1 फरवरी को रखे गये बजट में वित्तमन्त्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने इस बाबत कोई घोषणा नहीं की थी अलबत्ता उन्होंने बजट पेश करने के बाद एक प्रेस कांफ्रैंस में यह जरूर कहा था कि निजीकरण या विनिवेश के बारे में उनके द्वारा पिछले बजट में की गई घोषणाएं बदस्तूर जारी हैं और सरकार उन पर कार्रवाई करेगी। इस दृष्टि से चालू वित्त वर्ष के भीतर ही आईडीबीआई बैंक के निजीकरण और बीमा निगम के शेयर आम जनता के लिए पेश किये जाने की योजना महत्वपूर्ण हो जाती है। बीमा निगम के शेयरों का बाजार मूल्य 15 से 20 लाख करोड़ रुपए के बीच का आंका जा रहा है जो कि भारतीय शेयर बाजार में सर्वाधिक मूल्य का होगा। फिलहाल रिलायंस इंडस्ट्रीज और टाटा समूह की टीसीएस कम्पनी के शेयरों का बाजार मूल्य क्रमशः 16 व 14 लाख करोड़ रुपए का आंका जाता है। इस मायने में बीमा निगम का पब्लिक इशू या पब्लिक आफर सबसे बड़े मूल्य का होगा। भारत में निजीकरण का दौर शुरू होने के बाद किसी भी सरकारी कम्पनी या संस्थान की यह सबसे बड़ी बिक्री होगी जिसमें भारत के आम निवेशक की सीधे हिस्सेदारी होगी। जहां तक आईडीबीआई का सवाल है तो इसमें भी बीमा निगम के 49.5 प्रतिशत के लगभग शेयर हैं और केन्द्र सरकार के 45 प्रतिशत से अधिक शेयर हैं। सरकार इन दोनों ही मदों में शेयरों की बिक्री एक साथ कर सकती है मगर वह सारा हिस्सा एक साथ नहीं बेचेगी। इस बैंक के प्रबन्धन के अधिकार फिलहाल बीमा निगम के पास हैं मगर बिक्री के बाद ये अधिकार निजी खरीदार को परिवर्तित हो जायेंगे। सरकार बैंक खरीदार की बोली का जायजा लेकर निर्दिष्ट वित्तीय नियमों के अनुसार इसकी बिक्री करेगी और प्रबन्धन के अधिकार स्थानान्तरित करेगी। यह प्रक्रिया खुली बोली के आधार पर होगी। इस बारे में रिजर्व बैंक तैयारी कर रहा है। आगामी वित्त वर्ष 2022-23 के बजट में सरकार ने 39 लाख करोड़ रुपए से अधिक खर्च करने का प्रावधान रखा है जबकि उसकी राजस्व पावतियां मात्र 22 लाख करोड़ रुपए के लगभग की होंगी अतः 17 लाख करोड़ रुपए से अधिक धनराशियां जुटाने के लिए उसे अन्यान्य स्रोतों को जुटाना होगा। इसमें विनिवेश का रास्ता आर्थिक उदारीकरण की शुरूआत 1991 में होने के बाद से ही खोल दिया गया था और पिछले 30 सालों में इसमें लगातार वृद्धि होती ही जा रही है। इसके साथ ही केन्द्र सरकार पेट्रोलियम क्षेत्र की बीपीसीएल कम्पनी का भी निजीकरण करने का मार्ग प्रशस्त करेगी। दरअसल पिछले वर्ष के बजट में सरकार ने विनिवेश के माध्यम से जो धन जुटाने का संकल्प किया था उसमें से केवल तीन प्रतिशत ही संभव हो सका था और इसमें भी एयर इंडिया की बिक्री ही प्रमुख रही जो टाटा समूह ने ली। पिछले बजट में सरकार ने दो बैंकों के निजीकरण की भी घोषणा की थी। अभी नया बजट आने के बाद सरकार अपने पूर्व संकल्पों की तरफ बढ़ रही है और आईडीबीआई बैंक का निजीकरण कर रही है साथ ही जीवन बीमा निगम का पब्लिक इशू भी ला रही है। बाजार मूलक अर्थव्यवस्था के दौर में ये कदम स्वाभाविक माने जाते हैं क्योंकि सरकार स्वयं को व्यापारिक व वाणिज्यिक गतिविधियों से अलग रखती है। संपादकीय :चीन को उसी की भाषा में जवाबकोरोना के खिलाफ एक और हथियारविधानसभा चुनावों का रुखअमेरिकी दबाव में नहीं झुका भारतचुनाव काल और बजट​पाकिस्तान की इंटरनैशनल बेइज्जतीहालांकि भारतीय जनमानस सरकारी कम्पनियों के निजीकरण को सही दृष्टि में नहीं देखता है। इसकी वजह यह रही है कि भारत के आम आदमी का अपनी चुनी हुई सरकार के प्रति अटूट विश्वास रहता है परन्तु अभी तक जितनी भी सरकारी कम्पनियों का निजीकरण हुआ है उनके परिणाम आर्थिक मानकों की दृष्टि से अच्छे ही रहे हैं और घाटे में जाने वाले उद्यम लाभ में परिवर्तित हुए हैं। आर्थिक उदारीकरण के बाद ही भारत में निजी बैंकों की संख्या में भी अच्छी वृद्धि हुई और देश में वित्तीय संशोधन लाने में इनकी भूमिका प्रभावी भी कही जा सकती है। इसके साथ ही बीमा क्षेत्र में भी निजीकरण का दौर समानान्तर रूप से शुरू हुआ जिसके परिणाम मिले-जुले कहे जा सकते हैं। देखना यह होगा कि भारतीय जीवन बीमा निगम के पबल्कि लिमिटेड कम्पनी बन जाने के बाद इसके प्रबन्धन में कितने गुणात्मक परिवर्तन होते हैं और आम भारतीयों का विश्वास इसमें किस हद तक जमा रहता है।

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