सम्पादकीय

राष्ट्रपति का 'असह्य' अपमान

Subhi
14 Nov 2022 4:30 AM GMT
राष्ट्रपति का असह्य अपमान
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वर्तमान दौर की राजनीति के स्तर में जिस प्रकार चौतरफा गिरावट दर्ज हो रही है उसका सबसे ताजा प्रमाण राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू के बारे में प. बंगाल के एक राजनीतिज्ञ द्वारा की गई अशोभनीय, मर्यादाहीन टिप्पणी है।

आदित्य नारायण चोपड़ा; वर्तमान दौर की राजनीति के स्तर में जिस प्रकार चौतरफा गिरावट दर्ज हो रही है उसका सबसे ताजा प्रमाण राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू के बारे में प. बंगाल के एक राजनीतिज्ञ द्वारा की गई अशोभनीय, मर्यादाहीन टिप्पणी है। इसमें श्रीमती मुर्मू के शारीरिक रूप-रंग का व्यंग्यात्मक शैली में उपहास उड़ाने का कुत्सित प्रयास किया गया है। राजनीतिज्ञ प. बंगाल की सरकार का एक मन्त्री अखिल गिरी है। तृणमूल कांग्रेस के इस नेता ने राषट्रपति के बारे में कहा कि वह देखने में कैसी लगती हैं। सभी जानते हैं कि प. बंगाल सरकार की तृणमूल कांग्रेस पार्टी की सरकार की मुखिया महिला मुख्यमंत्री ममता दीदी है। ममता दी का पूरे देश में भारी सम्मान है क्योंकि वह जमीन से उठी हुई एक जन नेता हैं। प. बंगाल के लोगों में वह अपने गुणों की वजह से खासी लोकप्रिय नेता हैं न कि अपने शारीरिक सौन्दर्य की वजह से। वह बहुत सादी महिला हैं और एक सामान्य बंगाली भारतीय महिला की तरह ही जीवन-यापन करती हैं। महिला होने की वजह से पूरे देश के लोग उन्हें विशिष्ट आदर भाव के साथ भी देखते हैं। उनकी राजनैतिक विचारधारा से मतभेद रखने वाले लोग भी उनके व्यक्तित्व के प्रशंसक हो सकते हैं। परन्तु उन्हीं की पार्टी के नेता अखिल गिरी जब राज्य भाजपा के विपक्ष के नेता शुभेन्दु अधिकारी द्वारा की गई टिप्पणी के जवाब में सीधे भाजपा द्वारा चयनित राष्ट्रपति श्रीमती मुर्मू के रूप-रंग को लेकर अभद्र टिप्पणी करते हैं तो यह विषय बहुत गंभीर हो जाता है।राष्ट्रपति संविधान की संरक्षक हैं और भारत के सशस्त्र बलों की सुप्रीम कमांडर भी हैं। भारतीय लोकतंत्र के ढांचे में राष्ट्रपति राज प्रमुख होने के साथ ही संविधान के शासन के अधिष्ठाता भी हैं। इसका मतलब यही होता है कि वह उस संविधान की प्रतिमूर्ति हैं जिसकी कसम उठा कर देश के सभी चुने हुए सदनों में अपना कार्यभार संभालते हैं। बेशक उनका चुनाव केवल पांच साल के लिए ही परोक्ष रूप से देश के लोगों द्वारा होता है मगर उनके रूप में राष्ट्रपति भवन में संविधान की ही प्रतिस्थापना होती है जिसके प्रति देश की पूरी लोकतांत्रिक व्यवस्था जवाबदेह होती है। इसे देश का सर्वोच्च संवैधानिक पद भी कहा जाता है। क्या कभी सोचा गया है कि हमारे पुरखों ने राष्ट्रपति को ही सेना के तीनों अंगों का सुप्रीम कमांडर क्यों बनाया? इसके पीछे भी संविधान का शासन ही प्रमुख तर्क है। भारत की सेनाएं भी संविधान से ऊपर नहीं हैं और तीनों सेनाओं के लिए भारत की संसद ने ही कानून बना कर उनके गठन की प्रक्रिया तय की है।राष्ट्रपति संसद के भी संरक्षक होते हैं। संसद का नया सत्र बुलाने और उसका सत्रावसान करने के केवल उन्हें ही अधिकार हैं। लोगों द्वारा बहुमत दिये जाने पर संविधान व विविध द्वारा स्थापित सरकार का गठन करने का अधिकार भी उन्हीं के पास है। उन्हें ही देखना होता है कि भारत की सरकार एक क्षण के लिए भी किसी 'सचेत' प्रधानमंत्री से रहित न हो। प्रधानमंत्री के माध्यम से ही 24 घंटे 'उनकी' सरकार देश का शासन चलाती है। सवाल यह नहीं होता कि प्रधानमंत्री किस विशेष राजनैतिक दल के हैं बल्कि लोकसभा में पूर्ण बहुमत प्राप्त दल का जो भी नेता संसदीय प्रक्रिया के अनुरूप प्रधानमंत्री चुना जाता है वह राष्ट्रपति द्वारा ही प्रधानमन्त्री पद पर नियुक्त किया जाता है। उसकी जो सरकार होती है वह राष्ट्रपति की 'अपनी' सरकार होती है। अतः राष्ट्रपति पद पर पहुंचा कोई भी स्त्री-पुरुष भारत का प्रथम नागरिक कहलाता है। देश के प्रथम नागरिक की योग्यता को उसके रूप-रंग से मापने की कोशिश जो लोग करते हैं उन्हें निश्चित रूप से सार्वजनिक जीवन में रहने का अधिकार नहीं होता। क्योंकि सार्वजनिक जीवन में छोटे से छोटे संवैधानिक पद पर पहुंचे व्यक्ति की पहली निष्ठा संविधान के प्रति होती ही है। परन्तु क्या अजीब हवा चली है सियासत में कि राजनीतिज्ञ अपने क्षुद्र स्वार्थों की पूर्ति के लिए बड़े से बड़े पद की गरिमा को तार-तार करते नजर आ रहे हैं और बेशर्मी के साथ जन सेवा करने की कसम खा रहे हैं? जिस राजनीतिज्ञ को यह तक पता नहीं कि राष्ट्रपति के पद की सीमाएं क्या होती हैं और उसका रुतबा किस तरह संविधान में सबसे ऊंचा रखा गया है, वह मन्त्री पद पर किस तरह बैठा रह सकता है?संपादकीय :हरियाणा सीएम की मनोहर योजनाएंकर्मचारी और मालिकों की ये कैसी मुश्किल!आरक्षण पर सोरेन का दांवहिमाचल में चुनावी जश्न थमामुलायम सिंह की विरासत !अमेरिका-चीन में घटेगा तनाव?राष्ट्रपति का अपमान मानहानि के दायरे से बहुत ऊपर है। मानहानि किसी व्यक्ति की होती है जबकि राष्ट्रपति कोई व्यक्ति नहीं बल्कि भारत के समूचे लोकतांत्रिक संस्थान के 'शिखर' होते हैं। मगर भांग घोली गयी है सियासत के पूरे कुएं में कि जिसे देखो वही खुद को 'खुदा' समझ कर घूम रहा है। राष्ट्रपति के मुद्दे पर राजनैतिक दलगत आरोप-प्रत्यारोप या एक-दूसरे की पिछली गलतियां गिनाने का सवाल नहीं उठता है बल्कि जो गलती की गई है उसे दुरुस्त करने का मुद्दा खड़ा होता है। अतः जरूरी है कि तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख होने व प. बंगाल सरकार की मुखिया होने के नाते ममता दी सभी राजनैतिक आग्रहों से ऊपर उठ कर अखिल गिरी के खिलाफ समुचित कार्रवाई करें और समूचे राजनैतिक जगत को ऐसा विशिष्ट सन्देश दें कि किसी अन्य दल का नेता भी भविष्य में कभी ऐसी गिरी हुई हरकत न कर सके। और मनोवैज्ञानिक रूप से पुरुष समाज के राजनीतिज्ञ अपने मनोवृत्ति को संशोधित कर सकें। भारत के 'बेअदब' होते लोकतन्त्र को 'बा-अदब' करने के लिए जरूरी है कि अखिल गिरी जैसे लोगों का हिसाब लिया जाये वरना बहुत देर हो सकती है ।

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