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![देश का गर्व देश का गर्व](https://jantaserishta.com/h-upload/2021/08/07/1222738--.webp)
यह भारतीय हॉकी का बेहतरीन दौर है। गुरुवार को पुरुष हॉकी टीम ने जहां 41 साल बाद ओलंपिक में पदक जीता, वहीं महिला टीम पहली बार चौथे स्थान तक पहुंची है। शुक्रवार को कांस्य पदक के लिए हुए मुकाबले में महिला टीम हर तरह से जीत की हकदार थी, लेकिन खेलों में हार-जीत का क्रम बना रहता है। कांस्य पदक हाथ से निकलने का अफसोस तो हमेशा रहेगा, लेकिन इस सर्वोच्च प्रतियोगिता का जो कुल हासिल है, उस पर हमें जरूर गौर करना चाहिए। शायद यह पहला ओलंपिक है, जिसमें हमारे खिलाड़ी आसानी से हार मानने को तैयार नहीं हैं। पहले के ओलंपिक के ज्यादातर खेलों में शुरू में ही हार मानने का क्रम चालू हो जाता था। यह कदापि कम नहीं कि भारतीय महिला हॉकी टीम ओलंपिक के इतिहास में पहली बार मेडल जीतने से रह गई है। भारतीय महिलाओं ने तो एक समय जोरदार वापसी की और चार मिनट के अंदर ही तीन गोल दागकर 3-2 की बढ़त बना ली थी, लेकिन गौर करने की बात है कि यह बढ़त कायम नहीं रह पाई और ब्रिटेन की टीम 4-3 से जीत गई। यह कहा जा रहा है कि ब्रिटेन की टीम ने दूसरे हाफ में जीतने के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया, तो भारतीय टीम ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी। जिस मोर्चे पर कमी रह गई, इस पर कोच और टीम प्रबंधन को अब काम करना चाहिए। इस ऊंचाई पर खेलने से जो अनुभव होते हैं, उससे भविष्य के लिए टीमें तैयार होती हैं।
![Triveni Triveni](/images/authorplaceholder.jpg?type=1&v=2)