सम्पादकीय

दिखावा तो दिखावा ही है

Triveni
16 July 2021 4:31 AM GMT
दिखावा तो दिखावा ही है
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असल सवाल पर गौर ना कर प्रतीकात्मक रूप से न्याय का भ्रम पैदा करना अब एक बड़ा वैश्विक चलन है।

असल सवाल पर गौर ना कर प्रतीकात्मक रूप से न्याय का भ्रम पैदा करना अब एक बड़ा वैश्विक चलन है। दुनिया भर की ऐसी तमाम सरकारें भी इसमें लगी हुई हैं, जो असल में समाज में बराबरी और न्याय के खिलाफ काम कर रही होती हैं। वैसे में नस्ल, जाति, लिंग या ऐसी ही पहचानों के आधार पर इंसाफ देने का इम्प्रेशन बना देना सबसे आसान रास्ता होता है। इससे संबंधित सरकार या संस्था या उद्योगों को अपनी नैतिक साख का दावा करने का मौका मिलता है। लेकिन चूंकि ऐसे कदमों में दम नहीं होता, इसलिए जल्द ही उनका सच भी सामने आ जाता है। ऐसा ही अभी कई फैशन ब्रांडों के साथ हुआ है। बीते हफ्ते विश्व बेंचमार्किंग एलायंस (डब्लूबीए) का जेंडर बेंचमार्क जारी हुआ। उसमें दिखाया गया कि सबसे बड़े 35 परिधान ब्रांडों में से लगभग दो-तिहाई ने सार्वजनिक रूप से लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण की दिशा में कदम नहीं उठाया है। केवल 14 कंपनियों ने लिंग-विशिष्ट नीतियों को लागू किया है। सूचकांक ने लिंग वेतन में अंतर, नेतृत्व में प्रतिनिधित्व, हिंसा को रोकने के लिए नीतियां और उत्पीड़न जैसे कारकों की समीक्षा कर कंपनियों को 100 में 29 का औसत स्कोर दिया। डब्लूबीए ने इसे "चिंताजनक" बताया है।

लेकिन असल अगर पूरी छानबीन की जाए, तो जिन कंपनियों को डब्लूबीए ने उच्च स्कोर दिए हैं, उनकी पोल भी खुल सकती है। ऐसी कंपनियों में एडिडास, गैप और वीएफ कॉर्प शामिल हैं। ये ऐसी तीन कंपनियां हैं, जिन्हें डब्लूबीए ने अपनी इंडेक्स में 50 से अधिक स्कोर दिए। लेकिन गौरतलब है कि महिलाएं भी आखिर बड़े श्रमिक वर्ग का हिस्सा ही हैं। जो नीतियां श्रमिक वर्ग पर लागू होती हैं, उनके मामले में भी वही लागू होता है। इसके अलावा कुछ बिंदुओं पर उनसे अतिरिक्त भेदभाव होता है। बहरहाल, अगर संपूर्ण श्रमिक नीति की बात करें, तो उपरोक्त बहुराष्ट्रीय कंपनियों का व्यवहार बाकी उद्योगों की कंपनियों से अलग नजर नहीं आएगा। ये व्यवहार ऐसा है कि बीते 40 साल में अमेरिका में श्रमिक वर्ग के वेतन में कोई वास्तविक बढ़ोतरी नही हुई है। जहां तक जेंडर मसलों का सवाल है तो ताजा बेंचमार्क ने बताया है कि कंपनियों के कहने और कार्य करने के बीच एक स्पष्ट अंतर है। वेतन, नेतृत्व में लिंग संतुलन, हिंसा और उत्पीड़न के मामलों उन्होंने महिलाओँ के प्रति सिर्फ दिखावटी प्रेम दिखाया है। अगर यह तथ्य अब बेनकाब हुआ है, तो ये अच्छी बात है।


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