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- सेहत-विकास को तरजीह:...
वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा वित्तीय वर्ष 2021-22 के लिए प्रस्तुत बजट में एक बात साफ है कि बजट पर कोरोना संकट से उपजे आर्थिक संकुचन की गहरी छाया है। इतना जरूर है कि संकट से सबक लेकर सरकार ने स्वास्थ्य बजट में अप्रत्याशित वृद्धि की है। यह जरूरी भी था क्योंकि संकट के दौरान हमारे स्वास्थ्य तंत्र की बदहाली और निजी चिकित्सातंत्र की मनमानी उजागर हुई है। दूसरे अभी देश में आम लोगों के लिए कोरोना टीकाकारण अभियान चलाया जाना है। बकौल प्रधानमंत्री बजट के दिल में गांव-किसान है। ऐसे वक्त में जब कृषि सुधार के विरोध के दौर में किसान गुस्से में हैं तो कृषि क्षेत्र में ध्यान देना जरूरी था। लेकिन ऐसा भी नहीं कि किसानों को छप्पर फाड़कर दिया गया हो। पीएम किसान सम्मान निधि स्कीम में मिलने वाले पैसे को बढ़ाने की भी चर्चा थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इस योजना का लाभ साढ़े ग्यारह करोड़ किसान उठा रहे हैं। बहरहाल, कृषि क्षेत्र को मजबूती देने के लिए और किसानों की आय बढ़ाने के लिए कई कदम उठाये गये हैं। एमएसपी को और मजबूत करने के लिए एग्रीकल्चर इंफ्रास्ट्रक्चर फंड में मदद का प्रावधान किया गया है, जिसके लिए कुछ सामानों पर कृषि अवसंरचना उपकर लगाया गया। किसानों के लोन पर डेढ़ लाख रुपये तक की राशि पर ब्याज की छूट की स्कीम एक साल के लिए बढ़ा दी गई है। देशी कपास को प्रोत्साहन देने के लिए कपास के आयात पर कस्टम ड्यूटी को बढ़ाकर दस फीसदी किया गया है। इससे विदेश से आयात किये गये कपड़े अब महंगे हो जायेंगे। वहीं कच्चे रेशम और रेशमी सूत पर सीमा शुल्क पंद्रह फीसदी हो गया है। सरकार ने स्वदेशी वस्त्र उद्योग को प्रोत्साहन के लिए तीन वर्ष में सात टेक्सटाइल पार्क स्थापित करने की बात कही है। जैसा कि अपेक्षित था सरकार ने कोरोना संकट के बाद स्वास्थ्य बजट को बढ़ाकर 2,23,846 करोड़ किया है। स्वच्छ भारत मिशन के लिए भी करीब डेढ़ लाख करोड़ आवंटित किये हैं।