- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- खाद्य तेलों की महंगाई
आदित्य चोपड़ा: यद्यपि अनाज-सब्जियों के दामों में गिरावट के चलते अगस्त में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित महंगाई दर 5.30 फीसदी रही, इससे पहले महंगाई दर जुलाई में 5.59 फीसदी थी। इस मामूली कमी से खुशी वाली कोई बात नहीं क्योंकि थोक महंगाई दर बढ़कर 11.39 फीसदी रही है। देश के खाद्य तेलों के दाम आसमान को छू रहे हैं। अगस्त माह में ही खाद्य तेलों के दामों में 33 फीसदी बढ़त दर्ज की गई। लगातार बढ़ती महंगाई को नियंत्रित करना सरकार के लिए बड़ी चुनौती है। कोरोना के शिकंजे से मुक्त हो रहे लोगों को राहत की दरकार है और खाद्य तेल ही उनका तेल निकाल रहे हैं। खाद्य तेलों की कीमती पैट्रोल की कीमतों से कहीं अधिक हो चुकी है। आम आदमी की जेब पर जबरदस्त असर पड़ रहा है। केन्द्र सरकार ने खाद्य तेलों के दामों को नियंत्रित करने के लिए कदम उठाने शुरू कर दिए हैं। अगस्त महीने में सोयाबीन और सूरजमुखी तेल पर आपात शुल्क घटा कर 30.25 प्रतिशत किया गया था, जबकि पहले आयात शुल्क 38.50 फीसदी था। रिफाइंड आयल पर भी आयात शुल्क 49.50 से घटाकर 41.25 फीसदी किया गया था लेकिन खाद्य तेलों के दाम कम होने का नाम नहीं ले रहे। मूंगफली का तेल जो पिछले वर्ष 150 रुपए प्रति लीटर था अब उसकी कीमत 178 रुपए लीटर पहुंच चुकी है। सोया तेल 152 रुपए लिटर हो चुका है। तेल सरसों की कीमत 126 रुपए प्रति लीटर से 172 रुपए तक पहुंच चुकी है। पाम आयल 104 रुपए से बढ़कर 151 रुपए तक जा पहुंचा है। महंगाई की तपिश केन्द्र सरकार को भी महसूस होने लगी है। खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण और उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के आर्थिक सलाहकार ने सभी राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों पत्र लिखकर खाद्य तेलों की बढ़ती कीमतों पर ध्यान आकर्षित किया है और निर्देश दिया है कि आम लोगों को उचित मूल्यों पर आवश्यक वस्तुओं की पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित बनाने के काम करे। खाद्य तेलों की कीमतों में लगातार तेजी का बड़ी मात्रा में भंडारण भी हो सकता है। मंत्रालय ने राज्यों को कहा है कि वह व्यापारियों, स्टाकिस्टों, मिलो इत्यादि में स्टॉक की जांच करें। इसमें कोई संदेह नहीं महामारी के दिनों में खाद्य तेलों का भंडारण कर बाजार में कृत्रिम अभाव पैदा किया जा रहा है। कालाबाजारी रोकने के िलए राज्य सरकारों को आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत कार्रवाई करनी होगी।खाद्य तेलों के मामले में भारत अपनी आधी से लेकर तीन चौथाई तक जरूरत विदेशो से आने वाले कच्चे खाद्य तेल से पूरी करता है। भारत में खाद्य तेल की मांग का बहुत कम हिस्सा घरेलू आपूर्ति से पूरा हो पाता है। रिफाइंड तेल में मिलाए जाने वाले कई जरूरी रसायनों की आपूर्ति प्रभावित होने से भी दामों में इजाफा हुआ है। अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में सोयाबीन का भाव पिछले कई महीनों से ऊंचे स्तर पर बरकरार है आैर निकट भविष्य में इसमें ज्यादा मंदी आने की सम्भावना नहीं है। देश में मानसून की वर्षा काफी अनियमित रही। अब तक केवल 720.मिमी. वर्षा हुई है, जबकि सामान्य वर्षा 777.3 मिमि. होती है। गुजरात में मूंगफली आैर सोया की खेती होती है लेकिन वर्षा ने ऐसा कहर बरपाया कि खेती ही तबाह हो गई। मध्य प्रदेश देश का सर्वाधिक सोया उत्पादन करने वाला राज्य है, वहां भी इस बार स्थिति खराब है। राजस्थान में सोयाबीन की खेती की स्थिति पहले जैसी नहीं। बुआई के दौरान वर्षा हुई ही नहीं। तेलों के दामों में भले ही वृद्धि हो रही हो लेकिन मध्य प्रदेश समेत देश के अन्य हिस्सों में सोयाबीन उत्पादक किसानों को इसका फायदा नहीं मिला। इस बार येलो मेजिक बीमारी की वजह से पैदावार कम हुई। पिछले एक वर्ष से पैट्रोल-डीजल के दामों के बढ़ने से परिवहन खर्च भी काफी बढ़ा है। भारत मलेशिया और इंडोनेशिया जैसे देशों से पाम आयल मंगवाता है लेकिन कोरोना के चलते सप्लाई प्रभावित हुई। मांग और सप्लाई का गणित बिगड़ने से अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में खाद्य तेलों की कीमत में इजाफा हुआ है। इससे पहले जब दालों के दाम बेतहाशा बढ़े तो सरकार ने आयात कोटे और भंडार सीमा पर पाबंदियां लगाई थीं। ताकि कोई भी व्यापारी ज्यादा स्टॉक न कर सके। अब राज्यों के खाद्य मंत्रालय को सतर्क होकर काम करना होगा और खाद्य तेलों की आपूर्ति सुनिश्चित करनी होगी। चाहे उसे छापामारी ही क्यों न करनी पड़े। हाल ही में सरकार ने पाम का उत्पादन बढ़ाने की महत्वकांक्षी योजना का प्रारूप पेश किया था। उम्मीद है कि नए प्रयासों से खाद्य तेलों के मामले में भी भारत आत्मनिर्भर बनेगा।