सम्पादकीय

ज्ञान का अभिमान

Rani Sahu
10 Nov 2021 6:48 PM GMT
ज्ञान का अभिमान
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सच तो यह है कि इस सच को समझने में मुझे काफी देर लगी

सच तो यह है कि इस सच को समझने में मुझे काफी देर लगी। मैंने इसे बहुत बाद में समझा, पर जब समझ आ गई तो मेरी प्रगति के नए रास्ते खुलते चले गए। हम में से कोई भी ऐसा नहीं है जिसके पास दुनिया का पूरा ज्ञान हो, जो सब कुछ जानता हो, लेकिन हम सब कुछ न कुछ ऐसा जानते हो सकते हैं जिसे बाकी लोग नहीं जानते। जब हम नौकरी में या व्यवसाय में उन्नति करते हैं और हम पर टीम का नेतृत्व करने की जि़म्मेदारी होती है तो अक्सर वह इसलिए होता है क्योंकि हम दूसरों से कुछ ज्यादा काबिल हैं, कुछ ज्यादा ज्ञानवान हैं और कुछ ज्यादा अच्छे निर्णय लेते हैं। हमारी काबलियत और हमारा ज्ञान ही हमारी उन्नति का कारण बनता है। अक्सर हमारी टीम के लोग हमारे पास अपनी समस्याएं लेकर आते हैं या कई बार कोई नया सुझाव देते हैं। हमारा कोई सहकर्मी जब किसी समस्या का जि़क्र करता है तो हम तुरंत उसे कोई समाधान सुझाकर खुश हो जाते हैं। दूसरी ओर, जब हमारा कोई साथी कोई सुझाव लेकर आता है और हमें पता है कि सुझाव कच्चा है और उसमें इतनी कमियां हैं कि उससे फायदा होने के बजाय नुक्सान होगा, तो हम तुरंत उस विचार को काट देते हैं और अपना कोई नया विचार सामने रख देते हैं। जब हम समस्या का समाधान सुझाते हैं तो वह एक समस्या तो हल हो जाती है, लेकिन अपने इस व्यवहार से हम एक नई समस्या को जन्म देते हैं और वह समस्या है सारा काम खुद करने की, हर समस्या का समाधान खुद करने की, परिणाम यह होता है कि टीम का हर सदस्य हर छोटी-बड़ी समस्या हमारे सामने रखता है और हमारा सारा समय उन समस्याओं के हल में बीतता है।

हम खुद प्रोडक्टिव नहीं हो पाते। दूसरा नुकसान यह है कि टीम के सदस्यों को हल सोचने का मौका नहीं मिलता और उनके विकास के रास्ते अवरुद्ध हो जाते हैं। तीसरा नुकसान यह है कि हम एक ऐसी अवस्था में जा फंसते हैं जहां हम 'डिसीज़न फटीग' के शिकार हो जाते हैं और खुद हमें भी ज्यादा हल सूझने बंद हो जाते हैं। इसे थोड़ा और गहराई से समझने की आवश्यकता है। एक लीडर के रूप में हम चाहते हैं कि हमारी टीम के लोग जि़म्मेदारी लें, समस्याएं हल करें और नए सुझाव लेकर आएं क्योंकि कोई भी लीडर तभी सफल होता है जब उसकी टीम की काबलियत बढ़ती है, वे मिलजुल कर काम करते हैं और खुद आगे बढ़कर जि़म्मेदारियां संभालते और निभाते हैं। जब भी हमारी टीम का कोई सदस्य नया सुझाव लेकर आए और हमें वह सुझाव कमज़ोर नज़र आए तो हमें ऐसे सवाल पूछने चाहिएं जिससे सुझाव देने वाले व्यक्ति को उसकी कमियों का अंदाज़ा हो जाए। कमियां समझ में आएंगी तो यह सूझना ज्यादा मुश्किल नहीं है कि कमियां दूर करने के लिए क्या करना आवश्यक है। इस तरह हम न केवल अच्छे सुझाव पा सकते हैं बल्कि अपनी टीम को नया सोचने और पूरी तस्वीर देखने की सूझबूझ सिखाते हैं। यहां यह याद रखना जरूरी है कि सवाल पूछते समय हमारी टोन पॉजि़टिव हो, उसमें व्यंग्य न हो, गुस्सा न हो, बल्कि विश्वास हो। हम यह कहें कि आइडिया बहुत अच्छा है, इसे थोड़ा-सा विस्तार से देख-परख लें ताकि हमारे काम में कोई कमी न रह जाए।
जब हम कहते हैं कि 'हमारे काम में कोई कमी न रह जाए', तो हम उस सुझाव में खुद को और पूरी टीम को भी शामिल रखते हैं। इससे अपनेपन का अहसास बनता है और किसी को निराशा नहीं होती। हमें याद रखना चाहिए कि हमारा व्यक्तित्व हमारी शक्ल-सूरत ही नहीं है, हमारी ड्रेस-सेंस ही नहीं है, हमारा ज्ञान ही नहीं है, बल्कि हमारा व्यवहार भी है, दूसरों की सहायता करने की हमारी इच्छा भी है, किसी के काम आने की हमारी कोशिश भी है। हमारा व्यक्तित्व वह है, जब हम न हों और कोई हमारा जि़क्र करे। वह जि़क्र जिस तरह से होगा, उससे हमारा व्यक्तित्व परिभाषित होता है। हमारा व्यक्तित्व मानो फूलों की सुगंध सरीखा है जो सारे वातावरण में व्याप्त हो जाता है। इसके विपरीत जब हम किसी सुझाव को सुनते ही उसकी कमियां बताना शुरू कर देते हैं तो हम अपनी टीम को निरुत्साहित करते हैं और अगली बार टीम के सदस्य कोई सुझाव देने से पहले कई बार सोचेंगे और यदि हमारा यह व्यवहार बार-बार दोहराया गया तो यह पक्की बात है कि हमें सुझाव मिलने बंद हो जाएंगे। बहुत से बुद्धिमान टीम लीडर, लीडर के रूप में सिर्फ इसी कारण से असफल हो जाते हैं क्योंकि वे टीम को साथ लेकर चलने का गुर नहीं जानते। टीम के सदस्य अपने बॉस के ज्ञान से आतंकित रहते हैं और हर निर्णय उन्हीं पर छोड़ देने में ही अपनी भलाई समझते हैं। लीडर के रूप में हमारे इस व्यवहार से एक और समस्या पैदा होती है कि चूंकि विचार हमारा था, उसकी हर बारीकी टीम के सदस्यों को स्पष्ट हो ही, यह आवश्यक नहीं है। परिणाम यह होता है कि काम करते वक्त टीम की ओर से कमियां रह जाती हैं और काम की गुणवत्ता घट जाती है या गलतियों को सुधारने में धन और समय बर्बाद होता रहता है। हिंदुस्तान टाइम्स में मुझे जब हैदराबाद कार्यालय का इंचार्ज बनाकर भेजा गया तब मेरे एक वरिष्ठ अधिकारी ने मुझे टीम को साथ लेकर चलने का यह गुर सिखाया। इसी का परिणाम था कि उसके बाद मैंने तेज़ी से प्रगति की और अंततः जब मैंने नौकरी छोड़ी तो मैं हिमाचल प्रदेश के सुप्रसिद्ध समाचारपत्र दिव्य हिमाचल में मार्केटिंग डायरेक्टर था।
मेरा वह ज्ञान बाद में मुझे उस वक्त और भी काम आया जब मैंने उद्यमी बनने की ठानी। निश्चय ही समय हमें बहुत कुछ सिखाता है, सवाल सिर्फ यह है कि खुद हम कुछ नया सीखने के लिए तैयार हैं या नहीं, या अपने ज्ञान के अभिमान में कैदी बनकर खुद ही खुद पर फिदा रहने की गलती करते हैं। कोरोना ने जहां एक ओर सारे विश्व को घुटनों पर ला दिया, इसके केंद्र चीन तक को बेबस कर दिया, वहीं इसने हमें हर अप्रत्याशित स्थिति के लिए खुद को तैयार करने की सीख भी दी। कोरोना काल में तकनीक के कई बड़े बदलाव हुए हैं और यह भी स्पष्ट हुआ है कि अब कोई व्यवसाय तकनीक से अछूता नहीं है। आर्टिफीशिअल इंटेलिजेंस और ऑटोमेशन का एक नया दौर चला है जिससे हमारी जि़ंदगियां बदल रही हैं तथा अभी और बड़े बदलाव अपेक्षित हैं। समझना यही है कि हमारा आचरण ऐसा हो कि न तो हम अपने ज्ञान का अभिमान करें और न ही ऐसा आभास होने दें कि हमारे ज्ञान के सामने हमारी टीम के सदस्य खुद को बौना मानने लगें। खुद भी नया सीखें और अपनी टीम को भी नया सीखने का उपयुक्त वातावरण दें तथा नया सीखने की प्रेरणा देते रहें, क्योंकि अंततः हमारी सफलता अकेले हम पर ही नहीं बल्कि पूरी टीम की कारगुज़ारी पर निर्भर करती है। ऐसा हो जाए तो हमारी ही नहीं, बल्कि सबकी प्रगति सुनिश्चित हो जाती है।
पी. के. खुराना
राजनीतिक रणनीतिकार
ईमेलः[email protected]


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