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- मूर्खता का सिद्धांत

बाबा आईन्स्टीन ने पता नहीं क्या सोचकर कहा था, ''केवल दो चीज़ें अनंत हैं, एक ब्रह्मंड और दूसरी मानवीय मूर्खता। लेकिन ब्रह्मंड के बार में मैं पक्के तौर पर कुछ नहीं कह सकता।'' इसका अर्थ हुआ कि केवल मानवीय मूर्खता के बारे में ही पूर्ण विश्वास के साथ सब कहा जा सकता है। उनके सापेक्षता के सिद्धांत को अगर मूर्खता पर लागू किया जाए तो उसे समय में नहीं बांधा जा सकता। आदिकाल से मूर्खता समय से परे रही है। मानवीय मूर्खता के इस ़फार्मूले पर निरंतर शोध करने और उससे निरंतर लाभ लेने वाले को डिज़ाइनर विचारक कहलाते हैं। उसे इस बात का पूर्ण ज्ञान होता है कि मौ़के के हिसाब से मूर्ख को डिज़ाइनर विचार का कौन सा लबादा ओढ़ाना है। जहां तक डिज़ाइनर विचारक होने के लिए निर्धारित योग्यता का सवाल है तो इसके लिए उतनी ही संवैधानिक योग्यता चाहिए, जितनी सेंट्रल विस्टा के चैंबर में पहुंचने के लिए अनिवार्य है। आजकल सभी राजनीतिक दलों ने एक मत और स्वर से विधायक या सांसद होने के लिए जो अनिवार्य योग्यताएं निर्धारित की हैं, उनके अनुसार व्यक्ति का लुच्चा होना ज़रूरी है। जो शख्स जितना ज़्यादा लुच्चा होगा, लोकतंत्र के मंदिर के घंटे तक उसके हाथ पहुंचने की उतनी ही अधिक गॉरन्टी है। इसके बाद वह ताउम्र जन सेवा करते हुए इसे अपना ़खानदानी धंधा बना सकता है।
